1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

माउस क्लिक पर दादियों की कला

२६ अक्टूबर २०१२

बोरियत...ये दादियां ऐसा कुछ नहीं जानती. ये बुनती गुनती हैं और फिर स्नेह की ऊष्मा से भरे ऊनी कपड़े इंटरनेट पर बेचती हैं. हाथ से बने स्वेटरों की बढ़िया इंटरनेट दुकान.

https://p.dw.com/p/16Xju
तस्वीर: myoma.de

64 साल की दादी मां सिग्गी कहती हैं कि यह जानना हमेशा अच्छा लगता है कि आप बेकार नहीं हैं. सिग्गी मायोमा.डीई (myoma.de) की बुनाई टीम में हैं. इस इंटरनेट पोर्टल की शुरुआत बवेरिया के फ्रांकोनिया में हुई. ये लोग टोपी, शॉल, छोटे बच्चों के ऊनी कपड़े और दूसरे स्वेटर बेचती हैं. सब हाथ से बुना हुआ.

Internet-Portal myoma.de Oma Siggi
तस्वीर: myoma.de

दादी का फैशन

यह आयडिया पहली बार यहां वेरेना रोएथलिंग्सहोएफर को छुट्टियों के दौरान टीवी देखते समय आया. उस समय बुनाई करने वाली बुजुर्ग महिलाओं पर कार्यक्रम आ रहा था. और ऐसे शुरुआत हुई मायोमा.डीई की. "बूढ़े लोगों के पास काफी समय होता है और उन्हें आता भी बहुत कुछ है. जब उन्हें कोई काम मिलता है तो वह बहुत खुश भी होते हैं इससे वह अपनी पेंशन भी सुधार सकते हैं."

Internet-Portal myoma.de Verena Röthlingshöfer
तस्वीर: myoma.de

कीमत का एक तिहाई हिस्सा जिसने स्वेटर बनाए हैं उन्हें मिलता है. टोपी 15 यूरो की और शॉल 30 से 40 यूरो का. वैसे तो बुनने वालों के काम के पीछे पारिवारिक और आर्थिक कारण भी हैं लेकिन अधिकतर लोग आनंद के लिए यह काम करते हैं.

इसमें एक चीज और शामिल है और वह है अपने जैसी रुचि वाले लोगों के साथ समय गुजारना. दादी सिग्गी कहती हैं, "बुनाई खाली समय का काम है और शौक है. इसके पीछे कोई अनिवार्यता नहीं है. हम महीने में एक बार ऑफिस में मिलते हैं. इसी बहाने सभी से मुलाकात हो जाती है." सिग्गी के तीन नाती पोते हैं. वह खुद बचपन से बुनाई की शौकीन हैं. वह नवजात बच्चों के लिए टोपी या कपड़े बनाना पसंद करती हैं.

दादा भी

एक दिन वेरेना रोएथलिंग्सहोएफर को एक फैक्स मिला. जिसमें लिखा था कि मैं कोई दादी नहीं हूं लेकिन मुझे बुनाई का शौक है और मैं भी क्लब में शामिल होना चाहता हूं. भेजने वाले 74 साल के बुजुर्ग क्लाउस थे. मनोविज्ञान की पढ़ाई करने वाले क्लाउस को बुनाई का कई साल से शौक है. "मेरे बचपन में हमारे पास कोई खिलौने नहीं थे. मुझे ईंटों से खेलना बहुत पसंद था लेकिन वो तो थी नहीं इसलिए मैंने बुनाई का खेल शुरू किया. मुझे मां ने सिखाया था. उस समय मुझे इसमें खूब मजा आता. नौकरी के सालों में भी मैंने कई बार बुनाई की थी."

Internet-Portal myoma.de Opa Klaus
तस्वीर: myoma.de

अपने शौक के बारे में उन्होंने कभी खुले आम बात नहीं की. लेकिन उनकी पत्नी को बहुत गर्व होता था यह बताते हुए कि जो स्वेटर उन्होंने पहना है वह उनके पति ने बनाया है. अब जब मायोमा से कोई काम आता है तो क्लाउस बहुत उत्साह से वह काम करते हैं. सुबह जल्दी उठ कर वह बुनाई करते हैं. भले ही सिर्फ एक जोड़े मोजे बनाने हों.

इतना ही नहीं सीधी-उल्टी बुनाई करने में क्लाउस को कोई परेशानी नहीं होती. वह आराम से अंधेरे में भी यह कर लेते हैं.

रिपोर्टः रायना ब्रॉयर/आभा मोंढे

संपादनः महेश झा