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अलगाववादियों और सेना का टकराव झेलता थाईलैंड

७ नवम्बर २०१८

भारत से हर साल हजारों सैलानी थाईलैंड जाते हैं. लेकिन वहां जाने वाले शायद ही सैलानियों को पता होता है कि इस खूबसूरत देश का दक्षिणी हिस्से में पिछले दो दशकों से थाई सेना और मुस्लिम अलगाववादियों के बीच टकराव चल रहा है.

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Thailand Songkhla/Pattani
तस्वीर: DW/Julian Küng

 

दक्षिणी थाईलैंड के तनावग्रस्त इलाके में स्थित एक चौकी पर तैनात पुलिस अधिकारी अपनी चौकी छोड़कर एक रिपोर्टर की ओर भागता है. रिपोर्टर वहां पर कुछ तस्वीरें ले रहा था. लेकिन जब पुलिस अधिकारी को पता चला कि ये रिपोर्टर इस इलाके में बढ़ते तनाव पर काम कर रहा है तब जाकर वह कुछ शांत हुआ. पुलिस की अपनी यूनिफॉर्म और आंखों पर लगे चश्मे को ठीक करते हुए वह चौकी पर लगी अलगावादियों की तस्वीरों की ओर इशारा कर अपनी भड़ास निकालता है.

पुलिस अधिकारी ने बताया, "यहां पर विरोधियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता." पिछले कुछ महीनों से इलाके में छुटपुट विस्फोट और गोलाबारी जैसी घटनाएं अमूमन रोजाना ही हो रही हैं. स्थानीय पुलिस अधिुकारी के अनुसार, "अक्टूबर 2016 में राजा के देहांत के बाद कुछ समय तक यहां शांति थी लेकिन फिर से ये पूरी त्रासदी शुरू हो गई है." सेना और सुरक्षाकर्मी इन अलगाववादियों के निशाने पर होते हैं. दक्षिणी थाईलैंड के इलाके पर नजर रखने वाली गैर सरकारी संस्था डीप साउथ वॉच के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में हिंसा के शिकार लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.

हिंसा से ग्रस्त

थाईलैंड के हिंसाग्रस्त पाटनी, याला और नाराथिवाट प्रांत मलेशिया से सटे हुए हैं. यह देश का दक्षिणवर्ती इलाका है. यह क्षेत्र मुस्लिम मलय बहुल जनसंख्या का घर है, जबकि थाईलैंड एक बौद्ध बहुल देश है. पिछले दो दशकों से अलगाववादी थाईलैंड सरकार से स्थानीय स्वायत्ता की मांग कर रहे हैं. इस के जबाव में थाई सेना कड़ाई से पेश आकर क्षेत्र में सक्रिय अलगाववादी इकाइयों का सफाया करने में जुटी हुई है. साल 2004 से यहां नियमित रूप से हमले होने शुरू हो गए और तब से लेकर अब तक अलगाववादियों और सरकार के बीच चल रहे इस संघर्ष में तकरीबन सात हजार लोगों की जानें गईं हैं.

Thailand Militärcheckpoints im Krisengebiet
तस्वीर: DW/Julian Küng

हालांकि पिछले कुछ सालों में यहां हिंसा घटी हैं, लेकिन फिलहाल विवाद का कोई हल निकलता नहीं दिखता. डोन पठान थाईलैंड में सुरक्षा और विकास के क्षेत्र में काम कर रही अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सलाहकार हैं. वे दक्षिणी थाईलैंड में समय-समय पर चलनेवाली हिंसा की लहरों को कई सालों से देख रहे हैं. मौजूदा उभार को पठान विरोधियों की ओर से दी गई खूनी प्रतिक्रिया मानते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "थाई सेना ने ये दावा किया था कि राजा भूमिबोल अदुल्यादेज की मृत्यु के बाद शोक अवधि के दौरान हिंसा में आई गिरावट सेना की विजय है. मुस्लिम अलगाववादियों ने इस उकसावे का उत्तर श्रृंखलाबद्ध हमलों के रूप में दिया है."

