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बुध ग्रह बताएगा सौरमंडल कैसे बना!

२२ अक्टूबर २०१८

बुध ग्रह का भीतरी भाग तरल है या फिर ठोस और ऐसा क्यों है? क्या सूर्य के सबसे नजदीकी ग्रह से पता चल सकता है कि सौरमंडल का निर्माण कैसे हुआ? एक मानवरहित अंतरिक्ष यान इन बातों की छानबीन करने अंतरिक्ष में गया है.

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BepiColombo Sonde fliegt zum Merkur
तस्वीर: picture alliance/dpa/NASA/JPL

जापान और यूरोप के इस संयुक्त अंतरिक्ष अभियान को बेपी कोलंबो कहा जा रहा है. फ्रेंच गुयाना से शनिवार को आरियाने रॉकेट के जरिए दो यानों को अंतरिक्ष भेजा गया. पेरिस ऑब्जरवेटरी के अंतरिक्षविज्ञानी अलायन डोरेसाउंडिरम ने समाचार एजेंसी एएएफपी से बातचीत में कहा, "पृथ्वी कैसे बनी यह समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि चट्टानी उपग्रहों का निर्माण कैसे हुआ. बुध सबसे अलग है और हम नहीं जानते कि ऐसा क्यों है."

हालांकि सबसे पहले तो उपकरणों को ले जा रहे आरियाने 5 रॉकेट को मंजिल पर पहुंचने के लिए सात साल और नब्बे लाख किलोमीटर की यात्रा करनी होगी. लॉन्च के बाद आरियाने ग्रुप की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि यान पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल गया है और उसने प्रति घंटे 40 हजार किलोमीटर की गति से अपनी यात्रा शुरू कर दी है.

Planet Merkur
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NASA /JHU Applied Physics Lab/Carnegie Inst. Washington

फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर स्पेस रिसर्च के इंजीनियर पिएरे बुस्क्वे मिशन में शामिल फ्रेंच टीम का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बुध ग्रह असाधारण रूप से छोटा है और इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि अपने शुरुआती दिनों में इसने विशाल टक्करों का सामना किया. बुस्क्वे ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "इसकी सतह पर दिखने वाला एक विशाल गड्ढा मुमकिन है कि उन टक्करों के कारण बना हो." इस बात की सच्चाई का पता लगाना भी बेपीकोलंबो के कामों में शामिल है. इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि बुध ग्रह का भीतरी हिस्सा इसके कुल वजन का सबसे ज्यादा यानी करीब 55 फीसदी क्यों है. पृथ्वी का भीतरी हिस्सा यानी क्रोड उसके वजन का महज 30 फीसदी है. सूरज की परिक्रमा करने वालों में पृथ्वी के अलावा बुध अकेला ऐसा चट्टानी ग्रह है जिसके पास चुंबकीय क्षेत्र है. इसके आकार को देखते हुए चुंबकीय क्षेत्र तरल क्रोड की वजह से भी उत्पन्न हो सकता है. हालांकि बुध को अब तक ठंडा हो कर जम कर ठोस बन जाना चाहिए था जैसा कि मंगल ग्रह के मामले में हुआ है.

बुध ग्रह कई मामलों में चरम पर है. इसकी सतह पर तापमान गर्म दिन में 430 डिग्री सेल्सियस तो ठंडी रातों में माइनस 180 डिग्री सेल्सियस के बीच झूलता रहता है. ऐसे दिन और ऐसी रातें पृथ्वी के तीन तीन महीनों तक चलती हैं. इससे पहले के कुछ अभियानों में ग्रह के ध्रुवीय ज्वालामुखियों में बर्फ होने के सबूत मिले हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बुध ग्रह की सतह पर धुमकेतुओं के टकराने के कारण ऐसा हुआ होगा. डोरेसाउंडरिम का कहना है, "अगर बर्फ की मौजूदगी की पुष्टि हो जाती है तो इसका मतलब है कि पानी के कुछ नमूने सौरमंडल की उत्पत्ति के समय के हैं." इनके जरिए सौरमंडल के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है.

बुध ग्रह सूरज से करीब 5.8 किलोमीटर दूर है यानी पृथ्वी से करीब तीन गुना ज्यादा. बुस्क्वे ने बताया, "यह ग्रह सौर हवाओं की मार भी झेलता है." इस हवा में बहुत से विद्युत आवेशित कण होते हैं जो इसकी सतह पर 500 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से बरसते रहते हैं. वैज्ञानिक इन हवाओं के असर का भी अध्ययन कर सकेंगे. पृथ्वी के वायुमंडल से टकराने वाली हवाओं की तुलना में ये हवाएं करीब 10 गुना ज्यादा मजबूत हैं.  

बेपी कोलंबो अभियान में दो अंतरिक्षयान काम करेंगे. बुध की परिक्रमा करने वाला ऑर्बिटर जिसे यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बनाया है. यह ग्रह की सतह और उसके भीतरी घटकों की जांच करेगा. दूसरा यान है मरकरी मैग्नेटोस्फेरिक ऑर्बिटर जिसे जापान की एयरोपस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने बनाया है. यह ग्रह के चारों ओर मौजूद क्षेत्र की जांच करेगा जिस पर बुध के चुंबकीय क्षेत्र का असर होता है. इसका नाम बेपी कोलंबो उस इटैलियन गणितज्ञ के नाम पर रखा गया है जिसने सबसे पहले बुध ग्रह की परिक्रमा और कक्षा के बीच संबंध को समझाया था. 

एनआर/आईबी (एएफपी)

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