महिला आरक्षण बिल की अहम बातें
महिला आरक्षण बिल का मुद्दा फिर चर्चा में है. आइए जानते हैं कि क्या है यह बिल?
क्या है महिला आरक्षण बिल?
यह भारतीय संविधान के 85वें संशोधन का विधेयक है. इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है. इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है. महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक राज्यसभा में 2010 में पारित हो चुका. अब लोकसभा में इसे पारित करवाने की बारी है.
कभी नहीं बन पाई एक राय
पहली बार इस बिल को 1996 में एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में पेश किया गया था. तब सत्ता पक्ष में एक राय नहीं बन सकी थी. उस वक्त जेडीयू अध्यक्ष रहे शरद यादव ने इसका विरोध किया था. 1998 में जब इस विधेयक को पेश करने के लिए तत्कालीन कानून मंत्री थंबी दुरई खड़े हुए थे. तब संसद में बड़ा हंगामा हुआ और हाथापाई भी हुई उसके बाद उनके हाथ से विधेयक की प्रति को लेकर लोकसभा में ही फाड़ दिया गया.
महिला आरक्षण बिल के विरोधी कौन?
आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव का मानना है कि यह बिल लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश है. देश में महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और देश के भीतर एवं सीमा पर खतरे जैसी समस्याएं हैं. लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटाने के लिए महिला सशक्तीकरण के नाम पर यह बिल लाया जा रहा है.
"परकटी महिलाएं"
जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि यदि ये बिल पारित हो गया तो वह जहर खा लेंगे. यादव का आरोप था कि इस बिल से सिर्फ परकटी (छोटे बालों वाली) औरतों को फायदा पहुंचेगा. उनकी मांग थी कि इस बिल में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को कोटा मिले.
मुलायम सिंह का तर्क
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की यह मांग थी कि महिला आरक्षण बिल को मूल स्वरूप (यानी अल्पसंख्यक महिलाओं को कोटा दिए बिना) संसद में ना रखा जाए. आरोप लगाया कि इससे देश की अमीर महिलाएं बहुत आगे बढ़ जाएंगी और गरीब वर्ग की औरतें पिछड़ जाएंगी.
राहुल के पत्र पर मोदी सरकार का जवाब
महिला आरक्षण बिल पास करवाने को लेकर पिछले दिनों लिखे राहुल गांधी के पत्र पर मोदी सरकार ने सियासी पासा फेंका है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शर्त रखी है कि राहुल को महिला आरक्षण विधेयक के साथ तीन तलाक और हलाला मामले पर भी सरकार का साथ देना चाहिए. कांग्रेस तीन तलाक और हलाला के मुद्दे पर बंटी हुई है.
विधेयक पारित करने का यह है सबसे अच्छा समय
राज्यसभा में बिल के पारित होने की वजह से यह मुद्दा अभी जिंदा है. मोदी सरकार के पास संख्याबल है और अब कांग्रेस ने बिल को पास करने में दिलचस्पी दिखाई है. अगर लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा. इससे 2019 के लोकसभा चुनाव नए कानून के तहत हो सकेंगे और नई लोकसभा में 33 फीसदी महिलाएं आ सकेंगी.