1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

मोर्चे पर सैनिकों के लिए मां के हाथ का खाना

१७ मई २०१९

मिसराता की एक कोठी में मांएं अपने लाडलों के लिए खाने के पैकेट तैयार कर रही हैं. खाने में प्यार के साथ कविताएं और प्यारे संदेश भी हैं. यह खाना लीबिया की राजधानी त्रिपोली के बाहरी इलाकों में लड़ रहे सैनिकों तक जाएगा.

https://p.dw.com/p/3IfFo
Libyen Kämpfe um Tripolis
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Turkia

हर दिन 10 हजार से ज्यादा खाने के पैकेट 200 किलोमीटर दूर मोर्चे पर भेजे जा रहे हैं. जंग त्रिपोली के दक्षिणी इलाके में लीबिया के ताकतवार लड़ाके खलीफा हफ्तार के खिलाफ चल रही है.

2011 के बाद यह चौथी बार है जब मिसराता के लोग हफ्तार की सेना से गवर्नमेंट नेशनल एकॉर्ड के झंडे तले लड़ रहे हैं. गवर्नमेंट ऑफ नेशनल अकॉर्ड देश की अंतरराष्ट्रीय मान्यताप्राप्त सरकार है. मिसराता के लड़ाकों को लीबिया की सबसे संगठित फौज माना जाता है. यही लड़ाके उस विद्रोह का भी नेतृत्व कर रहे थे जिसने लीबिया की सत्ता से मुअम्मर गद्दाफी की सत्ता उखाड़ फेंकी. 2014 में त्रिपोली पर कब्जे की लड़ाई में वो पूरी तन्मयता से जुटे थे और 2016 में इस्लामिक स्टेट को सिर्ते में उन्होंने ही परास्त किया.

Libyen Kämpfe um Tripolis
तस्वीर: Imago Images/Xinhua

मौजूदा लड़ाई ना सिर्फ जंग के मैदान में चल रही है बल्कि रसोई घरों में भी. मिसराता की कई महिला संगठनों के भरोसे मोर्चे पर चल रही जंग के लिए खाना तैयार किया जा रहा है. इनमें अल नरजेस नाम का संगठन तो अकेले ही रोजाना 2000 खाने के पैकेट तैयार करता है. अप्रैल की शुरूआत में हफ्तार की सेना के राजधानी पर हमला करने के बाद शहर के मध्य में मौजूद एक कोठी को फील्ड किचेन में तब्दील कर दिया गया. यहां दो शिफ्टों में करीब 100 महिलाएं काम करती हैं. फर्श पर एक गोल घेरे में बैठी औरतें मीट, सब्जियां काटती हैं. इस दौरान जंग के गीत और अल्लाह का गुणगान भी लगातार चलता है. खाने का सामान स्थानीय कारोबारी दान में देते हैं.

नवारा अली बताती हैं कि वो हर सुबह सात बजे यहां पहुंच जाती हैं ताकि इफ्तार तैयार कर सकें. पिछले हफ्ते रमजान का महीना शुरू हुआ और ऐसे में शाम को इफ्तार की तैयारी करना बेहद जरूरी है. उनके छह बेटे हैं और 2011 से अबतक कई बार अलग अलग लड़ाइयों में हिस्सा ले चुके हैं. उनमें से चार इस वक्त त्रिपोली में जीएनए और हफ्तार की स्वघोषित नेशनल आर्मी से लड़ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अब तक इस जंग में 430 लोगों की मौत हुई है.

Krieg in Libyen
तस्वीर: Getty Images/M. Turkia

मांओं के लिए यह प्यार की मेहनत है. नवारा अली कहती हैं, "अगर मैं थक जाऊं या फिर रोजे के कारण कमजोरी महसूस करूं तब भी यहां आ कर जंग लड़ रहे अपने बेटों के लिए खाना बनाना मुझे खुशी से भर देता है." 55 साल की नवारा अली बताती हैं, "लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने अपने बेटों को जंग में क्यों जाने दिया. तो मैं उन्हें बताती हूं कि लीबिया कुर्बानी देने के लायक है और हजारों युवाओं ने आजादी की कीमत अपनी जान दे कर चुकाई है."

रसोई की जिम्मेदारी संभालने वाली हलीमा अल गमुदी को यह काम बटालियन के चीफ जैसा लगता है. मोर्चे पर सूप, मीट, घर में बनी रोटी और भरवां पाई आमतौर पर भेजी जाती है. यह खाना प्लास्टिक कंटेनर में भेजा जाता है जिस पर संगठन का लेबल लगा रहता है. इस कंटनेर पर लिखा है, "गुस्से की ज्वालामुखी के समर्थन में." यह जीएनए के उस अभियान का कोडनेम है जो, त्रिपोली को हफ्तार के हाथों में जाने से बचाने के लिए शुरू किया गया. सेलोफीन से ढंके पैकेट में महिलाएं हाथ से लिखी पर्चियां डाल देती हैं. इन पर्चियों में कभी कविताएं लिखी होती हैं तो कभी प्यारे से संदेश.

जंग के दौर में सैनिकों से फोन पर बात करना भी मुमकिन नहीं. ऐसे में यह पर्चियां ही उनकी भावनाओं को उनके लाडलों तक पहुंचाती हैं. मोर्चे पर गोलियों की बौछार के बीच यह खाना और यह संदेश सैनिकों में जोश भर देते हैं.

एनआर/एमजे (एएफपी)

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें