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मरने के लिए स्विट्जरलैंड जाएंगे बुजुर्ग वैज्ञानिक

३० अप्रैल २०१८

ऑस्ट्रेलिया के सबसे बुजुर्ग वैज्ञानिक ने दो साल पहले यह कह कर हंगामा मचा दिया था कि यूनिवर्सिटी उनसे दफ्तर खाली करवा रही है. डेविड गुडॉल मई की शुरुआत में स्विट्जलैंड जाएंगे ताकि दुनिया को अलविदा कह सकें.

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Screenshot Website Exitinternational über David Goodall
तस्वीर: exitinternational.net

अब 104 साल के हो चुके डेविड गुडॉल को कोई जानलेवा बीमारी नहीं है लेकिन उनकी जिंदगी मुश्किल होती जा रही है और अब उन्होंने बासेल की एक एजेंसी से संपर्क कर समय ले लिया है. यह एजेंसी लोगों को मरने में मदद करती है. अप्रैल की शुरुआत में इकोलॉजिस्ट गुडॉल ने अपने जन्मदिन के मौके पर कहा था, "मुझे इस उम्र तक पहुंचने का बहुत अफसोस है. मैं खुश नहीं हूं, मैं मरना चाहता हूं, यह उदास करने वाला नहीं है. बुरा तब होगा जब किसी को रोका जाएगा." गुडॉल ने यह भी कहा, "मेरा मानना है कि मेरे जैसे बूढ़े लोगों को नागरिकता के साथ ही असिस्टेड सुसाइड का भी अधिकार मिलना चाहिए."

दुनिया के ज्यादातर देशों में असिस्टेड सुसाइड या सहयता के साथ खुदकुशी गैरकानूनी है. ऑस्ट्रेलिया में भी यह प्रतिबंधित है लेकिन पिछले साल विक्टोरिया राज्य इसे कानूनी रूप से मंजूरी लेने वाला पहला राज्य बन गया. हालांकि यह कानून सिर्फ उन्हीं लोगों पर जो जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और उनका दिमाग ठीक काम कर रहा हो इसके साथ ही जिनके जीवन के अब सिर्फ छह महीने बाकी हों. यह कानून जून 2019 से लागू होगा. ऑस्ट्रेलिया के दूसरे राज्यों ने भी इस मुद्दे पर पहले बहस की है लेकिन हर बार इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया गया. पिछले साल साउथ वेल्स का मामला इसमें सबसे नया है.

प्राणघातक दवाएं खरीद सकेंगे गंभीर और लाइलाइज बीमारी के मरीज

गुडॉल को स्विट्जरलैंड जाने में मदद करने वाली एजेंसी सा नाम है एग्जिट इंटरनेशनल. एजेंसी का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया के "सबसे बुजुर्ग और प्रमुख नागरिक को सम्मान के साथ मरने के लिए दुनिया के दूसरे हिस्से में जाने पर विवश होना पड़ रहा है" यह अनुचित है. एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, "शांति से सम्मान के साथ मौत उन सब लोगों का हक है जो ऐसा चाहते हैं. किसी आदमी को इसे पाने के लिए अपना देश छोड़ने पर विवश नहीं किया जाना चाहिए."

इस समूह ने गो फंड मी नाम से एक अभियान शुरू किया जिसके जरिए गुडॉल और उनके सहयोगियों के लिए हवाई जहाज के टिकट का बंदोबस्त किया गया. इसके बाद टिकट को इकनॉमी से बिजनेस क्लास में अपग्रेड किया गया. अब तक इस मद में 13000 अमेरिकी डॉलर जमा हो चुके हैं.

गुडॉल पर्थ के एथिथ कॉवन यूनिवर्सिटी में ऑनरेरी रिसर्च एसोसिएट हैं. 2016 में वो सुर्खियों में आए जब उन्हें कैम्पस में रहने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया. इस पर बवाल मचने और उन्हें कई देशों के वैज्ञानिकों का समर्थन मिलने के बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया.

एनआर/एके (एएफपी)