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महामशीन का आज से पहला महाप्रयोग

Ramnarayan Yadav३० मार्च २०१०

दोष ईश्वर का ही है जो कहते हैं कि कण कण में बसे हैं. इसीलिए सबसे सूक्ष्म भौतिक कण में सबसे विराट आध्यात्मिक शक्ति खोजी जा रही है. उस कण को कहते तो हैं हिग्स-बोसोन, पर मानते हैं कि वही "ब्रह्मकण" है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

मंगलवार 30 मार्च से जेनेवा के पास यूरोपीय मूलकण प्रयोगशाला सेर्न में हिग्स-बोसोन के अस्तित्व का खंडन या मंडन करने के महाप्रयोग का पहला अपूर्व प्रयास शुरू हुआ, हालांकि शुरू होते ही मूलकण त्वरक एलएचसी की सुरक्षा प्रणाली ने दो बार प्रयोग को रोक भी दिया. बताया गया कि मशीन की बिजली की प्रणाली में किसी गड़बड़ी के कारण सुरक्षा प्रणाली ने अपने आप प्रयोग को रोक दिया. लेकिन तीसरा प्रयास सफल रहा. दो प्रोटोन किरणों की आपस में टक्कर हुई. यह अभी नहीं कहा जा सकता कि इस टक्कर से ब्रह्मकण हिग्स-बोसोन बने या नहीं.

प्रयोग से पहले सभी वैज्ञानिक बहुत उत्साहित और उत्तेजित थे. सेर्न के महानिदेशक, जर्मनी के रोल्फ़-डीटर होयर ने कहा, "हिग्स का अस्तित्व यदि सचमुच है, तो एलएचसी उसे पा कर ही रहेगा."

एलएचसी (लार्ज हैड्रन कोलाइडर) नाम है उस महामशीन का, जिस के 27 किलोमीटर लंबे निर्वात पाइपों में प्रोटोन कणों को पहले त्वरित किया जाता है. जब उनकी गति प्रकाश की गति (तीन लाख किलोमीटर प्रतिसेकंड) से कुछ ही कम रह जाएगी, तब दो विपरीत दिशाओं से आते हुए कणों की आपस में टक्कर कराई जाएगी.

समझा जाता है कि इस टक्कर से एक बहुत ही सूक्ष्म पैमाने पर लगभग वही परिस्थिति पैदा होगी, जो 13 अरब 70 करोड़ साल पहले उस समय थी, जब एक महाधमाके (बिग बैंग) के साथ ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी. ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय सबसे पहले हिग्स-बोसोन ही बने होंगे. उन से बाद में बने वे अन्य कण, जिन से अणु और परमाणु बने होते हैं. इस चराचर जगत में हर जीव-निर्जीव इलेक्ट्रोन, प्रोटोन, न्यूट्रोन वाले परमाणुओं का ही बना है.

30 मार्च से शुरू हो रहे प्रयोग में वैज्ञानिक प्रोटोन कणों की दो विपरीत दिशाओं से आ रही किरणों की गति बढ़ाने के लिए हर किरण को साढ़े तीन टेरा यानी साढ़े तीन खरब इलेक्ट्रॉनवोल्ट तक की ऊर्जा प्रदान करेंगे. यह अब तक का एक नया रेकॉर्ड होगा, हालांकि एलएचसी की क्षमता हर किरण को सात टेरा इलेक्ट्रॉन वोल्ट तक की त्वरण ऊर्जा प्रदान करने की है.

सितंबर 2008 में जब एलएचसी पहली बार चालू हुआ था, तब सारी दुनिया में कोहराम मच गया था कि जेनेवा में एक ऐसा प्रयोग होने जा रहा है, जिससे ऐसे ब्लैक होल (कृष्ण विवर) बन सकते हैं, जो धरती सहित सब कुछ निगल सकते हैं. उस समय, कुछ ही दिन बाद बिजली के एक शॉर्ट सर्किट के कारण एलएचसी को बंद कर देना पड़ा.

सेर्न के महानिदेशक रोल्फ़-डीटर होयर ने जर्मनी के डोएचलांड रेडियो के साथ एक भेंटवार्ता में सोमवार को कहा कि बहुत हुआ तो ऐसे अतिसूक्ष्म ब्लैक होल बन सकते हैं, जो वास्तव में पदार्थ की हमारे लिए अपरिचित क्वांटम अवस्थाएं हो सकते हैं. क्वांटम अवस्था उस अवस्था को कहा जा सकता है, जिस में पदार्थ और ऊर्जा के बीच का द्वैत अद्वैत में बदल जाता है. लेकिन यह अद्वैत रूप भी इतना क्षणिक होगा कि वह तुरंत विघटित हो कर द्वैत में बदल जायेगा. होयर ने कहा कि हमारे ब्रह्मांड में अरबों वर्षों से हर सेकेंड अरबों-खरबों इस तरह की प्रघटनाएं हो रही हैं "और हम अब भी हैं."

हिग्स-बोसोन अभी तक दो वैज्ञानिकों ब्रिटेन के पीटर हिग्स और भारत के सत्येंद्रनाथ बोस की ऐसी कल्पना हैं, जिन के बारे में माना जाता है कि वे ही प्रटोन और न्यूट्रोन कणों को उनका भार देते हैं. पदार्थ, अर्थात अणु-परमाणु की संरचना संबंधी इस समय का तथाकथित स्टैंडर्ड मॉडल यदि सही है, तो हिग्स-बोसोन का भी अस्तित्व होना चाहिए.

पदार्थ और कुछ नहीं, ऊर्जा का ही दूसरा रूप है. लेकिन, ऊर्जा का कोई द्रव्यमान (भार) नहीं होता, जबकि पदार्थ का होता है. अतः प्रश्न यही उठता है कि यह द्रव्यमान कहां से आता है, कैसे आता है?

सेर्न के महानिदेशक होयर ने यह भी कहा कि एलएचसी में दो प्रोटोन किरणों की टक्कर कुछ वैसी ही है, "मानो एटलांटिक महासागर के ऊपर दो सूइयां आपस में टकराएं." सेर्न की ओर से बताया गया है कि पहली टक्कर होने तक कई दिन बीत सकते हैं. उस के बाद भी टक्कर के आंकड़ों की जांच-परख करने और उनमें हिग्स-बोसोन के संकेत पहचानने में महीनों लग सकते हैं, क्योंकि सिद्धांततः अरबों टक्करों में से केवल कोई एक टक्कर ऐसी हो सकती है, जिसमें हो सकता है कि बहुत ही अल्प समय के लिए हिग्स-बोसोन बने हों. यह ब्रह्मांड के अरबों-खरबों पिंडों के बीच किसी ऐसे पिंड की तलाश करने जैसा है, जहां हमारी पृथ्वी जैसी कोई दुनिया भी बसी हो.

संसार की सबसे मंहगी महामशीन एलएचसी एक साल चली मरम्मत के बाद नंवबर से दुबारा काम करने लायक बनी है. सर्दियों के अवकाश के बाद फ़रवरी के अंत में उसे फिर से चालू किया गया. नई मरम्मतों के लिए अगले वर्ष उसे फिर से बंद कर दिया जाएगा.

रिपोर्टः राम यादव

संपादनः ए कुमार