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मजबूत हो रहा है मीटू आंदोलन

मारिया जॉन सांचेज
१९ अक्टूबर २०१८

अमेरिका में चले #मीटू (मैं भी) आंदोलन से प्रेरणा पाकर भारत में भी यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएं अब खुलकर सामने आ रही हैं और उन लोगों के नाम सार्वजनिक कर रही हैं जिनके कारण उन्हें इस त्रासद अनुभव से गुजरना पड़ा है.

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Indien New Delhi - Staatsminister für auswärtige Angelegenheiten Mobashar Jawed Akbar
तस्वीर: Reuters/A. Fadnavis

इस सिलसिले में फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर और आलोक नाथ, पत्रकार एवं राजनीतिज्ञ एम. जे. अकबर और चित्रकार जतिन दास समेत विभिन्न क्षेत्रों से सम्बद्ध अनेक लोगों के नाम सामने आए हैं और यह सूची हर दिन लंबी होती जा रही है. अकबर के खिलाफ सोलह महिला पत्रकारों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है और बीस अन्य महिला पत्रकार उनके आरोपों को पुष्ट करते हुए उनके समर्थन में खड़ी हो गई हैं. पहले तो अकबर ने सभी आरोपों को बेबुनियाद, झूठ और राजनीतिक साजिश से प्रेरित बताया.

उसके बाद सबसे पहले उन पर आरोप लगाने वाली प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. फिर कई दिन तक विदेश राज्यमंत्री के पद पर जमे रहने के बाद बुधवार को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. जिन-जिन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं, वे सभी स्वाभाविक रूप से अपने को निर्दोष बता रहे हैं. इसी बीच टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने एक वरिष्ठ पत्रकार को यह आरोप लगने के बाद बर्खास्त कर दिया है.

यौन उत्पीड़न के अधिकांश मामले बरसों पहले के हैं. उन्हें सार्वजनिक करने वाली महिलाओं से यह सवाल किया जा रहा है कि उन्होंने उसी समय इन्हें क्यों नहीं उठाया. सवाल करने वाले अक्सर यह भूल जाते हैं कि यौन उत्पीड़न के मामलों में समाज, कानून और सरकार आज से दो या तीन दशक पहले उतने संवेदनशील नहीं थे जितने आज हैं. इसके अलावा पितृसत्तात्मक समाज के अनेक मूल्य महिलाओं को उनके बचपन से घुट्टी में पिलाए जाते हैं और इस तरह का त्रासद अनुभव होने के बाद भी वे शर्म और बदनामी के डर से पाने परिवार वालों तक को उनके बारे में बताने से हिचकती हैं.

सरकारी और गैर-सरकारी दफ्तरों में इस प्रकार की शिकायतों की सुनवाई के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं थी जिसके कारण पीड़ित महिला को यह भी समझ में नहीं आता था कि वह शिकायत करे तो किससे करे यदि उसका अपना बॉस ही उसके साथ यौन दुर्व्यवहार कर रहा हो. इस संबंध में कानूनी स्थिति भी कोई बहुत अच्छी और साहस पैदा करने वाली नहीं थी.

अब सुप्रीम कोर्ट के विशाखा निर्देशों के अनुसार सभी संस्थानों में यौन उत्पीड़न की शिकायतों को सुनने और उन पर फैसला लेने के लिए समिति बनाना अनिवार्य कर दिया गया है. इसके बावजूद सचाई यह है कि आज भी बहुत बड़ी संख्या ऐसे संस्थानों की है जहां इस प्रकार की समितियां अस्तित्व में ही नहीं हैं. अनेक संस्थानों में यदि हैं भी तो उनके सदस्य इस प्रकार के मामलों में अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं दर्शाते. इसलिए यौन उत्पीडन की शिकार महिलाएं अक्सर या तो अपनी शिकायतें दर्ज ही नहीं करा पातीं और अगर कराती भी हैं तो उन्हें अक्सर न्याय नहीं मिलता. यही कारण है कि अब #मीटू आंदोलन के उभरने के बाद प्रतिदिन कुछ और महिलाएं साहस जुटा कर अपने अनुभवों को सार्वजनिक कर रही हैं और पता चल रहा है कि यौन उत्पीड़न की समस्या कितनी व्यापक है.

किसी भी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक समस्या का समाधान केवल कानूनी रास्ते से नहीं किया जा सकता. वह तो दोषियों को सजा दिलाने के लिए है. समाधान केवल तभी निकल सकता है जब परिवारों में बच्चों को शुरू से ही स्त्री-पुरुष की बराबरी के बारे में शिक्षा दी जाए और बच्चे-बच्चियों दोनों को बताया जाए कि स्त्री को अपने बारे में हर प्रकार के निर्णय लेने का अधिकार है, उसे किसी भी मामले में 'हां' और 'ना' कहने का हक हासिल है और उसका यह हक अनुलंघनीय है. जब तक ये जीवनमूल्य बचपन से नहीं सिखाए जाएंगे, तब तक यौन उत्पीड़न की समस्या को जड़ से उखाड़ना संभव नहीं होगा. इस समय #मीटू आंदोलन लगातार मजबूत हो रहा है और इसके बहुत दूरगामी और दीर्घकालिक परिणाम निकलने की आशा है.

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