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कानून और न्याय

पीड़ित महिलाओं को निराश करती न्याय व्यवस्था

चारु कार्तिकेय
२१ मई २०२१

तहलका पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल बलात्कार के आरोपों से बरी हो गए हैं. इस फैसले के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में देश की न्याय व्यवस्था कितनी मजबूर है.  

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Indien Tarun Tejpal Prozess (2014)
तस्वीर: AFP

बलात्कार के आरोप झेल रहे तहलका पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल के बरी हो जाने के बाद एक बार फिर महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में देश की न्याय व्यवस्था की सीमाओं पर सवाल उठ रहे हैं. तेजपाल के खिलाफ 2013 में उनकी एक सहकर्मी ने बलात्कार का आरोप लगाया था, जिसके बाद उन्हें गोवा पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. कुछ ही महीनों बाद उन्हें जमानत भी मिल गई थी.

आठ सालों से चल रहे इस मामले में गोवा सेशंस कोर्ट ने तेजपाल को बरी करते हुए उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप खारिज कर दिए. पूरा फैसला अभी अदालत से जारी नहीं हुआ है, लेकिन तेजपाल ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि आरोप झूठे थे और वो इस फैसले से राहत महसूस कर रहे हैं. आरोप लगाने वाली उनकी पूर्व सहकर्मी की तरफ से अभी तक कोई बयान नहीं आया है, लेकिन अभियोजन पक्ष ने कहा है कि वो हाई कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील करेगा.

गोवा पुलिस ने इस मामले में पूरी जांच करने के बाद 2,846 पन्नों की चार्जशीट दायर की थी, 2017 में सेशन्स कोर्ट ने तेजपाल के खिलाफ आरोप तय भी कर लिए थे और मार्च 2018 में शिकायतकर्ता ने भी अपना बयान दर्ज करा दिया था. अभियोजन पक्ष के आरोप मुख्य रूप से शिकायतकर्ता के बयान, उनके सहकर्मियों के बयान, सीसीटीवी फुटेज, ईमेल और व्हाट्सऐप संदेशों पर आधारित थे.

छूट जाते हैं मुल्जिम

इतने सारे बयान और सबूतों के बावजूद आरोपी के बरी हो जाने पर महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने देश की न्याय व्यवस्था पर निराशा व्यक्त की है. ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेनस एसोसिएशन की सचिव कविता कृष्णन ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि न्यायिक व्यवस्था ने एक और महिला को निराश कर दिया. उन्होंने ट्विट्टर पर लिखा, "यह साबित करता है कि क्यों महिलाएं पुलिस से शिकायत करने आगे नहीं आती हैं."

यह सिर्फ इसी मामले की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे देश की स्थिति दिखाने वाले आधिकारिक आंकड़े भी कविता के निष्कर्ष का समर्थन करते हैं. महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ते जा रहे हैं लेकिन जब मामले दर्ज होते हैं तो अदालतों में उन पर सुनवाई पूरी होने में सालों लग जाते हैं और उसके बाद भी बहुत ही कम मामलों में जुर्म साबित होता है और मुजरिम को सजा होती है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में रोज कम से कम 88 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं लेकिन इनमें अपराध सिद्धि यानी कन्विक्शन की दर सिर्फ 27.8 प्रतिशत है.

यानी हर 100 मामलों में से सिर्फ 28 मामलों में अपराध सिद्ध हो पाता है और दोषी को सजा हो पाती है. इस मामले में सबूत पर्याप्त थे या नहीं और पुलिस की जांच विश्वसनीय या नहीं यह फैसला विस्तार से जारी होने के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन अभी इस मामले का अंत हुआ नहीं है. अगर अभियोजन पक्ष वाकई हाई कोर्ट में अपील करता है तो मामले पर सुनवाई जारी रहेगी और संभव है कुछ नए तथ्य सामने आएं.

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