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भ्रष्टाचार के खिलाफ निष्क्रियता

१ मार्च २०१८

नरेंद्र मोदी "न खाऊंगा, न खाने दूंगा" का वादा करके सत्ता में आये थे, लेकिन चार साल सत्ता में रहने के बाद भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनकी सरकार ने कोई विशेष सक्रियता नहीं दिखाई है. कार्रवाई विपक्ष के नेताओं पर ही हुई है.

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Narendra Modi
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

अगर मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ खास सक्रियता दिखाई होती तो विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसी बड़े घोटाले करने वाले इतनी आसानी से देश से न भाग पाते. 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, किरण बेदी, प्रशांत भूषण और अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छेड़कर जनलोकपाल की नियुक्ति के बारे में विधेयक लाने की मांग उठाई थी. लेकिन अगला लोकसभा चुनाव आने में सिर्फ एक साल बाकी है और अभी तक मोदी सरकार को लोकपाल नियुक्त करने की सुध नहीं आई है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि लोकपाल नियुक्त करने के लिए उसने अभी तक क्या कदम उठाए हैं. इसके बाद आनन-फानन में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने 1 मार्च यानी आज के लिए एक बैठक तय कर दी जिसमें लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है. लेकिन सरकार की योजना पर पानी फेरते हुए खड़गे ने इस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है. पिछले सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे-सीधे प्रहार करते हुए आरोप लगाया था कि वे और उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के प्रति कतई गंभीर नहीं हैं और इसीलिए अभी तक लोकपाल की नियुक्ति तक नहीं हो पाई है.

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लोकपाल आंदोलन से सत्ता मिल गई, लेकिन लोकपाल पीछे रह गयातस्वीर: picture alliance/Anil Shakya

दरअसल लोकपाल की नियुक्ति के लिए कानून में यह प्रावधान है कि चयन समिति के सदस्य प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता होंगे. लेकिन खड़गे को सरकार ने विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता नहीं दी है और उनका दर्जा केवल लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता का है. इसी तरह के कई अन्य कानूनों में बदलाव करके विपक्ष के नेता के विकल्प के तौर पर सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को भी शामिल कर लिया गया है लेकिन लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधी इस कानून में यह परिवर्तन नहीं किया गया. इसका सीधा अर्थ यह है कि चयन की प्रक्रिया में खड़गे की राय का कोई महत्त्व नहीं होता. ऐसे में चयन समिति की बैठक में शामिल होने का कोई मतलब नहीं रह जाता.

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अन्ना हजारेतस्वीर: AP

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हुए अपने लंबे कार्यकाल में भी नरेंद्र मोदी ने लोकायुक्त नियुक्त करने के प्रति उदासीनता ही दिखाई थी. दरअसल उनकी कार्यशैली ही ऐसी है कि वह अपने ऊपर किसी किस्म का अंकुश नहीं चाहते. लोकपाल अंतरराष्ट्रीय संबंधों जैसे कुछेक क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों से संबंधित मामलों में प्रधानमंत्री तक को अपने सामने बुला सकता है और उनके फैसलों की समीक्षा कर सकता है. जाहिर है कि मोदी को यह गवारा नहीं वरना 2013 में बने कानून को 2018 तक लटकाया जा जाता. अभी तक उनकी सरकार का कार्मिक मंत्रालय इस कानून पर अमल करने की प्रक्रियाओं तक को तय नहीं कर पाया है. अब खबर है कि जल्दी-जल्दी जून के मध्य तक इस काम को निपटाने का लक्ष्य रखा गया है.

अभी-अभी तीन राज्यों में चुनाव हो चुके हैं और उनका परिणाम आना बाकी है. इस वर्ष कुछ और राज्यों में चुनाव होने हैं और अगले वर्ष के आरंभ से ही लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियां और प्रचार शुरू हो जाएंगे. भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में मोदी सरकार ने बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्तिक को गिरफ्तार किया है लेकिन अभी तक एक भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है जो भाजपा या मोदी के नजदीक माना जाता हो. ऐसे में लोकपाल की नियुक्ति के मुद्दे पर मोदी सरकार का अनमना रवैया जनता के बीच सकारात्मक सन्देश नहीं ले जाएगा.