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पश्चिम बंगाल में कटघरे में लोकतंत्र

प्रभाकर मणि तिवारी
४ जुलाई २०१८

सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर फैसला निरिविरोध होने पर भारी हैरत जताते हुए कहा है कि इससे साफ है कि राज्य में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र काम नहीं कर रहा है.

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Bangladesch Mamta Bannerjee in Dhaka
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Uz Zaman

बीती मई में हुए पंचायत चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी ने पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है. एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर फैसला निर्विरोध रहने पर अदालत की टिप्पणी राज्य की ममता बनर्जी सरकार के लिए करारा झटका है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अदालत की टिप्पणी और इस केस में होने वाले फैसले का दूरगामी असर हो सकता है. ध्यान रहे कि पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में चार दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए थे. विपक्षी राजनीतिक दलों ने तृणमूल कांग्रेस पर आतंक व हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि इसी वजह से हजारों उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर सके थे.

शीर्ष अदालत की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की एक खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर फैसला निरिविरोध होने पर भारी हैरत जताते हुए कहा है कि इससे साफ है कि राज्य में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र काम नहीं कर रहा है. मुख्य न्यायाधीश मिश्र ने कहा, "कुछ सौ सीटों पर निर्विरोध जीत की बात तो समझ में आती है. लेकिन इतनी भारी तादाद में सीटों पर फैसला निर्विरोध होने का आंकड़ा हैरान करने वाला है." खंडपीठ का कहना था कि अदालत जमीनी हकीकत से उदासीन नहीं रह सकती.

इससे पहले राज्य चुनाव आयोग के वकील अमरेंद्र शरण ने दलील दी थी कि पंचायत चुनावों की प्रक्रिया संपन्न हो जाने की वजह से अब इस मामले में अदालत की कोई भूमिका नहीं बचती है. सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस की वकील कल्याण बनर्जी ने भी दलील दी कि बंगाल में पंचायत चुनावों में निर्विरोध जीत का लंबा इतिहास रहा है. लेकिन अदालत का कहना था कि किसी भी चुनाव में निर्विरोध सीटों की इतनी भारी तादाद हैरतअंगेज है. अदालत ने राज्य चुनाव आयोग को चौबीस घंटे के भीतर निर्विरोध सीटों के सिलसिलेवार ब्योरा देते हुए हलफनामा दायर करने को कहा है.

पूरा मामला

बंगाल में इस बार पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. विपक्षी दलों ने इस दौरान तृणमूल कांग्रेस पर हिंसा व आतंक फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि उनके हजारों उम्मीदवार डर के मारे नामांकन पत्र दायर नहीं कर सके. लंबी अदालती लड़ाई और आरोप-प्रत्यारोप के लंबे दौर के बाद आखिर मई में एक ही दिन मतदान कराने का फैसला किया गया. उस दौरान 20 लोग हिंसा की बलि चढ़ गए. लेकिन राज्य चुनाव आयोग ने महज छह के मरने की बात कही. आयोग का कहना था कि विपक्ष के एक हजार से कुछ ज्यादा लोग कथित आतंक व हिंसा के चलते नामांकन पत्र दायर नहीं कर सके. इस पर आयोग पर भी तृणमूल कांग्रेस सरकार के हाथों की कठपुतली होने के आरोप लगे. मतदान से पहले ही राज्य में पंचायत की 58,692 सीटों में से 20,159 पर उम्मीदवार निर्विरोध जीत गए. यह तमाम लोग तृणमूल कांग्रेस के थे.

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीती आठ मई को राज्य चुनाव आयोग को ईमेल के जरिए भेजे गए नामांकन पत्रों को भी स्वीकार करने का निर्देश दिया था. आयोग ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 10 मई को शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी. लेकिन मुख्य न्यायाधीष दीपक मिश्र ने उस दिन भी हाईकोर्ट के निर्देश और 34 फीसदी सीटों पर निर्विरोध जीत के मुद्दे पर चिंता जताई थी. शीर्ष अदालत ने राज्य चुनाव आयोग को तटस्थता से मतदान कराने और निर्विरोध सीटों का नतीजा घोषित नहीं करने का निर्देश दिया था. उसी मामले पर आगे की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उक्त टिप्पणी की है. बीजेपी भी इस मामले की एक पक्ष बन गई है.

दूरगामी असर

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का बंगाल की राजनीति पर दूरगामी असर होने की संभावना है. तेजी से नंबर दो की कुर्सी की ओर बढ़ती बीजेपी ने सरकार के खिलाफ पहले से ही मोर्चा खोल रखा है. बीते सप्ताह बंगाल के दो दिन के दौरे पर पहुंचे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनावों की रणनीति पर विचार-विमर्श करने के बाद प्रदेश के नेताओं को लोकसभा की 42 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है. उन्होंने पुरुलिया जिले में अपनी एक रैली में ममता बनर्जी सरकार के कथित तानाशाही रवैये के लिए उनकी खिंचाई करते हुए लोगों से उन्हें सत्ता से हटाने की भी अपील की.

राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चौधरी कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख को देखते हुए इस मुद्दे पर फैसले से सरकार को झटका तो लगेगा ही, बीजेपी अगले आम चुनावों में इसे एक प्रमुख मुद्दा बना सकती है." अब तमाम निगाहें शीर्ष अदालत के फैसले पर टिकी हैं. अदालत की टिप्पणी पर तृणमूल कांग्रेस ने अब तक कोई टिप्पणी तो नहीं की है लेकिन पार्टी के नेता अभी से डैमेज कंट्रोल की कवायद में जुट गए हैं.

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