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प्रकृति सिखाये विज्ञान को ज्ञान

फ्रांक ग्रोटे ल्युशन / राम यादव१४ जुलाई २००८

सबसे बड़ा वैज्ञानिक तो प्रकृति स्वयं है. हज़ारों-लाखों वर्षों में उसने जो कुछ विकसित किया है, वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में उसी से सीखने-समझने की कोशिश करते हैं.

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लकड़ी की बनी एक मर्सेडीज़ 300 एसएल कारतस्वीर: AP

15 लाख यूरो, अर्थात लगभग नौ करोड़ रूपयों के बराबर का 2008 का जर्मनी का माक्स प्लांक विज्ञान पुरस्कार इस बार ऑस्ट्रिया और अमेरिका के दो ऐसे वैज्ञानिकों को दिया गया है, जो लकड़ी और हड्डी जैसी जैव-संरचनाओं से सीख ले कर नयी सामग्रियों और प्रणालियों का निर्माण करते हैं. पुरस्कार-राशि जर्मन शिक्षा और विज्ञान मंत्रालय प्रदान करता है, जबकि विजेताओं का चयन जर्मनी की सबसे नामी विज्ञान संस्था माक्स प्लांक सोसायटी करती है. हर वर्ष जिन दो जाने-माने वैज्ञानिकों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है, उनमें से एक ने अपना काम जर्मनी में किया होना चाहिये और दूसरे ने किसी दूसरे देश में.

इस बार के ऑस्ट्रियन पुरस्कार विजेता पेटर फ़्रात्सल जैव-भौतिकशास्त्री हैं. उन्हें हमेशा से इस बात को जानने में दिलचस्पी रही है कि इस दुनिया को कौन-सी चीज़ बाँधे रखती है. आरंभ में वे इस्पात या एल्यूमीनियम जैसी चीजों में इस बंधन-शक्ति को ढूँढते थे. आज हड्डियों या लकड़ी जैसी जैवसंरचनाओं में उसे तलाशते हैं.

प्रकृति बहुत किफ़ायती है

गत पाँच वर्षों से फ्रात्सल बर्लिन के पास पोट्सडाम में स्थित माक्स प्लांक संस्थान के जैवसामग्री विभाग के प्रमुख हैं. उन्हें जैविक प्रणालियों और जैविक वस्तुओं के अनुकरण से बनी सामग्रियों वाली विज्ञान की नयी शाखा बायोमाइमेटिक का, जिसे हिंदी में जैव-अनुकरण विज्ञान कह सकते हैं, एक प्रमुख अग्रगामी माना जाता है. इस विज्ञान में प्राकृतिक कार्यकलापों और विकासवादी क्रियाओं के अनुकरण द्वारा आधुनिक समय के प्रश्नों एवं समस्याओं के हल ढूँढे जाते हैं. फ़्रात्सल से ही सुनते हैं कि प्रकृति ने लकड़ी और हड्डी जैसी चीज़ों का विकास कैसे किया? इनकी बनावट की क्या विशेषताएँ हैं?

"प्रकृति उन्हीं सामग्रियों से काम चलाती है, जो उसे मिट्टी और हवा से मिल सकती हैं. मिट्टी और हवा में कोई इस्पात, कोई एल्यूमीनियम या कोई सीलीसियम चिप तो होती नहीं. दूसरी ओर, प्रकृति बहुत थोड़े-से पदार्थों के बल पर बहुत उच्चकोटि की, बल्कि कहना चाहिये कि चमत्कारिक क़िस्म की सामग्रियां बनाने के भी समर्थ है. हम हड्डी या लकड़ी की सिर्फ़ बनावट को ही नहीं समझना चाहते, बल्कि इस बात को समझना चाहते हैं कि प्रकृति इस बनावट तक पहुँची कैसे? हम उसके सिद्धांत को फिर अपने लिए अपनाते हैं."

