भारत की सड़कों से लुप्त होता रिक्शा और परेशान रिक्शेवाले
दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में गैरकानूनी हो चुका रिक्शा अब भारत की सड़कों से भी धीरे धीरे लुप्त हो रहा है. रिक्शा खींचने वाले रोजगार छिनने से परेशान हैं.
हाथ से खींचा जाने वाला रिक्शा
कोलकाता शायद अब धरती पर अकेली ऐसी जगह है जहां आज भी हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे चल रहे हैं. हालांकि यहां भी कई साल पहले ही इस पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जा चुकी है.
भारी मेहनत का काम
कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा खींचते मोहम्मद मकबूल अंसारी फूंक मार कर पसीना सुखाते हैं. मोहम्मद अंसारी सैकड़ों रिक्शा चालकों में हैं जो अब भी कोलकाता में हाथ वाला रिक्शा खींच रहे हैं.
दशकों पुराना काम
62 साल के मोहम्मद अंसारी बीते चार दशको से रिक्शा खींच रहे हैं, इंसान हो या सामान, चिलचिलाती गर्मी हो या बरसात कोलकाता की व्यस्त सड़क पर उनके रिक्शे के पहिए हर रोज घूमते रहते हैं.
भीड़ भरी सड़कों पर
सड़कों पर चाहे कितनी भीड़ हो और रिक्शे में चाहे कितना भी वजन मोहम्मद अंसारी उनके बीच से अपने रिक्शे के लिए रास्ता बना कर तेजी से निकल जाते हैं.
मध्यमवर्ग की शाही सवारी
इतनी महंगाई में भी रिक्शा कम पैसे वालों को शाही सवारी का मजा देता है. 20 मिनट के सफर के बाद महमूद अंसारी को 50 रुपये मिलते हैं. ज्यादा कहेंगे तो कोई 10 रुपये और दे देगा कोई वो भी नहीं.
गुम हो रहा है रिक्शा
धीरे धीरे रिक्शों की तादाद घटती चली गई और उनकी जगह ऑटोरिक्शा, या कोलकाता की मशहूर पीली टैक्सी और अब उबर या ओला जैसे आधुनिक टैक्सी सेवाएं का सड़कों पर बोलबाला है.
रोजगार की चिंता
मोहम्मद अंसारी के लिए वो दिन कल्पना से परे हैं जब कोलकाता की सड़कों पर उनके रिक्शे के लिए जगह नहीं बचेगी. अपने जैसे सैकड़ों लोगों के लिए रोजगार का सवाल उन्हें परेशान करता है.