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भूटान: शरणार्थी शिविरों में बढ़ रहा है चरमपंथ

२८ जनवरी २००९

भूटान की एक चुनौती है नेपाली अल्पसंख्यक समुदाय. कुछ साल पहले भूटान ने नेपाली मूल के लगभग एक लाख लोगों को अवैध आप्रवासी कह कर निकाल दिया था. इस बीच पूर्वी नेपाल के शरणार्थी शिविरों में उग्रपंथी दल बढ़ रहे हैं.

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लोकतंत्र नया, राजा नया, शरणार्थियों का मसला पुरानातस्वीर: picture-alliance/dpa

अठारह सालों तक शरणार्थी शिविरों में मुश्किल परिस्थियों में रहने के बाद पिछले साल लगभग 8 हज़ार भूटानी शरणार्थी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में रहने चले गए. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था 2007 से भूटानी शरणार्थियों को दूसरे देशों में बसाने का कार्यक्रम चला रही है और लगभग 60 हज़ार ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की तैयारी व्यक्त की है.

Bhutan Karte, englisch
तस्वीर: DW-Montage

नेपाल के शरणार्थी शिविरों में बहुत से परिवार हैं जिनमें मर्द नहीं हैं. उनमें से अधिकांश भारत में नौकरी के लिए गए हैं, लेकिन ऐसे भी हैं जो उग्रपंथी संगठनों में शामिल हो गए हैं. ऐसा ही एक युवा उमेश कहता है कि वह सशस्त्र संघर्ष की तैयारी कर रहा है बंदूक के बल पर भूटान की सरकार को गिरा कर अवामी गणराज्य बनाने के लिए.

नेपाल में माओवादी सशस्त्र संघर्ष और उसकी सफलता से प्रभावित इन दलों के नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ भूटान या टाइगर फोर्स हैं. इनका लक्ष्य अवामी क्रांति है और इसके लिए वे भूटान में रहने वाले 80 हज़ार नेपालियों का समर्थन जीतने का प्रयास कर रहे हैं, जिंहे भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.

इन शिविरों से 200 किलोमीटर दूर भूटान में लोगों को लोकतंत्र के पहले लाभ मिल रहे हैं. लेकिन ह्यूमन राइट्स वाच के बिल फ़्रेलिक का कहना है कि उन्हें पुलिस सर्टिफ़िकेट लेकर चलना पड़ता है कि उनका संबंध तोड़ फोड़ की गतिविधियों से नहीं है और उनके नेपाली शिविरों में रहने वाले संबंधियों के साथ संपर्क नहीं हैं.

Bhutan Flüchtlinge
प्रदर्शन करते भूटानी शरणार्थीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

भूटान के पहले लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले ने पांच साल के अंदर देश में पूरी समानता लाने का आश्वासन दिया है. निर्वासित शरणार्थियों द्वारा क्रांति लाने की संभावना को नकारते हुए प्रधानमंत्री थिनले कहते हैं कि 'भूटान जैसे छोटे देशों की सुरक्षा का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि देश में असंतोष पैदा होने की स्थिति न आए. जनता की समता और समानता के बिना भूटान में समरसता नहीं आ सकती.'

भूटान की सरकार मानती है कि शरणार्थी शिविरों में रहने वाले कुछ लोग उसके नागरिक हैं, लेकिन उसका कहना है कि देश छोड़ने वाले अधिकांश लोग अवैध आप्रवासी थे. भूटान में लोकतंत्र आने के बावजूद शरणार्थियों की देश वापसी का सपना हक़ीक़त में बदलता नहीं दिखता.