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बीजेपी पर गुजरात दंगों का बोझ

३ सितम्बर २०१२

जिस गुजरात की चमक को बीजेपी अपनी कामयाबी का सूरज बनाना चाहती है उसी राज्य के दंगे उसके माथे पर काले बादल बन छा जाते हैं. कोर्ट का ताजा फैसला बीजेपी की दुविधा को और बलवान कर गया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

10 साल बीत गए हैं लेकिन अब्दुल शेख के लिए अब भी यकीन करना मुश्किल है कि जिस डॉक्टर ने उनकी बीवी की कोख में पल रहे बच्चे का अल्ट्रासाउंड स्कैन किया वही कुछ दिनों बाद एक उन्मादी भीड़ का नेतृत्व कर रही थी और इन भड़के लोगों की हिंसा ने उनकी बीवी और अजन्मे बच्चे की जान ली. पिछले हफ्ते जिन लोगों की गवाही पर अदालत ने 31 लोगों को 2002 के दंगों में मुस्लिम समुदाय के लोगों को मारने का दोषी करार दिया उनमें अब्दुल शेख भी हैं. वो कहते हैं, "मुझे याद है, हंगामा सुन कर मैं बाहर निकला तो देखा डॉ कोडनानी हजारों लोगों की भीड़ को उकसा रही थीं, वो चीख रही थीं." अदालत ने डॉ माया कोडनानी को भी दोषी माना हैं. कोडनानी भारतीय जनता पार्टी की विधायक हैं.

Narendra Modi Indien Ministerpräsident Gujarat
तस्वीर: AP

चश्मदीदों की अदालत में गवाही कि कोडनानी ने उन्मादियों को तलवारें बांटी और उनसे खूनखराबा करने को कहा निश्चित रूप से भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी के लिए शर्मनाक है. अदालत के फैसले ने बीजेपी को फिर वहीं ला खड़ा किया हैं जहां वो कट्टरपंथी और खतरनाक दिखती है और जहां से 2014 के चुनावों के लिए उदारवादी और जिम्मेदार दिखने की उसकी कोशिशें नाकाम होती नजर आती हैं.

राजनीतिक विश्लेषक अमूल्या गांगुली कहते हैं, "पार्टी का मूल उग्र सुधारवादी है, उसके गले में एक भारी बोझ टंगा है और वो उसे लगातार नीचे की ओर खींचता रहेगा." अदालत के फैसले पर बीजेपी के खेमे में छाई खामोशी से भी इसे समझा जा सकता है. राजनीतिक आलोचकों का कहना है कि कोडनानी और दूसरे दोषी लोगों की निंदा ना करके बीजेपी ने यह जता दिया है कि उसे समर्थकों से दूर होने का डर है. बीजेपी के नेता इस मामले के राजनीतिक नतीजों से जुड़े सवालों का सामना करने से बच रहे हैं और अगर उनका मुंह खुला है तो बस गुजरात के न्याय तंत्र की तारीफ में.

Indien Urteil nach Unruhen in Gujarat vor 10 Jahren Mayeben Kodnani
तस्वीर: dapd

अदालत का फैसला बीजेपी के लिए प्रधानमंत्री पद के सबसे काबिल उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भी बड़ा झटका दे गया है. आलोचकों का कहना है हिंदू तीर्थयात्रियों को ले जा रही ट्रेन में संदिग्ध मुस्लिमों के आग लगाने के बाद भड़के 2002 के धार्मिंक दंगों के दौरान मोदी ने अपनी आंखें बंद रखी जिसमें 2500 लोग मारे गए. मोदी का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं है जिस पर वो माफी मांग सके लेकिन वो मोदी ही थे जिन्होंने कोडनानी को महिला और बाल विकास विभाग में मंत्री बनाया. 2007 में मंत्री बनाए जाने के बहुत पहले ही कोडनानी पर दंगों में शामिल होने के आरोप लग चुके थे.