डर के साये में जीवन

थाईलैंड के दक्षिणवर्ती इलाके में अनेक सैन्य अड्डे हैं. भारी हथियारों से लैस बख्तरबंद गाड़ियां यहां की सड़कों पर तैनात शाही थाई सेना की निगरानी में आवाजाही करते हुए नजर आती हैं. हर एक किलोमीटर पर सेना ने चौकी बनाई हुईं हैं. मुसलमान लोगों पर सेना नजर रखती है. एक सैन्य अधिकारी ने डीडब्ल्यू के रिपोर्टर को अपनी चौकी भी दिखाई. चौकियों ने सुरक्षा के लिए रेत से बने बेरिकेड बनाए हुए हैं और उनके ऊपर पिंजरों में कैद पंछी चहचहा रहे थे.

एक अधिकारी ने कहा, "हम यहां हमेशा डर के साये में जीते हैं. सबसे बुरा ये है कि हमें पता नहीं होता कि बागियों का अगला हमला कब और कहां होगा. उग्रवादी हमारी तरह कोई विशेष कपड़े नहीं पहनते और ऐसे में आम लोगों के बीच में से उन्हें पहचान पाना भी बहुत मुश्किल होता है." आलोचक मानते हैं कि सैन्य बल का ये प्रयोग सरकार और मुस्लिमों की बीच पैदा हुई खाई को गहरा कर रही है. पठान कहते हैं, "निकाले गए जनरल और उनकी दमनकारी रणनीति ने पीछे सिर्फ बर्बादी का मंजर छोड़ा है जिसकी सफाई उनके उत्तराधिकारियों को करनी होगी."

Thailand Separatisten Yala Provinz Anschlag
तस्वीर: AP

नई कमान का नरम रुख

अक्टूबर 2018 में जनरल पोरसंक पूंसावास ने थाई सेना के दक्षिणी ऑपरेशन की कमान संभाली है और तुष्टिकरण की नीति की शुरुआत की है. कमांडर की हैसियत से अपनी पहली कार्रवाई में उन्होंने क्षेत्र के मौलवी अजीज फिटाकुम्पॉन को नए सिरे से रिश्ते बनाने के प्रतीक के रूप में फलों की टोकरी पेश की. उन्होंने ये भी कहा कि दक्षिणी थाईलैंड में चल रहे तनाव का मूल कारण कोई धर्म नहीं, बल्कि ड्रग्स हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वहां सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से ड्रग्स खुले आम सड़कों पर बिक रहे हैं. हालांकि अपने इस बयान को लेकर जनरल ने कोई सबूत पेश नहीं किए हैं.

पठान कहते हैं कि यह "नई रणनीति" पिछली सैन्य रणनीतियों से कुछ अलग है. पठान के मुताबिक, "ड्रग थाईलैंड की राष्ट्रीय समस्या है और ये समस्या सिर्फ दक्षिण तक ही सीमित नहीं है. इसके बावजूद यह एक अच्छी चाल है. सभी को परेशान करने वाली ड्रग जैसी समस्या की ओर ध्यान खींचकर पूंसावास मुस्लिम आबादी का दिल जीतना चाहते हैं."

समस्या का कोई हल नहीं

इन सब के बाद जब समझौतों की बात आई तो थाईलैंड सरकार ने अपनी तरफ से कट्टरपंथी पूर्व कमांडर उदोमचाई तामासारोरात को मुख्य वार्ताकार नियुक्त किया. थाई सरकार और मुस्लिम बागियों में चल रही शांति वार्ता में मध्यस्थता मलेशिया कर रहा है. अभी तक इस वार्ता का कोई निष्कर्ष नहीं निकला है. उदोमचाई बागियों में एक निर्दयी शासक के रूप में विख्यात हैं.

संघर्ष पर लंबे वक्त से अध्ययन कर रहे पठान भविष्य को लेकर नकारात्मक हैं. उन्होंने कहा, "दक्षिणवर्ती इलाके में अपनाई जा रही नीतियां शांति स्थापित करने के लिए कुछ नहीं करती. ये बस थाईलैंड सरकार के लिए सत्ता में बने रहने का पैंतरा हैं."

यूलियान कुंग/ एए

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