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पवन ऊर्जा में एशिया की बड़ी छलांग

१० मार्च २०१०

अनुमान है कि इस साल पवन ऊर्जा से बनने वाली बिजली 190,000 मेगा वॉट तक पहुंच जाएगी, जबकि दस साल पहले यह सिर्फ़ 20,000 मेगावॉट थी. इस बढ़ते उत्पादन की वजह इस क्षेत्र में एशिया की प्रगति है.

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तस्वीर: DW

विश्व पवन ऊर्जा संघ ने नए आंकड़े पेश किए हैं. इनके मुताबिक़ पवन ऊर्जा अब दुनिया के 70 से ज़्यादा देशों में इस्तेमाल हो रही है. विश्व पवन ऊर्जा संघ के महासचिव स्टेफ़ान ज़ैंगर का कहना है कि ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के दामों का बढ़ना और अस्थिर रहना, जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता और ऊर्जा की बढ़ती मांग, ये कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से लोग अपनी बिजली की ज़रूरत पूरी करने के लिए पवन ऊर्जा की ओर रुख़ कर रहे हैं. इस मामले में एशिया में ख़ासी प्रगति देखने को मिली है.

Hannovermesse mit Windenergie
तस्वीर: AP

ज़ैंगर के मुताबिक़ "पिछले बीस सालों में एशिया ने पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश किया है. हम हम देख सकते हैं कि दुनिया भर में बनाए गए नए पवन टर्बाइनों में 40 प्रतिशत अकेले एशिया में हैं. ज़ाहिर सी बात है कि चीन इस क्षेत्र में सबसे आगे है, जिसने पिछले साल 14,000 मेगावॉट के पवन टर्बाइन स्थापित किए और लगातार चार सालों से चीन ने अपनी पवन ऊर्जा क्षमता को दुगना किया है."

2009 में चीन ने पवन ऊर्जा से बिजली बनाने के मामले में जर्मनी को पीछे छोड़ दिया और दूसरा स्थान हासिल किया. अमेरिका पहले स्थान पर बना हुआ है. ज़ैंगर कहते हैं, "इस समय ऐसा लगता है कि चीन जर्मनी को 200 मेगावॉट से पीछे छोड़ चुका है. महज़ कुछ ही वर्षों में हासिल की गई यह एक बड़ी सफलता है. चीन पहले पांचवें स्थान पर था लेकिन अब उसने दूसरे पायदान को हासिल कर लिया है."

Windpark Wybelsumer Polder Symbolbild Windenergie
तस्वीर: picture-alliance / dpa

ज़ैंगर का कहना है कि कुछ साल पहले चीन ने 2020 तक पवन ऊर्जा से 20 गीगावॉट बिजली बनाने का लक्ष्य तय किया था. इस लक्ष्य तक वे 2009 में ही पहुंच गए तो अब 2020 तक चीन ने पवन ऊर्जा से 100 गीगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित है. वैसे पवन ऊर्जा एशिया के लिए नई बात नहीं है. भारत को पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काफ़ी अग्रणीय माना जाता है. वहां दुनिया का सबसे बड़ा टर्बाइन उत्पादक सुज़लौन है. लेकिन ऊर्जा उत्पादन को देखें तो चीन एशिया के लिए एक आदर्श बन गया है जो बाक़ी एशियाई देशों को पवन ऊर्जा बनाने की प्रेरणा दे रहा है. पाकिस्तान, वियतनाम और फ़िलीपींस जैसे बहुत से देशों ने अपने विन्डफ़ार्म्स बना लिए हैं. साथ ही इन सभी देशों ने औद्योगिक क्षमता बढाने का काम भी शुरू कर दिया है. वहीं चीन और भारत, दोनों के पास ही बहुत मज़बूत व्यवसायिक आधार हैं.

ज़ैंगर का कहना है कि अगर तकनीकी परिस्थितियों को ध्यान में रखें तो एक देश अपनी 30 से 50 प्रतिशत बिजली पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, सौर ऊर्जा और बायोगैस जैसे फिर से उपयोग की जाने वाले स्रोतों की मदद से हासिल कर सकता है. चीन में विन्डफ़ार्म्स के बढ़ने का मतलब चीन की उत्पादन सुविधाओं का बढ़ना है. विश्व पवन ऊर्जा संघ के प्रवक्ता चियान सोंग का कहना है कि चीन में फ़िलहाल लगभग 80 विन्ड टर्बाइन उत्पादक हैं. उनके मुताबिक़, "अभी चीन के ज़्यादातर विन्ड टर्बाइन उत्पादक अपनी सामग्री, चीन के पवन किसान को देते हैं. लेकिन पिछले साल से ही बड़े टर्बाईन उत्पादकों ने अपने निर्यात व्यवसाय को बंद कर दिया था. और चीन का उत्पादन वैसे ही अच्छा है और यूरोपीय उत्पाद के मुक़ाबले सस्ता भी है."

Windenergie Windrad
तस्वीर: Windfang e.G. FrauenEnergieGemeinschaft

विश्व पवन ऊर्जा संघ के मुताबिक़ पवन ऊर्जा बिजली बनाने के लिए काफ़ी सस्ती है. इसी कारण इसकी मांग बढ़ रही है. अब जब चीन इस क्षेत्र में एक जगह हासिल करने में जुटा हुआ है तो वह दिन दूर नहीं जब घर की और चीज़ों की तरह बिजली भी "मेड इन चाइना" होगी.

रिपोर्टः सारा बर्निंग/श्रेया कथूरिया

संपादनः ए कुमार