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समाज

किसानों की हालत के लिए सरकार भी जिम्मेदार

क्रिस्टीने लेनन
२६ नवम्बर २०१८

महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के लिए तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार मराठा किसानों की हालत के लिए सिर्फ बैंक और साहूकार ही नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य सरकारें भी जिम्मेदार हैं.

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Indien Dürre
तस्वीर: AP

मराठा किसानों की बदतर स्थिति पर आए दिन कोई न कोई खबर आती रहती है. अब एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार किसानों की दुर्गति के लिए केंद्र, राज्‍य, बैंक और साहूकार सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं. महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को राजनीतिक रूप से मजबूत माना जाता है लेकिन यह आधा ही सच है. इसी मराठा समुदाय के हजारों किसानों ने आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या की है. इन आत्महत्याओं की वजह से इनके परिवार ना केवल आर्थिक रूप से और कमजोर हुए हैं, बल्कि बिखर भी गए हैं.

ऐसा माना जाता है कि राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों में अधिकांश किसान मराठा समुदाय से आते हैं. वैसे, यह एक धारणा ही है क्योंकि जातिगत आधार पर ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है. मराठा किसानों की स्थिति के संबंध में भूमाता चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किए गए सर्वे में समुदाय के किसनों की चिंताजनक तस्वीर सामने आई है.

सर्वे के नतीजे

महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपी गई सर्वे रिपोर्ट में मराठा किसानों की दयनीय स्थिति के लिए राज्य और केंद्र सरकारों की भूमिका पर सवाल उठाया गया है. भूमाता चैरिटेबल ट्रस्ट फिलहाल सर्वे के बारे में कुछ कहना नहीं चाहता क्योंकि इस सर्वे को विधानसभा में पेश किया जाना है. सर्वे के नतीजों के बारे में जो रिपोर्ट मीडिया में आई है उसके अनुसार केंद्र सरकार द्वारा बढ़ाई गई सब्सिडी को राज्य सरकार ने कम कर दिया.

इसी तरह से राज्य सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य को केंद्र सरकार द्वारा कम कर दिया गया, जो किसानों के कर्ज के जाल में फंसने का कारण बनता है. पिछले दो दशक में बैंकों द्वारा कृषि क्षेत्र में लागत मूल्य का मात्र 50 प्रतिशत ही कर्ज उपलब्ध करवाया गया है. मजबूरी में किसानों को कर्ज के लिए साहूकारों के पास जाना पड़ता है. मजबूरी का फायदा उठाते हुए ये साहूकार 24 से 60 फीसदी सालाना की दर से ब्याज वसूलते हैं. कई अध्ययन में सामने आया है कि ऐसे ही कर्ज आगे चल कर किसानों की आत्महत्या का कारण बनते हैं.

 कर्ज का दुष्चक्र

अपनी फसल से दो जून की रोटी कमाने के लिए किसानों को छोटे निवेश की जरूरत होती है लेकिन कृषि प्रधान देश होने के बावजूद किसानों की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए तंत्र विकसित नहीं हो पाया है. खेती किसानी छोड़कर अब नौकरी करने वाले दीपक भाऊ कहते हैं कि कुआं खुदवाने से लेकर बीज और खाद के लिए पैसे भी नहीं होते.

इन छोटी छोटी जरूरतों के लिए साहूकार से ही मदद मिलती है. उनका कहना है, "फसल बर्बाद होने पर कर्ज का बोझ संभाल पाना मुश्किल होता है." छोटे किसानों के लिए बैंकों से बार बार लोन ले पाना टेढ़ी खीर साबित होता है, तो मझोले किसानों को भी इतना लोन नहीं मिल पाता कि उनका काम हो सके. सरकार के अनुसार देश में 52 प्रतिशत कृषक परिवारों के कर्जदार होने का अनुमान है और प्रति कृषि परिवार पर बकाया औसत कर्ज 47,000 रुपये है.

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आत्महत्या जारी है

मराठा किसान ही नहीं, बल्कि इस पेशे से जुड़े सभी समुदाय के अधिकांश किसान आर्थिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं. सरकारी आश्वासनों के बावजूद किसानों का असंतोष खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कभी ओला कभी सूखा से परेशान राज्य में किसानों की आत्महत्या जारी है.

सितंबर में विभिन्न कारणों के चलते राज्य में 235 किसानों ने आत्महत्या की. राहत और पुनर्वास मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने पिछले दिनों विधानसभा में कहा कि नासिक जिले में जनवरी से सितंबर 2018 के बीच 73 किसान आत्महत्या के मामले सामने आए, जबकि मराठवाड़ा में जनवरी और सितंबर 2018 के बीच 674 किसानों ने आत्महत्या की. राज्य के राहत और पुनर्वास विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 4 वर्षों में 11 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है.

राज्य में इस बार फिर सूखे की आशंका है, जिसके चलते किसान आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं. खासतौर पर मराठवाड़ा और विदर्भ के किसानों की मुसीबतों को देखते हुए राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं. सरकार और विपक्ष, दोनों ही, किसानों को तत्काल राहत देने की वकालत कर रहे हैं.

विधानपरिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे ने तत्काल राहत उपायों की आवश्यकता जताई है. उनकी मांग है कि सरकार फसल नुकसान के लिए 50 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का मुआवजा प्रदान करे और बागानों के लिए किसानों को एक लाख रूपये प्रति हेक्टेयर मिलना चाहिए. सरकार में मंत्री चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि सरकार ने सूखा राहत के आठ उपायों पर काम लगभग पूरा कर लिया है और बाकी बचे कामों को भी जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा.

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