अहमदाबाद की झुग्गी बस्ती नरोदा पाटिया 28 फरवरी 2002 के दिन जिस दहशत में घिरी था उसका अब कोई निशान बाकी नहीं है. चिकने पत्थर बिछी गलियों में बच्चे मुर्गियों और बकरियों के साथ खेलते नजर आते है तो छोटे छोटे नीले, हरे, गुलाबी घरों के बरामदे में महिलाएं धूप सेंकती या आराम फरमाती नजर आती हैं. इन सबके बावजूद लोगों के जेहन में पड़ोस से उठते काले धुएं, टूटते कांच, गोलियों की आवाजें और 95 दोस्तों रिश्तेदारों की चीखें ताजा हैं जो दंगे के उन्माद की भेंट चढ़ गए. स्कूल मास्टर नाजिर खान को याद है कि कैसे वो अपनी बीवी के साथ जमीन के नीचे बनी पानी की टंकी में चार घंटे तक छिपे रहे. दंगाइयों की भीड़ ने इस दौरान उनका घर लूटा, फर्नीचर तोड़े और फिर आग लगा दी. नाजिर बताते हैं "हम तक उनकी आवाज पहुंच रही थी और धुएं से हमारा दम घुट रहा था. मैं हमेशा समझता था कि यह सब सिर्फ फिल्मों में होता है लेकिन मैं गलत था. उस दिन की तकलीफ का हर सेकेंड मेरे दिमाग में हमेशा के लिए दर्ज हो गया."

कोर्ट में खड़े दोषियों के बीच एक प्रमुख चेहरा बाबू बजरंगी का भी है. बाबू बजरंगी पर एक गर्भवती महिला की पेट तलवार से चीरने का आरोप है. बाबू बजरंगी एक प्रमुख हिंदु राष्ट्रवादियों के संगठन की युवा शाखा बजरंग दल का नेता है. इस संगठन के भारतीय जनता पार्टी से रिश्ते हैं. बजरंग दल की कई हरकतों ने समय समय पर बीजेपी को मुंह छिपाने पर मजबूर किया है.

इसमें कोई शक नहीं कि 61 साल के नरेंद्र मोदी के पास महत्वाकांक्षा और व्यक्तित्व है. प्रमुख उद्योगपतियों के बीच उनकी छवि 2002 के बाद से गुजरात के बेहतरीन प्रशासक की है. उनकी सुधारवादी नीतियां और निवेश की परियोजनाएं गुजरात को लंबे समय से आर्थिक उन्नति की राह पर आगे बढ़ा रही हैं. राजनीति के पंडित इस साल के आखिर में होने वाले विधान सभा चुनावों में उनकी जीत तय मान रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं कई रायशुमारियों में यह बात जाहिर हो चुकी है कि अगर शहरी भारतीयों को चुनना हो तो देश का अगला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे, राहुल गांधी नहीं जिनके पास नेहरू-गांधी की विरासत और जिन्हें कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने के लिए तैयार किया जा रहा है.

Indien Urteil nach Unruhen in Gujarat vor 10 Jahren Babulal Bajrangi
तस्वीर: dapd

मोदी की मुश्किल यह है कि बहुत से लोग उन्हें संदेह की नजर से देखते हैं और इसमें केवल मुस्लिम ही नहीं हैं जो देश के कुल वोटरों का 13 फीसदी हिस्सा हैं. गुजरात के दंगों में 27 साल का बेटा गंवाने वाले सलीम आर शेख कहते हैं, "इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि उन्होंने हमारे राज्य को समृद्ध बनाया है. आपके पास यहां बड़ी कंपनियां हैं. बड़ी इमारतें हैं लेकिन क्या यह सब उसे छिपा सकते हैं जो हुआ? क्या यह पैसा मेरे बेटे को वापस ला सकता है? मोदी किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं."

कोर्ट के फैसले ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या बीजेपी 2014 के चुनावों में अपने सहयोगियों को साथ रख पाएगी. इनमें से कई तो पहले से ही नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी पर अपना विरोध जता चुके हैं. अमूल्या गांगुली कहते हैं, "यह फैसला उनके प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पर एक और बड़ी चोट है. बीजेपी की दुविधा यह है कि उनके पास जो एक मात्र उम्मीदवार है वह विभाजनकारी है."

एनआर/एएम (रॉयटर्स)

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