नैनोमीटर आयाम

फ्रात्सल और उनकी टीम ने पाया कि हड्डियाँ अपनी मरम्मत अपने आप करने के सक्षम हैं. हड्डियों में छोटी-मोटी दरारें आस-पास के ऊतकों की मदद से अपने आप ठीक हो जाती हैं. लेकिन, जो लोग अपनी हड्डियों से बहुत अधिक काम लेते हैं, उन्हें नवीकरण के लिए पर्याप्त समय नहीं देते, वे हड्डियों की थकान के कारण उनके टूट जाने का जोखिम भी उठाते हैं. यहाँ प्रकृति को समझने के लिए जाँच-विधियों और मापन-यंत्रों का बहुत ही उच्च कोटि का होना ज़रूरी हैः

"हमें ऐसे आयामों में जाना पड़ता है, जहाँ माइक्रोस्कोप भी साथ नहीं दे पाता. तब हमें एक्स-रे किरण का सहरा लेना पड़ता है. उनकी सहायता से हम नैनोमीटर तक की सूक्ष्मता में, यानी एक मिलीमीटर के दस लाखवें हिस्से तक में झाँक सकते हैं. इससे जाँच के अधीन नमूने को कोई नुकसान भी नहीं पहुँचता, वह अपने प्राकृतिक परिवेश में बना रह सकता है."

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गेहूं की बाली से नए इंजन की सीखतस्वीर: AP

गेहूँ के पास गुर है नये इंजन का

पेटर फ्रात्सल अपने बहुत ही मौलिक क़िस्म के भौतिक प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध हैं. हाल ही में उन्होंने जंगली गेहूँ के फैलाव में उसके जीनों की नियंत्रण और संचालन विधि का पता लगाया. जंगली गेहूँ के बीज की विशेषता को समझने के लिए उन्होंने उसकी एक बाली अपनी मेज़ पर रखी. उन्होंने पाया कि आधुनिक वर्णसंकरित गेहुँओं की बालियें की तुलना में जंगली गेहूँ के बीजों से जुड़े बाल क़रीब 10 सेंटीमीटर अधिक लंबें होते हैं. फ्रात्सल का कहना है कि मनुष्यों की मांसपेशियों को हिलने-डुलने के लिए ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, पेड़-पौधों के मामले में ऐसा नहीं हैः

" पेड़-पौधों ने अपनी हरकतों के लिए बिल्कुल दूसरे तरीके विकसित किये हैं. उनका तरीका है पानी सोखना, जिससे उनकी कोषिकाएँ फूल जाती हैं. प्रकृति ने पानी सोख कर फूलने के द्वारा हरकत दिखाने की तरह-तरह की प्रणालियाँ विकसित की हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि पानी सोख कर फूलना मूल रूप में एक भौतिक या भौतिक-रासायनिक क्रिया है. इस क्रिया के लिए सिर्फ़ इतना ही पर्याप्त है कि आस-पास सही कि़स्म की नमी उपलब्ध है."

गेहूँ के बीजों वाले कड़े बाल हवा में बढ़ती हुई नमी के साथ मुड़ने लगते हैं और तैरने-जैसी हरकत दिखाते हैं. दूसरे शब्दों में, गेहूँ के बीजों वाले बालों के लिए प्रकृति ने एक ऐसी सामग्री विकसित की है, जिसकी सहायता से बीज अपने गिरने की जगह से दूर हट सकते हैं.

प्रकृति की नकल कर सीखे गये इस सिद्धांत को तकनीकी रूप देना, यानी भविष्य में कभी कोई ऐसा यंत्र या मोटर बनाना, जो हवा की नमी से ईंधन का काम ले सके, फिर भी आसान नहीं होगा. मूलभूत कि़स्म के बहुत सारे शोधकार्य करने होंगे और नयी मशीनें बनानी होंगी. पेटर फ्रात्सल पुरस्कार में मिले धन का इसी तरह के प्रयोगों के लिए उपयोग करना चाहते हैं.