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भारत में मानवाधिकारों का उल्लंघन 

मारिया जॉन सांचेज
१४ सितम्बर २०१८

यूएन महासचिव की ताजा रिपोर्ट में भारत को उन 38 "शर्मनाक" देशों की सूची में रखा गया है जहां मानवाधिकारों और उनके लिए सक्रिय लोगों और संगठनों का बड़े पैमाने पर दमन हो रहा है और सरकारों का रवैया दमन को बढ़ावा देने वाला है.

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Indien - Protest gegen Hass und Mob Lynchen
तस्वीर: Imago/Hundustan Times

भारत के साथ साथ इस सूची में रूस और चीन जैसे देश भी शामिल हैं.  रिपोर्ट में मानवाधिकार संगठनों को मिलने वाली वित्तीय सहायता पर रोक लगाने के सरकारी प्रयास और इस दिशा में बनाए गए कानूनों का भी जिक्र किया गया है. जहां तक भारत का सवाल है, मानवाधिकारों के मामले में यहां स्थिति पहले भी कभी बहुत अच्छी नहीं रही लेकिन जब से साढ़े चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार केंद्र में सत्ता में आयी है, तब से स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन आया है और वह अधिक से अधिक खराब होती गई है. 

29 अगस्त को देश भर में जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के घरों पर पड़े छापों और पांच प्रमुख कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से यह स्पष्ट हो गया है कि आने वाले दिनों में यह प्रक्रिया और भी अधिक तेज होने वाली है. इन्हें जिस तरह प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में शामिल दिखाया जा रहा है, उसी से स्पष्ट है कि पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां किसी भी बहाने मानवाधिकार आंदोलन को कुचलने और उसमें सक्रिय लोगों को जेल के सींखचों के पीछे धकेलने पर आमादा हैं. 

इस संबंध में सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि बेहद योजनाबद्ध तरीके से सत्तारूढ़ पार्टी और उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े अनेक आनुषंगिक संगठनों के द्वारा गौरक्षा, लव जिहाद और घर वापसी जैसे मुद्दों पर गैर-सरकारी समूहों की अल्पसंख्यक-विरोधी हिंसा को खुली छूट दे दी गई है और पिछले चार सालों से भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मारे जाने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है. पुलिस का रवैया अक्सर दोषी को संरक्षण देने और पीड़ितों पर दोष मढ़ने का रहता है. पूरे समाज में असहिष्णुता का माहौल बनाया जा रहा है जिसका एकमात्र उद्देश्य असहमति और भिन्न विचार को दबाना है. कई लेखक और सामाजिक विचारक हत्यारों की गोलियों के शिकार हो चुके हैं.  

Survival International Orissa Indien Dongria Kondh Indigenes Volk
तस्वीर: Survival International

सरकार से मतभेद रखने वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाना रोजमर्रा की बात हो गई है. दलितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को माओवादी कहकर जेल में डाल देने की प्रवृत्ति लगातार जोर पकड़ रही है. इस सिलसिले में जब अदालतें हस्तक्षेप करती हैं, तभी दमन के शिकार लोगों को कुछ उम्मीद बंधती है. हाल ही में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के दलित नेता चंद्रशेखर रावण को जेल से रिहा किया जाने की आदेश दिए गए हैं. उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत पिछले डेढ़ साल से जेल में रखा हुआ था. इसी तरह अब शहरों में रहने वाले बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को 'अर्बन नक्सल' कह कर उनका संबंध हिंसा से जोड़ने का नया क्रम शुरू हो गया है. 

कॉरपोरेट जगत जिस बेदर्दी के साथ देश के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल मुनाफा कमाने के लिए करना चाहता है और इसके लिए हर प्रकार के पर्यावरण-संबंधी नियम को ताक पर रखकर आदिवासियों की जमीन और जंगल हथिया कर उस प्राकृतिक सम्पदा का शोषण करना चाहता है, वह कोई अनजाना तथ्य नहीं है. इसका विरोध करने वालों को माओवादी कह कर सरकारी हिंसा का शिकार बनाना अब आम बात हो गई है. मुठभेड़ के नाम पर लगातार निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं. यह प्रक्रिया वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के पहले से ही जारी है और पहले की सरकारें भी इसमें बराबर की दोषी रही हैं. वर्तमान सरकार की कॉरपोरेट-समर्थक नीतियों ने इस दमनकारी प्रक्रिया को और अधिक शक्ति उपलब्ध कराई है. 

ऐसे में, यदि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की रिपोर्ट भारत को मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में दोषी देशों की सूची में ऊपर रखती है तो यह स्वाभाविक ही है. संचार क्रांति के कारण अब विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटनाओं की जानकारी मिनटों में दुनिया भर में फैल जाती है. भारत में क्या हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है. लेकिन क्या अंतरराष्ट्रीय जनमत मोदी सरकार पर कोई असर छोड़ पाएगा? अभी तक एक उसके रिकॉर्ड को देखते हुए इस बात की उम्मीद बेहद कम लगती है. 

Indien - Protest gegen Hass und Mob Lynchen
तस्वीर: Imago/Hundustan Times
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