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समाज

नाले से बरामद हुए 19 'होने वाली बेटियों' के भ्रूण

क्रिस्टीने लेनन
६ मार्च २०१७

भारत में भ्रूण की पहचान पर रोक है और भ्रूण हत्या को गंभीर अपराध माना गया है. इसके बावजूद भ्रूण हत्या, खासतौर पर कन्या भ्रूण हत्या के अनेकों मामले सामने आते रहते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. F. Calvert

लिंगभेदी मानसिकता और युवाओं में यौन विषयक जागरूकता के अभाव के चलते भारत में भ्रूण हत्या के अनेकों मामले हर साल सामने आते हैं. गर्भ की पहचान या एक नियत समय के बाद गर्भ को गिराये जाने पर पाबन्दी के बावजूद लोग भ्रूण हत्या से परहेज नहीं कर रहे हैं. महाराष्ट्र के सांगली से एक ऐसा ही मामला सामने आया है. यहां से 19 बच्चियों के भ्रूण को पुलिस ने बरामद किया है.

कोख में मार दी जाती हैं बच्चियां

‘बेटी बचाओ अभियान' के बावजूद देश में कन्या भ्रूण हत्या के अनेकों मामले सामने आते रहते हैं. ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला मामला महाराष्ट्र के सांगली से आया है. इस जिले के महसाल गांव में एक नाले के अंदर से 19 भ्रूण बरामद हुए. बच्चियों के भ्रूण को प्लास्टिक की थैलियों में बंद कर नाले में दबा दिया गया था. मामले का खुलासा तब हुआ, जब एक 26 वर्षीय महिला की गर्भपात के दौरान मौत हो गयी. यह महिला पहले से ही दो बेटियों की मां थी. पति ने सांगली के एक अस्पताल में भ्रूण की जांच करवाई. फिर बेटी होने का पता चलने पर पति ने एबॉर्शन कराने का फैसला लिया जिसमें महिला की मौत हो गई.

सांगली के एसपी दत्तात्रेय शिंदे के अनुसार महिला की मौत के मामले में गांव वालों को कुछ संदेह हुआ. इसके बाद गांव वालों ने पुलिस में इसकी शिकायत की जिसके बाद इस रैकेट का खुलासा हुआ. पुलिस ने अब तक 19 कन्या भ्रूण के अवशेष बरामद किये हैं. इन भ्रूणों को ठिकाने लगाने के मकसद से इन्हें मार कर जमीन में दबा दिया गया था. अभी और भी ऐसे भ्रूण बरामद होने की आशंका है.

लिंगभेदी मानसिकता

भ्रूण हत्या के ज्यादातर मामलों में लिंगभेद की मनोवृत्ति एक कारण के रूप में सामने आती है. तमाम जागरूकता के बावजूद समाज में लिंगभेद की समस्या बरकरार है. पुरुष प्रधान समाज अब भी लड़कियों के प्रति सौतेला रवैया अपनाता है. अधिवक्ता और महिला अधिकार कार्यकर्ता आरती चंदा का कहना है कि भ्रूण हत्या के अधिकतर मामलों में भ्रूण कन्या का ही होता है. उनका कहना है कि देश के कई शहरों और कस्बों में कोख में बच्चियों को मारने का खेल चल रहा है. अल्ट्रासाउंड मशीन का अविष्कार पेट के रोगों की पहचान कर उसका उपचार करने के उद्देश्य से किया गया था लेकिन अब भ्रूण हत्या के लिए इसका दुरूपयोग हो रहा है. जानकार भी मानते हैं कि अल्ट्रासाउंड के प्रसार का लिंगभेदी लोगों ने गलत उपयोग किया है. डॉक्टर रमा कहती हैं कि पिछले 15-20 सालों में अल्ट्रासाउंड मशीन की पहुंच छोटे शहरों तक हो गयी है. अब ऐसे जगहों से भी कन्या भ्रूण हत्या की खबरें आती रहती हैं.

यौन विषयक जागरूकता

शादी से पहले मां बनने को भारत में अच्छा नहीं माना जाता है. बहुत से युवा सेक्स सम्बन्धी जागरूकता का अभाव होने के चलते इस समस्या में घिर जाते हैं. छोटे शहरों और गांव में यह समस्या ज्यादा गंभीर है. डॉक्टर रमा कहती हैं कि बहुत सी लड़कियां इस बात से अनजान रहती हैं कि वह गर्भ धारण कर चुकी हैं. जब पता चलता है तो बदनामी के डर से वे भ्रूण को गिराना चाहती हैं. सामाजिक कार्यकर्ता बीके नायक कहते हैं कि ग्रामीण युवाओं में यौन सम्बन्धी जागरूकता कम है इसलिए असुरक्षित यौन संबंधो के चलते उन्हें बाद में छिप छिपाकर कर गर्भपात को विवश होना पड़ता है. जानकार कहते हैं कि इस दौरान जो तरीके अपनाए जाते हैं, वे गर्भवती महिला के लिए भी जानलेवा साबित होते हैं.

अभियान छेड़ने की जरूरत

यह बात सही है कि शहरी युवाओं में यौन सम्बन्धी जानकारी बढ़ी है लेकिन अभी भी इसके व्यापक प्रसार की जरूरत है. खासतौर पर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए और कदम उठाये जाने की आवश्यकता है. कन्या भ्रूण हत्या का असर लिंगानुपात पर भी पड़ता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक हर एक हजार पुरुषों पर 940 महिलाएं है. 2001 के 933 के मुकाबले इसमें सुधार आया है. जागरूकता के जरिये इस आंकड़े में और सुधार की उम्मीद जताते हुए आरती चंदा कहती हैं कि सिर्फ कानून के सहारे इस समस्या को दूर नहीं किया जा सकता. वे कहती हैं, "अगर कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है तो समाज को जागरूक करना पड़ेगा."