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समाज

बुरके पर क्या कहता है इस्लाम?

फैसल फरीद
२ मई २०१९

श्रीलंका में हुए आतंकी हमले के बाद वहां सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर बुरका पहनने पर पाबंदी लगा दी है. भारत में भी इस पर प्रतिक्रया हुई है. शिवसेना समेत कई हिंदूवादी संगठनों ने बुरका पहनने पर पाबंदी लगाने की मांग की है.

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Niederlande Holland Burka
तस्वीर: AP

बीस वर्षीय आफरीन फातिमा बीए तृतीय वर्ष कि छात्रा हैं. भारत की मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं. वे वहां वीमेन कॉलेज छात्र संघ की अध्यक्ष भी हैं. आफरीन बुरका नहीं पहनतीं. बुरके पर बहस को वे बेकार का मुद्दा बताती हैं, "येह एक बिलकुल पर्सनल मामला है. जिसे पसंद है, वह पहने. जिसे नहीं, वह ना पहने. इसमें किसी तरह की रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता. सबको अपने पसंद के कपड़े पहनने की आजादी होनी चाहिए. अगर हम नहीं पहनते तो क्या हुआ?"

आफरीन इस मुद्दे को बिलकुल अलग ढंग से देखती हैं. वह बताती हैं, "मुझे भी यह बताने और अहसास दिलाने की कई बार कोशिश की गई कि मैं मुसलमान हूं और मुझे बुरका पहनना चाहिए. लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि बुरका ना पहनने से मैं कहीं कम मुसलमान हूं."

आम तौर पर यह कारण दिया जाता है कि बुरका सीधे लड़कियों की हिफाजत से जुड़ा हुआ है. बुरका पहनने से वे सुरक्षित रहती हैं, छेड़छाड़ से बची रहती हैं, लड़को की गंदी नजरें उन पर नहीं पड़तीं. लेकिन आफरीन के अनुसार, "ऐसा बिलकुल नहीं हैं. इस्लाम में साफ कहा गया है कि मर्दों को भी अपनी नजर नीचे रखनी चाहिए. अगर किसी की नजर में ही खोट है तो वह वही करेगा. कई बार तो बुरका पहनने वालों का भी रेप हो जाता है."

मुस्लिम महिलाएं दोनों तरह के विचार रखती हैं. अब वे घर से बाहर भी निकलती हैं, पढ़ने जाती हैं और ऑफिस भी. इनमें से कई बुरका नहीं पहनती हैं. लखनऊ निवासी सय्यदा खतीजा एक गृहणी हैं. वे अपने बच्चों के साथ अकेले रहती हैं क्योंकि उनके पति नौकरी की वजह से बाहर हैं. वे खुद कार से बच्चों को स्कूल तक छोड़ती हैं और लेने भी जाती हैं. खतीजा बताती हैं, "कोई खास वजह नहीं हैं लेकिन मैं बिना बुरके के ज्यादा सहज महसूस करती हूं. अगर कोई पहनता है, तो उसका सम्मान है और यह उसका निजी मामला है. वैसे मुझे नहीं लगता कि मैं कुछ कम मुसलमान हो गई हूं."

इसी तरह रिजवाना बानो केंद्र सरकार में अधिकारी हैं. दिल्ली में रहती हैं और बुरका नहीं पहनती हैं. वे कहती हैं, "इस तरह की कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए. क्या पहनें, ना पहनें, यह लड़की की मर्जी है. इसे अपराध से जोड़ना बिलकुल इल्लोजिकल बात है." अगर कभी मीडिया में मुस्लिम महिला से संबंधित कोई तस्वीर दिखानी होती है, तो बुरका पहने महिला की तस्वीर दिखाई जाती है, जबकि बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं स्वेच्छा से बुरका नहीं पहनती हैं.

बुरका, हिजाब या नकाब: फर्क क्या है?

लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली बताते हैं कि इस्लाम में बुरका नहीं, बल्कि पर्दा बताया गया है. कोई इसको चादर ओढ़ कर भी कर सकता है. यह इस पर भी निर्भर करता है कि किसी के लिए चेहरा ढ़क जाये तभी पर्दा है कुछ लोग बिना चेहरा ढंके भी पर्दा कर लेते हैं. उनका कहना है, "इस्लाम में साफ कहा गया है कि औरतें जब बाहर निकलें, तो चेहरा ढंक कर और सभ्य कपड़े पहन कर निकलें. वहीं मर्दों के लिए भी कहा गया है कि वे अपनी नजरें नीची रखें और किसी पर गलत नजर ना रखें."

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद के अनुसार, "बुरका कब भारत में आया, यह कहना सटीक तौर पर मुश्किल है लेकिन खुद को ढंकने के लिए इस प्रकार का ढ़ीला कपड़ा पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पहले मध्य एशिया में मौजूद था. इसके अलावा घूंघट जो कि एक तरह की पर्दा प्रथा है और राजस्थान में सर्वाधिक है लेकिन कोई मुस्लिम शासक उस रास्ते से नहीं आया था."

समय समय पर बुरके को लेकर राजनीती होती रहती है. श्रीलंका हादसे के बाद शिवसेना के मुखपत्र सामना में इसके समर्थन में आलेख लिखा गया.  ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके लिखा, "ऐसे लोग घूंघट हटाने के बारे में क्या कहेंगे? इस पर प्रतिबंध कब लगेगा? कल को कहेंगे कि आपके चेहरे पर दाढ़ी ठीक नहीं है, टोपी मत पहनिए."

जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने लिखा, "बुरके पर प्रतिबंध का आहवान इस्लामोफोबिया की लपटों को बढ़ा देगा. यह मुस्लिम महिलाओं को देखने के नजरिए को भी प्रभावित करेगा." सुरक्षा के मुद्दे पर समीक्षा को छोड़ कर अब यह बहस हस हिंदू और मुस्लिम के फर्क की हो गई है.

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