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मैच नहीं पर दिल जीतीं मेरी

९ अगस्त २०१२

मेरी कोम ने भले ही सेमीफाइनल का मैच गंवा दिया हो लेकिन वह ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी हैं, जहां उन्हें सम्मान से देखा जा रहा है. मेरी हौसला, जज्बा और मेहनत की मिसाल बन गईं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान बनी.

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Die indische Boxerin Mary Kom, die bei den Olympischen Spielen in London 2012 die Bronzemedaille gewann. Aufnahmeort: London Datum 8.8.2012 DW/N. Pritam
Olympia 2012 London Boxen Mary Komतस्वीर: DW

ओलंपिक से दो महीने पहले मेरी कोम प्री ओलंपिक बॉक्सिंग टूर्नामेंट में हिस्सा लेने लंदन आईं. टूर्नामेंट के बाद मेरी ने कुछ शॉपिंग करना चाहा. तब उन्हें एक स्थानीय लड़की लंदन के मशहूर नाइट्सब्रिज पर ले गई. मेरी ने कपड़ों की दुकान में काफी देर तक जैकेट देखे. यहां तक की सेल्समैन थोडा खिन्न हो गया. लेकिन फिर मेरी ने पतला जैकेट चुना और उसे पहन कर दुकान में लगे बड़े से आईने के सामने हवा में मुक्के चलाने लगी. उनकी शैडो बॉक्सिंग देख कर सेल्समेन चकित रह गया. जब मेरी के साथ वाली लड़की ने बताया की वह पांच बार की बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियन हैं, तो वह हैरान रह गया.

मेरी ओलंपिक से दो महीने पहले मौसम का मिज़ाज समझने लंदन आईं और बारिश से बचने के लिए ढीला ढाला जैकेट खरीदना चाहती थी. उस मुलाकात के बाद ही सेल्समैन ने सोच लिया कि वह ओलंपिक में मेरी का मुकाबला जरूर देखेगा..

Die indische Boxerin Mary Kom, die bei den Olympischen Spielen in London 2012 die Bronzemedaille gewann. Aufnahmeort: London Datum 8.8.2012 DW/N. Pritam
तस्वीर: DW

सेमीफाइनल में जब मेरी ब्रिटेन की निकोला एडम्स से हार रही थीं, तब भीड़ में कम से कम एक आवाज जरूर उनके लिए उठ रही थी. पर उस सेल्समैन की आवाज हजारों लंदन वालों की आवाज में दब कर खामोश हो गई. मेरी कोम मुकाबला 6-11 से हार गईं. यह बात अलग है कि मैच के बाद ज्यादा लोगों ने मेरी के साथ तस्वीरें खिंचवानी चाहीं.

यह शायद मेरी की महानता रही कि पदक जीतने के बाद भी उन्होंने भारत से माफी मांगी, "मुझे अफसोस है कि मैं करोड़ों भारतीयों की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी. सब सोच रहे थे कि मैं गोल्ड जीतूंगी लेकिन मैं उनके भरोसे को पूरा नहीं कर पाई."

भले ही मेरी को कांस्य पदक से सब्र करना पडा हो लेकिन यह मेडल भी कम नहीं. मेरी के प्रयास और मेहनत को किसी मेडल से नहीं आंका जाना चाहिए. यह प्रयास एक मिसाल है जो भारत में महिला समाज की और इशारा करता है. जब मेरी ने खेलना शुरू किया तो न तो घर से समर्थन था, ना ही उनके शहर मणिपुर, लेकिन "अब लगता है कि सड़क पर चलना मुश्किल हो जाएगा."

जब मेरी प्रतियोगिता खत्म करके भारतीय पत्रकारों से बात करने आईं तो उनके पास भारत से लगातार फ़ोन आ रहे थे. इन फोन के बीच 29 साल की मेरी ने कहा कि वह रुकेंगी नहीं, "अगर सब ठीक रहा तो मुझे पूरा यकीन है की में रियो में होने वाले अगले खेलों तक भी रहूंगी."

उन्होंने कहा की उनका मेडल भारत की उन महिलाओं को समर्पित है जो कोशिश तो करती हैं लेकिन किसी वजह से सफल नहीं हो पातीं, "उनके लिए मेरा संदेश है की अपने लक्ष्य को पाने में लगी रहें. ज़रूर सफलता मिलेगी."

"भारत ने लंदन ओलंपिक में अब तक चार पदक जीते हैं, जिनमें से दो महिलाओं के हैं. क्या आप अब भी यही कहेंगी कि भारत की महिलाएं पीछे हैं." – मेरी की इस बात में दम है.

तीन  बार वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद भी मेरी को ज्यादा समर्थन नहीं मिल पाया. उनका कहना है, "एक दफा तो लगा की खेल छोड़ दूं लेकिन मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया." जुड़वां बेटों की मां मेरी ने कहा की उनके मेडल में उनके पति ओनवलर कोम का बड़ा हाथ है, "बच्चों को देखना और घर चलाना सब उनके जिम्मे था, जो काम बड़ी ईमानदारी से निभाया."

रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम, लंदन

संपादनः अनवर जे अशरफ

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