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प्रशांत में सैनिकों से अशांत चीन

४ अप्रैल २०१२

ऑस्ट्रेलिया में 200 अमेरिकी नौसैनिक तैनात किए गए हैं. एशिया प्रशांत इलाके में अमेरिका अपनी उपस्थिति बढ़ाने की तैयारी में है. कुल ढाई हजार नौसेनिक यहां तैनात किए जाने की योजना है.

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तस्वीर: AP

यह तैनाती एशिया प्रशांत में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे डार्विन के आस पास की जा रही है. उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में अमेरिकी सैनिकों की बढ़ती उपस्थिति से चीन की त्यौरियां चढ़ी हैं. चीनी अधिकारी यह सवाल कर रहे हैं कि क्या चीन को घेरना अमेरिका की दूरगामी नीति का हिस्सा है ताकि चीन को वैश्विक ताकत बनने से रोका जा सके.

ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री स्टीफन स्मिथ ने डार्विन में कहा, "हम इसे एक जवाबी और ऐसी कार्रवाई के तौर पर देखते हैं कि दुनिया हमारे हिस्से की ओर आ रही है. दुनिया एशिया प्रशांत और हिंद महासागर की ओर बढ़ रही है. हमें इसका जवाब देना जरूरी है. चीन और भारत के उभरने के कारण पैदा हुई चुनौतियों का सामना करना होगा. अब रणनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव का केंद्र हमारी ओर आ रहा है."

डार्विन पोर्ट इंडोनेशिया से सिर्फ 820 किलोमीटर दूर है. इस तैनाती के बाद दक्षिण पूर्वी एशिया में मानवीय आपदा या सुरक्षा संकट की स्थिति में अमेरिकी सेना तेजी से कार्रवाई कर सकती है. इस इलाके में साउथ चायना सागर पर अधिकार को लेकर वैसे ही विवाद चल रहा है.

जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस तैनाती की नवंबर में घोषणा की थी तो उन्होंने इसे आपसी सैन्य साझेदारी और प्रशिक्षण का जरिया बताया था. और कहा था कि यह चीन को अलग थलग करने की कोशिश नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, "यह सोच कि हम चीन से डरते हैं, गलत है. यह सोचना कि हम चीन को अलग कर रहे हैं यह भी सही नहीं है. हम शांतिपूर्ण चीन की प्रगति का स्वागत करते हैं."

ईमानदार बयान

ऑस्ट्रेलिया अमेरिका का पुराना साथी है. दोनों देशों के बीच साठ साल पुरानी एनजस (एएनजेडयूएस) नाम की रणनीतिक और सैन्य साझेदारी भी है जिसमें न्यूजीलैंड भी शामिल है. ऑस्ट्रेलिया चीन को बड़े व्यापारिक साझेदार के तौर पर देखता है और उसे नाराज न करने की सावधानी बरत रहा है.

शुरुआती घोषणा पर चीन ने कहा कि यह शीत युद्ध की दुश्मनी को हवा देगा और भरोसे को कमजोर करेगा. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के रणनीति संस्थान में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ रॉड लियोन कहते हैं कि चीन, भारत और इंडोनेशिया को इस तैनाती के बारे में पहले ही जानकारी दे दी गई है और उन्हें इसकी जरूरत से ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए. "मुझे नहीं लगता कि यह चीन के खिलाफ अमेरिका को खड़ा करता है. चीन जानता है कि एनजस ऑस्ट्रेलिया के लिए महत्वपूर्ण है. अमेरिका के साथ हमारी साझेदारी 21वीं शताब्दी में नए रास्ते खोलेगी. चीनी मीडिया कभी कभी जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दे देता है लेकिन आधिकारिक नजरिया नरम और तनाव रहित है."

चीन की तरह ऑस्ट्रेलिया भी अपनी बढ़ती आर्थिक ताकत को दिखाने के लिए सैन्य शक्ति को बढ़ाने की कोशिश में है और अपने उत्तर पश्चिमी तट पर ज्यादा ध्यान दे रहा है क्योंकि वहां तेल और गैस उद्योग तेजी से बढ़ रहा है. वह लंबी दूरी तक जाने वाली पनडुब्बियों का बेड़ा बनाने के लिए 100 अरब डॉलर खर्च करना चाहता है. साथ ही युद्धक हवाई जहाज खरीदने और नौसेना की उपस्थिति बढ़ाने की तैयारी में है.

आईएचएस जेन्स डिफेंस वीकली में एशिया प्रशांत संपादक जेम्स हार्डी कहते हैं कि अमेरिका के पास एशिया में काफी विकल्प हैं. दक्षिण कोरिया, ओकिनावा और गुआम में उसके पहले से सैन्य अड्डे हैं. साथ ही सिंगापुर और फिलीपीन्स के साथ रणनीतिक साझेदारी है.

मरीन कॉर्प्स के प्रवक्ता ने बताया कि हवाई में तैनात 3री मरीन रेजिमेंट ऑस्ट्रेलिया की सेना के साथ अभ्यास करेगी और फिर इलाके के दूसरे देशों में प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए जाएगी. समय के साथ इनकी संख्या बढ़ कर ढाई हजार कर दी जाएगी. अलग अलग टुकडियां इसमें हिस्सा लेती रहेंगी.

रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने एशिया प्रशांत के एक राजनयिक के हवाले से लिखा है, "यह सैनिक दृष्टि से उतना महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन एक अहम संकेत है. इसलिए यहां इसे इतना महत्व दिया जा रहा है."

एएम/एमजे (रॉयटर्स)

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