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बचपन में ही मोटापे के मरीज़

२५ अक्टूबर २००९

दुनिया में बच्चे दिनों दिन मोटे होते जा रहे हैं. अमेरिका में सबसे ज़्यादा भारी भरकम बच्चे हैं. भारत और यूरोप में भी मोटे बच्चों की तादाद बढ़ रही है. यूरोपीय संघ अब स्वस्थ बचपन को लेकर गंभीर है और नई योजना भी बना रहा है.

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बीमारी हैं मोटापातस्वीर: AP

बग़ल से कोई मोटा बच्चा गुज़र जाए तो दो चीज़ें बड़ी आसान होती हैं. या तो उसे देख कर हंस दो या फिर धीरे से मोटू कह दो. सिर्फ़ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मोटे बच्चों का मज़ाक उड़ता है. लेकिन मोटापा एक बीमारी है कई दूसरी बीमारियों की जड़. अगर बचपन में इस पर क़ाबू न पाया गया तो बड़ी परेशानी होती है. मोटापे की सबसे बड़ी वजह होती है खान पान की आदत. आठ साल का हगाफ़ कहता है, "मुझे फल पसंद नहीं हैं.. मुझे तो चिप्स और लेमन सोडा अच्छा लगता है."

सिर्फ़ रोसोलीना ही नहीं, यूरोपीय देशों के ज़्यादातर बच्चों को चर्बी वाला खाना पसंद है. कोल्ड ड्रिंक और कोला पीना पसंद है. दोपहर के खाने की जगह चिप्स खा लेने को मचलते हैं. और उनकी इन्हीं आदतों को देखते हुए यूरोपीय संघ ने स्कूलों में पौष्टिक खाने के प्रचार की योजना बनाई है. ताकि छोटी उम्र में ही बच्चों को समझाया जा सके. इस प्रोग्राम में लगीं हैं मारियन फ़िशर ब्योल. "हम मोटापे को लेकर कोई स्कूल नहीं बनाना चाहते लेकिन सोचते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच सकें. बच्चों को और उनके मां बाप को स्वस्थ खाने के बारे में बता सकें."

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खान पान की सही आदतों पर ज़ोरतस्वीर: picture alliance/dpa

प्रोग्राम का नाम दिया गया है टेस्टी ब्रंच और आठ हफ़्ते में सात देशों के एक सौ अस्सी स्कूलों में जाने का इरादा है. ख़ास बस तैयार की गई है और लगभग बीस हज़ार बच्चों को मोटापे की वजह और इससे बचने के तरीक़े बताए जाएंगे. आठ साल के रोसोलिनो कानीने जैसे बच्चों को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है.

रोसोलीनो से कुछ दूर उसका दोस्त अंतोनियो भी है जो ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही मोटा है. ग्यारह साल का अंतोनियो कहता है, "कई ऐसी चीज़ें हैं, जो मुझे अच्छी लगती हैं, कई बिलकुल अच्छी नहीं लगतीं. दालें मुझे पसंद नहीं लेकिन जहां तक फलों का सवाल है, मुझे संतरा बहुत अच्छा लगता है. मैं कोशिश करता हूं कि हर रोज़ खाने का पांच हिस्सा फल और सब्ज़ी हो लेकिन ऐसा होता नहीं है."

सर्वे बताते हैं कि दुनिया भर के दस फ़ीसदी बच्चे मोटे हैं और यूरोप में बीस फ़ीसदी. भारत में भी बीस फ़ीसदी से ज़्यादा बच्चे मोटे हैं, जबकि अमेरिका में तो बत्तीस फ़ीसदी बच्चों का वज़न ज़रूरत से ज़्यादा है.

ईयू प्रोग्राम से जुड़ी टीचर अनाबेला गार्सिया कहती हैं कि बच्चों की आदत बदलने की ज़रूरत है, वे तो टिफ़िन में भी चिप्स और स्नैक्स लेकर आते हैं. "यह तो मां बाप पर निर्भर है. अगर देखा जाए तो बच्चे सारा वक्त घर पर ही बिताते हैं और उनको पहली सीख घर पर ही मिलती है. लेकिन स्कूलों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे बच्चों को सही बात बताएं."

सिर्फ़ खान पान ही नहीं, एक जगह बैठे बैठे भी बच्चों का वज़न बढ़ता है. हाल के दिनों में टेलीविज़न और वीडियो गेम्स ने बच्चों को बहुत मोटा किया है. यूरोपीय संघ के प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों का कहना है कि खाने पीने में सुधार के अलावा बच्चे थोड़ा बहुत अभ्यास कर लें तो क्या बात है.

रिपोर्ट: जैस्सू भुल्लर

संपादन: अनवर जमाल