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प्राकृतिक आहार चक्र को तोड़ते कीटनाशक

ओंकार सिंह जनौटी
२५ अगस्त २०१७

तितलियां, मधुमक्खियां और अन्य कीट खत्म होंगे तो इंसान को फल और सब्जियां नहीं मिलेंगी. ऊपर से कई पक्षी भी साफ हो जाएंगे. कृषि में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक धरती को इसी तरह बर्बाद करने पर तुले हैं.

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Symbolbild Pestizide in der Landwirtschaft
तस्वीर: Philippe Huguen/AFP/Getty Images

जहां तक नजर जाती है वहां एक सी फसल. इसे मोनोकल्चर कहते हैं. जर्मनी में खेती कुछ ऐसी ही दिखती है. बढ़िया फसल के लिए साल में कई बार कीटनाशक छिड़के जाते हैं. कीड़ों के खिलाफ इन्सेक्टिसाइड्स, खर पतवार का खिलाफ हर्बीसाइड्स और फंफूद के खिलाफ फंजीसाइड्स.

जर्मनी के 90 फीसदी किसान ऐसे ही खेती करते हैं. अपने सरसों के खेत में क्लाउस मुंषहोफ देख रहे हैं कि कीटनाशकों ने कैसा असर किया. उन्हें लगता है कि जहरीले छिड़काव के बिना वह अपनी फसल सुरक्षित नहीं कर सकते. मुंषहोफ कहते हैं, "अगर सरसों की खेती में हम कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें तो 20 से 30 फीसदी फसल ही मिलेगी. हर्बीसाइड्स के बिना 55 फीसदी फसल बर्बाद हो जाएगी और फंजीसाइड्स का भी शायद 30 से 50 फीसदी असर होता है."

लेकिन कीटनाशक सिर्फ किसान की फसल ही नहीं बचाते, बल्कि ये पक्षियों के प्राकृतिक आहार पर भी असर डालते हैं. पक्षी जंगली बूटियां और कीट खाते हैं. हर साल जर्मनी के किसान अपने खेतों में करीब 40 हजार टन कीटनाशक छिड़कते हैं. परिंदों की आबादी पर इसका सीधा और गंभीर असर पड़ता है.

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कीटनाशकों की वजह से मरती मधुमक्खियांतस्वीर: Getty Images/AFP/R. Roig

कीटनाशक की एक किस्म से तो वैज्ञानिक खासे परेशान हैं, उसका नाम है नियोनिकोटिनॉएड या नियोनिक्स. पहले ये माना गया कि ये कम जहरीले हैं और कुछ कीटों की मदद भी करते हैं. शुरुआत में किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि नियोनिक्स की वजह से पराग जुटाने वाली कुछ मक्खियां प्रभावित हो रही हैं. लेकिन जब इन मक्खियों की रिश्तेदार मधुमक्खियों ने अजीब सा व्यवहार किया तो लोगों ये बात पता चली. मधुमक्खी पालकों को शक हुआ कि नियोनिक्स नुकसान पहुंचा रहा है.

ब्रिटिश कीट विशेषज्ञ डेव गॉलसन ने इस पर शोध किया. लैब में गॉलसन ने भंवर प्रजाति की मक्खियों को नियोनिक्स के मिश्रण वाला चारा दिया. वो भी उतनी ही मात्रा में जितना खेतों में मिलता है. इसका चिंताजनक नतीजा सामने आया. मक्खियों को दिशाभ्रम और दूसरी परेशानियां होने लगी. वे कमजोर हो गयीं और बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो गयीं. ऐसा ही असर मधुमक्खियों पर भी पड़ा. लेकिन रसायननिर्माता इन दावों को खारिज करते हैं. वे कहते हैं कि लैब और खेतों का माहौल अलग होता है.

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दुनिया भर में हर साल करोड़ों टन कीटनाशक का इस्तेमालतस्वीर: CC/Rishwanth Jayaraj

वहीं वैज्ञानिक और गंभीर नतीजों की चेतावनी दे रहे हैं. उनके मुताबिक ऐसे कीटनाशकों का असर सिर्फ खेतों तक ही सीमित नहीं रहता. गॉलसन की टीम ने छिड़काव वाले खेतों के आस पास के इलाकों में शोध कर पाया कि नियोनिक्स खेतों से निकलकर जंगली बूटियों तक में फैल चुका है. उसका असर केवल मक्खियों पर ही नहीं हुआ था. गॉलसन कहते हैं, "जाहिर है कि पंछी भी भोजन करते हैं और कई परिदें तो सिर्फ कीटों पर निर्भर रहते हैं. और जब हम अत्यंत विषैले रसायनों को वातावरण में घोलते हैं तो कीटों की संख्या घटती है और इसका सीधा असर पंछियों पर पड़ता है क्योंकि उनके पास खाने के लिए कुछ बचता ही नहीं है."

यह सिर्फ ग्रेट ब्रिटेन की ही समस्या नहीं है. जर्मनी के पेटर बेर्थहोल्ड राडोल्फ पक्षी विज्ञान सेंटर के पूर्व निदेशक रह चुके हैं. वे भी कीटों की संख्या में बड़ी गिरावट देख रहे हैं. राडोल्फ बड़ी आसानी से इस बदलाव को समझा भी देते हैं, "पुराने समय में जब लोग गर्मियों में दिन या रात में गाड़ी चलाते थे तो बहुत ही ज्यादा कीट सामने वाले शीशे पर टकराने से मरते थे. लोगों को कई बार पेट्रोल पंप पर रुकना पड़ता था, लेकिन तेल भरने के लिए नहीं बल्कि शीशे साफ करने के लिए."

लेकिन जब कीट ही नहीं बचेंगे तो जाहिर है परिंदे भी भूखे रह जाएंगे. परेशानी सिर्फ कीटों की संख्या ही नहीं है. पंछियों के लिए अब बहुत ही कम बीज उपलब्ध हैं. राडोल्फ के मुताबिक, "गेहूं के खेत में कीटनाशक डायकॉट्स के पौधों को खत्म कर देते हैं. ये अफीम, मक्का और फील्ड पैन्जी जैसे 200 पौधों को खत्म कर देते हैं. ये सभी पौधे बीज बनाते हैं. यहां हम सिर्फ गेहूं की बात कर रहे है, हम जौ और आलू की बात नहीं कर रहे हैं. ये जंगली पौधे 1950 के दशक में 10 लाख टन बीज पैदा करते थे."

और नतीजा ये है कि आज ज्यादा से ज्यादा परिंदे भूखे हैं. पेटर को फिलहाल इसका एक ही उपाय दिखता है, पंछियों को चारा देना, वो भी साल भर. लेकिन कीटनाशकों के बेहताशा इस्तेमाल को अगर जल्द नहीं रोका गया तो बेहद बुरे नतीजे सामने आएंगे. प्राकृतिक आहार चक्र बिखर जाएगा और उसकी चोट से इंसान भी शायद नहीं बच पाएगा.

(बड़े काम के कीड़े)