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बांग्लादेश में अभिव्यक्ति पर पहरा बिठाने वाला कानून

प्रभाकर मणि तिवारी
१० अक्टूबर २०१८

पत्रकारों और मानवाधिकार संगठनों के भारी विरोध के बीच बांग्लादेश सरकार ने विवादास्पद डिजिटल सुरक्षा विधेयक को कानूनी जामा पहना दिया है. लंबे अरसे से भारी विरोध झेलने के बावूजद सरकार ने यह कानून बनाया है.

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Bangladesch Premierministerin Sheikh Hasina zum Gesetz zur digitalen Sicherheit
तस्वीर: government's press department

बांग्लादेश में जल्दी ही आम चुनाव होने हैं. उससे पहले इस कानून को खासकर सोशल मीडिया पर सरकार की नीतियों व फैसलों के विरोध में उठने वाली आवाजों पर अंकुश लगाने की कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है. पत्रकारों और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इससे खासकर सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी और खतरे में पड़ जाएगी. बड़े पैमाने पर विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस कानून का बचाव करते हुए इसे देशहित में करार दिया है. यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के विश्व प्रेस आजादी सूचकांक में बांग्लादेश 146वें स्थान पर है. वह म्यांमार, कंबोडिया और दक्षिणी सूडान जैसे देशों से भी पीछे है.

नया कानून

बांग्लादेश की संसद ने 19 सितंबर को ही डिजिटल सुरक्षा विधेयक को पारित कर दिया था. उसी समय पत्रकारों और मानवाधिकार संगठनों के अलावा विपक्षी बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) ने इसका विरोध किया था. इसके बाद सरकार ने विधेयक के विवादास्पद प्रावधानों में संशोधन का भरोसा दिया था. लेकिन इस सप्ताह इसे बिना किसी संशोधन के ही पारित कर दिया गया. नए कानून में सरकार और सुरक्षा एजंसियों को असीमित अधिकार दिए गए हैं. इसके तहत सात से 14 साल तक की सजा और 25 लाख से एक करोड़ रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. इसके तहत ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज हो सकता है जो किसी सरकारी दफ्तर में कोई गोपनीय सूचना हासिल करने का प्रयास कर रहा हो या कोई सरकारी सूचना किसी दुश्मन को मुहैया कराए.

इस कानून की धारा 57 के तहत सिर्फ पुलिस व सरकारी एजंसियां ही नहीं बल्कि कोई आम नागरिक भी किसी के खिलाफ शिकायत कर सकता है. इससे इस कानून के सत्तारुढ़ अवामी लीग के नेताओं व समर्थकों के लिए एक सशक्त हथियार बनने का खतरा है. हालांकि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने यह कहते हुए नए कानून का बचाव किया है कि अगर कोई पत्रकार फर्जी खबरों के जरिए लोगों को गुमराह करने का प्रयास नहीं करता तो उसे डरने की कोई जरूरत नहीं है. हसीना का कहना है कि सरकार की नीतियों के खिलाफ उकसाने वाले लेख लिखने या छापने वाले के खिलाफ कार्रवाई जरूर की जाएगी. हसीना आरोप लगाती हैं, "पत्रकार सिर्फ अपने बारे में सोच रहे हैं, समाज के हितों के बारे में नहीं. इसी वजह से वह लोग इसका विरोध कर रहे हैं.”

