1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

मंदिरों पर चढ़े फूलों से बन रहा हर्बल रंग-गुलाल

४ मार्च २०२१

नकली रंग लोगों की त्वचा को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो मंदिरों पर चढ़ाए जाने फूल कचरे की समस्या पैदा कर रहे हैं. मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूलों से हर्बल गुलाल तैयार कर दोनों समस्या से निबटने की कोशिश हो रही है.

https://p.dw.com/p/3qDkf
Indien Gulal
तस्वीर: IANS

उत्तर प्रदेश में इस साल होली इकोफ्रेंडली तरीके से मनाने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए काशी विश्वनाथ मंदिर और माता विंध्यवासिनी समेत कई मंदिरों में चढ़े फूलों से हर्बल गुलाल बनाए जा रहे हैं. इससे महिलाओं रोजगार भी मिल रहा है. उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह चलाने वाली महिलाओं ने इसकी पहल की है. प्रदेश के 32 जिलों में स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं हर्बल रंग गुलाल तैयार कर रही हैं.

लेकिन विशेषकर वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में महादेव एवं बसंती समूह, मिजार्पुर के विंध्याचल में गंगा एवं चांद, खीरी जिले के गोकर्ण नाथ में शिव पूजा प्रेरणा लखनऊ के खाटू श्याम मंदिर तथा श्रावस्ती के देवीपाटन के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं यहां के मंदिरों से चढ़े हुए फूलों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार कर रही हैं.

Indien Gulal
रंग बनाती महिलाएंतस्वीर: IANS

महिलाओं को खास ट्रेनिंग

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के निदेशक योगेश कुमार ने बताया कि मंदिरों में चढ़े फूलों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार करने के लिए इलाके की महिलाओं को ट्रेनिंग दी गयी है. इस प्रकार से बने गुलाल एक तो हानिकारक नहीं होंगे, दूसरे, इससे बहुत सारी महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा. मिशन के परियोजना प्रबंधक आचार्य शेखर ने बताया कि प्रत्येक जनपद से 5 से 10 लाख रुपए का लक्ष्य रखा गया है. प्रदेश स्तर पर इसका लक्ष्य एक करोड़ रुपए का रखा गया है.

फूलों से बने गुलाल को स्थानीय बाजारों के साथ ई-कॉमर्स मार्केट जैसे फ्लिपकार्ट और अमेजन पर भी बेचा जाएगा. इसके अलावा महिलाओं के उत्पादों की बिक्री के लिए राज्य के सभी ब्लॉकों के प्रमुख बाजारों में मिशन की ओर से जगह मुहैया कराई जाएगी. मिशन का मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिले.

बेकार नहीं मंदिर में चढ़ने वाले फूल

होली के समय रंगों की खपत

गंगा समूह मिर्जापुर की सचिव सविता देवी का कहना है कि इस प्रयास की वजह से मंदिरों से निकलने वाले फूल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे, न ही ये नदी को दूषित करते हैं. मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर इनको सुखा लिया जाता है. गरम पानी में उबालकर रंग निकाला जाता है. उसके बाद इसमें अरारोट मिलाकर फिर निकले हुए फूल की पंखुड़ियों को पीसकर अरारोट मिलाकर गुलाल तैयार किया जाता है.  फूलों से गुलाल बनाने की लागत 50 रुपए आती है. इसे बाजार और स्टॉलों की माध्यम से 140-150 रुपए में बड़े आराम से बेचा जा रहा है.

बलरामपुर अस्पताल के वरिष्ठ चर्म रोग विशेषज्ञ एमएच उस्मानी कहते हैं कि रासायनिक रंगों का प्रयोग मानव शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है. रंग में मिले कैमिकल्स से त्वचा कैंसर तक हो सकता है. इसके केमिकल स्किन को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. कॉपर सल्फेट रहने से आंखों में एलर्जी भी हो सकती है. खासकर होली में रंग खेलने के दौरान सस्ते और रासायनक मिले रंगों का इस्तेमाल होता है.

रिपोर्ट: विवेक त्रिपाठी (आईएएनएस)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore