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बरसों बाद मिस्र में रिलीज़ होगी भारतीय फ़िल्म

११ फ़रवरी २०१०

भारत में शाह रुख़ ख़ान की 'माय नेम इज़ ख़ान' को शिव सेना और वीएचपी जैसे संगठन सिनेमाओं में न चलने देने की धमकी दे रहे हैं, वहीं यह मिस्र में 15 साल बाद रिलीज़ होने वाली पहली भारतीय फ़िल्म होगी.

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मिस्र में भी 'माय नेम इज़ ख़ान'तस्वीर: AP

इस बार 33वें काहिरा अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में भारतीय फ़िल्मों को ख़ास तौर पर पेश किया गया था. वहां भारत की 25 से भी ज़्यादा फ़िल्में दिखाई गईं. काहिरा में मौलाना आज़ाद भारतीय सांस्कृतिक केंद्र का कहना है कि मिस्र के सिनेमाओं को 'माय नेम इज़ ख़ान' की कॉपियां मिलेंगी जो 12 फ़रवरी को दुनिया भर में रिलीज़ हो रही है. इस तरह 15 साल बाद कोई भारतीय फ़िल्म मिस्र के सिनेमाओं में दिखाई जाएगी. 

1950 की दशक से ही भारतीय फ़िल्में मिस्र में लोकप्रिय रही हैं लेकिन हाल में वहां कॉमेडी फ़िल्मों का दौर चला और स्थानीय फ़िल्मों में लोग ज़्यादा रुचि लेने लगे. 1980 में वहां भारतीय फ़िल्में इतनी लोकप्रिय होने लगीं कि मिस्र के फ़िल्म उद्योग को बचाने के लिए सरकार को क़ानून बनाना पड़ा, जिसके तहत सिनेमा मालिकों से स्थानीय फ़िल्में को अहमियत देने को कहा गया. क़ानून के मुताबिक़ भारतीय फिल्मों को थियेटरों में ज़्यादा से ज़्यादा पांच हफ्तों तक दिखाने की अनुमति थी. मिस्र में दिखाए जाने वाली हर भारतीय फिल्म के लिए एक स्थानीय फ़िल्म का होना ज़रूरी हो गया.

फ़ॉक्स वॉर्नर फ़िल्म कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि आंतोआन ज़िंद बताते हैं कि कि एक ऐसा दौर था, जब भारतीय फ़िल्मों में कुछ नया देखने को नहीं मिल रहा था और लोग इनमें कम दिलचस्पी लेने लगे. लेकिन अब भारतीय फ़िल्में हॉलीवुड की फ़िल्मों जितनी अच्छी होती हैं. काहिरा मे फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूशन एजेंसी चला रहे ज़ायद अल कुर्दी कहते हैं, "भारतीय फ़िल्मों पर अब बहुत पैसा ख़र्च किया जा रहा है, जो दिखता भी है. भारतीय फ़िल्मों में दशर्कों को खींचने वाली तमाम बातें होती हैं. प्रेम कहानी, गाने, डांस और ख़ूबसूरत नज़ारे, सब कुछ है. फिर भला वे मिस्र में क्यों कामयाब नहीं होंगी."

रिपोर्टः पीटीआई/एम गोपालकृष्णन

संपादनः ए कुमार