dw freedom Shahidul Alam
शहिदुल आलम

आलोचकों के खिलाफ कार्रवाई

बांगलादेश सरकार ने हाल में अपने आलोचकों का मुंह बंद करने की कार्रवाई के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी हैं. बीते दो-तीन वर्षों के दौरान देश में आधा दर्जन से ज्यादा ब्लॉगरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. सरकार खासकर मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का हरसंभव प्रयास करती रही है. इस साल अगस्त में छात्रों के आंदोलन के बाद कई पत्रकारों और फोटोग्राफरों के खिलाफ कार्रवाई की गई. जाने-माने फोटो पत्रकार शहीदुल आलम दो महीने से ज्यादा समय से जेल में हैं. एक दर्जन से ज्यादा पत्रकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता सरकार की आलोचना के लिए लंबे अरसे से जेलों में सड़ रहे हैं. इस साल जून में एक साप्ताहिक अखबार के संपादक शाहजहां बच्चू की भी अज्ञात लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. दिलचस्प बात यह है कि पत्रकारों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या के मामलों में अब तक किसी को भी सजा नहीं हो सकी है. इससे इन आरोपों को बल मिलता है कि इन घटनाओं के पीछे सरकार का समर्थन है.

इस महीने जारी एक रिपोर्ट में ढाका स्थित मानवाधिकार संगठन ओधिकार ग्रुप ने बताया कि किस तरह विपक्षी नेता, कार्यकर्ता व छात्र रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे हैं. इस संगठन का दावा है कि अकेले सितंबर में ही सुरक्षा एजेंसियों ने बिना कारण बताए 30 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर में जो 30 लोग रहस्यमय तरीके से गायब हुए थे उनमें से 26 की गिरफ्तारी की पुष्टि सरकार ने कई दिनों बाद की. बाकी लोगों में से तीन की मौत हो गई जबकि एक अब भी लापता है.

व्यापक विरोध

सरकार के नए कानून का व्यापक विरोध हो रहा है. स्थानीय समूहों के अलावा अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी इसकी आलोचना करते हुए इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का प्रयास करार दिया है. उनका कहना है कि यह कानून लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है. एडिटर्स काउंसिल ने इस कानून का विरोध करते हुए कहा है कि इससे भय और असुरक्षा का माहौल पैदा होगा. नतीजतन खासकर खोजी पत्रकारिता करना असंभव हो जाएगा.

विपक्षी बीएनपी ने इसे काला कानून करार दिया है. पार्टी के महासचिव जनरल मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर कहते हैं, "हम इस कानून को स्वीकार नहीं करेंगे. इस मुद्दे पर बीते महीने सरकार के साथ बातचीत करने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल बांग्लादेश फेडरल जर्नलिस्ट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष मजुरूल अहसान बुलबुल कहते हैं, "बीते महीने सरकार ने इस कानून में संशोधन का भोरसा दिया था. लेकिन इसे जस का तस पारित कर दिया गया. सरकार ने हमारे किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.”

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस नए कानून की आलोचना हो रही है. न्यूयॉर्क स्थित संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के संकल्प का साफ उल्लंघन करार दिया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नए कानून को अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरनाक पाबंदी करार देते हुए कहा है कि इसका इस्तेमाल खासकर सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाजों का गला घोंटने के लिए किया जा सकता है.

बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत मार्सिया बर्नीकैट ने कहा है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल विरोधियों की आवाजों को दबाने और लोगों को सच कहने की सजा देने के लिए कर सकती है. उनके मुताबिक, इसका बांग्लादेश के लोकतंत्र, विकास और समृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है.

हालांकि कानून मंत्री अनिसुल हक ने इन आलोचनाओं को निराधार ठहराते हुए कहा है कि समाज और डिजिटल स्पेस के हितों की रक्षा के लिए डिजिटल कानून जरूरी है. वह कहते हैं, "यह कानून मीडिया या लोकतंत्र के खिलाफ नहीं है. कैबिनेट इसमें कभी भी संशोधन कर सकती है.” अवामी लीग सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड ध्यान में रखते हुए आलोचकों को उनकी बातों पर भरोसा नहीं है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बात का अंदेशा तो पहले से ही था कि दिसंबर में होने वाले आम चुनावों से पहले सरकार विपक्ष और आलोचकों का मुंह बंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. अब यह आशंका सही साबित हो रही है. ढाका विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर डा. आसिफ नजरूल कहते हैं, "हालात दिनों-दिन बिगड़ते जा रहे हैं. यह बांग्लादेश में लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय दौर है.”

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