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कला

मूर्ति बनाना अब केवल पुरुषों के हाथ में नहीं

१० अक्टूबर २०१८

कुमारतुली की संकरी गलियों में चलते हुए आसानी से महिला मूर्तिकारों का पता लग जाता है. इन्होंने पुरुषों के प्रभुत्व वाली दुनिया में अपने लिए एक अलग जगह बनाई है. कुमारतुली कोलकाता में पारंपरिक मूर्तिकला का केंद्र है.

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Indien Statue von Ardha Nariswar in Kalkutta
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

प्रसिद्ध महिला मूर्तिकार चैना पाल ने अपनी कला दिखाने के लिए हाल ही में चीन का दौरा किया था. उनकी दो मूर्तियों को एक चीनी संग्रहालय में भी प्रदर्शित किया गया था. चैना पाल को अतीत में संशयी ग्राहकों का भी सामना करना पड़ा था. उन्हीं की तरह माला पाल की भी यही कहानी है, जो अब छोटी छोटी की मूर्तियों के लिए मशहूर हैं.

आठ सहायकों के साथ बाघ बाजार में अपना स्टूडियो चलाने वाली चैना ने आईएएनएस से कहा, "मैं बचपन में अपने पिता के स्टूडियो में जाना पसंद करती थी, लेकिन उन्होंने मुझे कभी प्रोत्साहित नहीं किया, क्योंकि उस वक्त महिलाएं कुमारतुली में कम ही देखी जाती थीं. बाद में, जब वह बीमार हुए तो मैंने वास्तव में उस फर्क को मिटा दिया, क्योंकि मेरे बड़े भाई अपनी नौकरियों में व्यस्त थे. उनके गुजरने के बाद 14 साल की उम्र में मैंने स्टूडियो संभाला."

अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, "यह बहुत मुश्किल था, क्योंकि मूझे मूर्ति बनाने की पूरी प्रक्रिया नहीं पता थी, लेकिन कला के लिए मेरे प्रेम ने इसे जल्दी सीखने में मेरी मदद की." यहां उस छोटी लड़की के लिए और कोई रास्ता नहीं था, जो ग्राहकों का विश्वास जीतने में थोड़ा समय लगाती थी.

Indien Statue von Ardha Nariswar in Kalkutta
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

चैना ने कुशलतापूर्वक अपनी कार्यशाला का प्रबंधन करने, खाना बनाने और अपनी 95 साल की मां की देखभाल करने के लिए 'दसभुजा' (दुर्गा) की उपाधि हासिल की है.'अर्धनारीश्वर दुर्गा आइडल' के निर्माण पर अपनी कड़ी मेहनत के अनुभव को साझा करते हुए चैना ने कहा, "मैंने 2015 में समलैंगिक समुदाय के अनुरोध पर इसे बनाया था. कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आया, लेकिन मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता. मुझे लगता है कि सभी के पास अपने भगवान की पूजा करने का अधिकार है. मैंने कभी नहीं सुना कि किसी ने ऐसी मूर्ति बनाई है."

माला पाल ने 'लोग क्या कहेंगे' की तरफ ध्यान न देकर रूढ़िवाद को तोड़ा और इस पेशे में वर्ष 1985 में आईं. हालांकि पिता के देहांत के बाद 15 साल की लड़की को उसके भाई गोबिंद पाल ने प्रोत्साहित किया.

सुनहरे रंग की पॉलिश वाली मूर्ति की ओर इंगित करते हुए माला ने कहा, "मैं बड़ी आंखों वाली परंपरागत 'बंगलार मुख' और आधुनिक 'कला' पैटर्न के साथ दोनों प्रकार की अलग-अलग छोटी मूर्तियां बनाती हूं. यह यूरोप में लोकप्रिय होने के साथ-साथ मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया व कनाडा और शिकागो में प्रसिद्ध है, जहां पूजा होती है.

काम के लिए बेहतर हालात का सपना देख रहीं माला ने कहा, "हालांकि मुझे मान्यता और पुरस्कार मिले हैं, लेकिन इसके अलावा मुझे राज्य सरकार की ओर से और कोई सहायता नहीं मिली है. सरकारी कॉलेजों के अनुरोध पर मैं वहां वर्कशॉप लगाती हूं और थोड़े पैसे कमा लेती हूं. छात्र कभी-कभी यहां भी आते हैं, लेकिन उन्हें यहां बैठाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है."

सुंदर टेराकोटा आभूषण बनाने वाली महिला ने कहा, "इसके अलावा, उनके लिए शौचालय भी ठीक नहीं है. निश्चित रूप से एक बेहतर जगह की बेहद जरूरत है."

रिपोर्ट: विनीता दास (आईएएनएस)

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