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पत्थरों से तेल निकालने की तैयारी

६ दिसम्बर २०१०

पत्थर से काला सोना बन सकता है. और ऊर्जा की कमी का सामना कर रहे विश्व में तेल की कमी को दूर करने का व्यावहारिक समाधान साबित हो सकता है. वैज्ञानिक पत्थरों से तेल निकालने की कोशिश में हैं.

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तस्वीर: ap

जर्मनी इस समय अपनी खनिज तेल जरूरत का 98 फीसदी आयात करता है. दुनिया भर में तेल भंडार कम हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय तेल उद्योग की दिलचस्पी अब परतों वाली बिटुमिन चट्टानों में हो रही है जिससे पेट्रोल, डीजल और विमानन के उपयोग के लिए केरोसीन निकाला जा सकता है. कुछ देशों में इसका इस्तेमाल भी हो रहा है. अमेरिका के जेरेमी बोक इन पत्थरों के अच्छे जानकार हैं. उन्हें इस बात का पता है इनसे तेल कैसे निकाला जा सकता है, लेकिन उन्हें यह भी पता है कि इन परतदार पत्थरों से तेल निकालने का पर्यावरण पर क्या असर होगा.

तेल और गैस कहीं से भी आएं, वे माइक्रोब या सूक्ष्म जीवाणुओं से पैदा होते हैं, समुद्र की सतह में बैठ जाते हैं, वहां की तह में जम जाते हैं और घुलमिलकर हाइड्रो कार्बन में बदल जाते हैं. ऑयल शेल इस मायने में कुछ अलग होते हैं. कोलेरैडो स्कूल ऑफ माइन्स के जेरेमी बोक वहां के ऊर्जा शोध संस्थान में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. उनका कहना है कि ऑयल शेल का घनत्व बहुत अधिक होता है. कई देशों में उससे पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन हो भी रहा है. बोक बताते हैं, "ऑयल शेल से चीन, एस्तोनिया और ब्राजील में तेल का उत्पादन किया जा रहा है. जॉर्डन और मोरक्को जैसे देशों ने अपने विशाल संसाधनों के खनन के लिए समझौते किए हैं. तेल वाली परतदार चट्टानों का विकास कैसे हुआ उसके अनुरूप ही उसमें तेल या गैस छिपा होता है. हाइड्रो कार्बन अधपके या ठोस भी हो सकते हैं, वैसे नहीं जैसा कि हम तेल से बूंदों के रूप में जानते हैं. चट्टानों के प्रकार पर ध्यान देते हुए उसमें छेद किया जाता है और उस पर पानी छिड़का जाता है. पानी रसायनयुक्त होता है और इस तरह से तेल या गैस निकाला जाता है. एक दूसरा तरीका यह है कि हाइड्रो कार्बन वाले तत्वों को गरम कर निकाला जाता है."

उसके लिए ऑयल शेल को खान से निकाला जाता है, इलेक्ट्रिकल भट्टी में डाला जाता है और गरम किया जाता है. इस प्रक्रिया में हाइड्रो कार्बन के अणु टूट जाते हैं. वे पत्थरों से बाहर निकलने लगते हैं और अंत में आपको तेल मिलता है. अनुमान है कि अमेरिका में इस तरह से लगभग 800 अरब बैरल तेल का भंडार है. लेकिन इन चट्टानों का खनन इतना आसान नहीं है, वे अक्सर पर्यावरण समस्याएं भी पैदा करती हैं.

जेरेमी बोक बताते हैं, "जब ऑयल शेल को खनन के जरिए खान के अंदर या बाहर से निकाला जाता है तो निकाले गए पदार्थ को ठीक से रखना होता है. तभी इस बात की गारंटी दी जा सकती है कि तेल या कोई दूसरी जहरीली वस्तु रिसकर जमीन को नुकसान नहीं पहुंचाएगी. क्योंकि वह भूमिगत जल को प्रदूषित कर सकता है और वातावरण को जहरीला बना सकता है."

यही नहीं झील और नदियां भी प्रदूषित हो सकती हैं. एस्तोनिया में एक रंगीन झील सोवियत संघ के काल में हुए खनन की याद दिलाता है. पर्यावरण सुरक्षा उस जमाने में कोई भूमिका नहीं निभाती थी. जेरेमी बोक का कहना है कि झील का रंग तेल प्रदूषण के कारण है. वह कहते हैं, "खनन के दौरान हमेशा धूल भी पैदा होती है, जिससे नुकसानदेह हाइड्रो कार्बन के अंश भी चिपके होते हैं. हवा उन्हें उड़ाकर कहीं भी ले जा सकती है और जमीन और प्राकृतिक जल को प्रदूषित कर सकती है."

पर्यावरण के लिए पैदा होने वाली समस्याओं को कम करने के लिए तेल या गैस को खान में उबालकर बाहर निकाला जा सकता है. ऐसा करने के लिए गरम पानी को चट्टानों के अंदर इंजेक्ट किया जाता है ताकि हाइड्रो कार्बन चट्टानों से अलग होकर बाहर निकल सकें. यह तरीका बहुत दिनों से पता है लेकिन उसमें भूमिगत पानी के प्रदूषित होने का खतरा है. इसलिए इस समय खनन वाले इलाकों के जल को जमा कर तेल निकालने का परीक्षण चल रहा है ताकि जहरीले पदार्थों को बाहर निकाल कर निबटाया जा सके.

जेरेमी बोक का कहना है कि इस तरीके से बाहर निकाला गया तेल आसानी से रिफायनरी को भेजा जा सकता है. प्रक्रिया को और कुशल बनाने पर काम हो रहा है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में भी बहुत सारी ऊर्जा लगती है. कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी तो नहीं होगी लेकिन तेल की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सकेगा.

रिपोर्टः एजेंसियां/प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः वी कुमार

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