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समाज

यूरोप की खूबसूरती विविधता में है

विनम्रता चतुर्वेदी
२८ नवम्बर २०१८

यूरोपीय संघ के देशों की खुली सीमा ने विचारों के आदान-प्रदान को आसान बनाया है, लेकिन साथ ही यह विविधताओं से भरा है. यहां आने पर यकीनन सोच-समझ का दायरा बढ़ता है.

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Berlin - Brandenburger Tor - Feuerwerk am Silvester
तस्वीर: picture-alliance/united-archives/mcphoto

जर्मनी आना मेरे लिए रोमांचक इसलिए था क्योंकि न सिर्फ मैं पहली बार भारत के बाहर निकल रही थी बल्कि यूरोप की ओर आ रही थी. यहां के बारे में अब तक जो इतिहास की किताबों और उपन्यासों में पढ़ा था, उसे देखने-समझने का मौका था. खासतौर पर अगर जर्मनी की बात करूं तो यह देश इसलिए आकर्षित करता रहा है क्योंकि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में इसकी अहम भूमिका थी. यह देखना हैरान करता है कि युद्ध के बाद बर्बाद हो चुके इस मुल्क ने कैसे फिर से खुद को खड़ा किया. मुझे लगता है कि जर्मनी में जैसा विकास आज दिखाई देता है, उसके पीछे कारण इसका व्यवस्थित होना है. देश की प्रणाली व्यवस्थित हो तो इससे कुल क्षमता बढ़ जाती है. मुझे जर्मनी में आकर रहना आसान इसलिए लगा क्योंकि यह व्यवस्थित देश है और किसी काम को करने का एक सटीक तरीका है. यानी अगर आप उस तरीके को जान लें तो काम करने में सुविधा होगी. हालांकि कभी ऐसा भी होता है कि जब रोजमर्रा के काम में लचीलापन चाहिए होता है और एक ही पैटर्न को मानने से काम पूरा होने में वक्त लग जाता है.

जर्मन सीखना जरूरी

डॉयचे वेले में पहले दिन से ही जर्मन भाषा की उपयोगिता के बारे में बताया गया और मैंने जर्मन सीखने के लिए क्लासेज जाना शुरू कर  दिया. किसी विदेशी भाषा को सीखने का मन मेरा हमेशा से था और मैंने चार महीने की क्लास के बाद पहले लेवल की परीक्षा पास की. आगे इसे जारी रखने की तैयारी है.

लौटा 90 का दशक

बॉन में आकर मैंने अपने टीनेज को दोबारा जिया. मेल बॉक्स में चिट्ठियों का इंतजार होने लगा, लोगों के हाथों में पुराने जमाने के फोन दिखाई दिए और राइन नदी के किनारे दोस्तों संग जाकर साइकलिंग की. यह अब दिल्ली में मुमकिन नहीं है. कई बार सवाल मन में आया कि क्या विकसित हो रहे शहरों में बीते वक्त की अच्छी चीजों को संजोया जा सकता है? अगर ऐसा है तो हम इसे दिल्ली और मुंबई में कैसे करें?    

लड़कियों के लिए सुरक्षित देश

ऐसा नहीं है कि जर्मनी में महिलाओं के खिलाफ अपराध न के बराबर है, लेकिन अगर रोजमर्रा जिंदगी की बात करें तो यह भारत से काफी अलग है. यहां सड़क पर चलते वक्त घूरने वाले या परेशान करने वाले लड़के नहीं दिखेंगे. आप राह चलते किसी से रास्ता पूछेंगे तो वे आपकी मदद करेंगे. और अगर किसी कारण वे मदद नहीं कर सकते तो सॉरी कहकर आगे बढ़ जाएंगे, लेकिन आपका वक्त बर्बाद नहीं करेंगे.

सारे काम खुद से करना

व्यक्तिगत तौर पर मैं किसी पर निर्भर रहना पसंद नहीं करती हूं, लेकिन जर्मनी आने के बाद मैंने खुद को और आत्मनिर्भर होता पाया. यहां अपने सारे काम खुद से करने होते हैं और कोई मुलाजिम नहीं मिलता. इससे मुझे वे सारे काम करने आ गए, जिन्हें पहले मैं आधे-अधूरे मन से करती थी. यूरोप के कई देशों में 18 साल के बाद बच्चे अपने माता-पिता से अलग रहने लगते हैं. यह उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है.

इतिहास को समेटे है यूरोप 

यूरोप और जर्मनी के जिन शहरों में मैं घूमने गई, तो वहां के म्यूजियम पसंद आए. यहां तरह-तरह के म्यूजियम हैं. फिर चाहे अर्थमैटिक म्यूजियम हो या जानवरों के म्यूजियम, या फिर चॉकलेट और बीयर के म्यूजियम, जो बात पसंद आती है, वह है कि कैसे हरेक चीज को संजोने की आदत है. इसी तरह ऐतिहासिक इमारतों का रख-रखाव सीखने लायक है. इससे कारोबार फलफूल रहा है, जिसमें मेरी नजर में कुछ गलत नहीं है.

विडंबना भी जरूरी है

भारत की तरह ही यूरोप की विविधता ही इसकी खूबी है. पहली नजर में खानपान और कपड़ों में समानता दिखाई देगी, जो कुछ हद तक है भी, लेकिन यह विभिन्नताओं और विडंबनाओं का महाद्वीप है. किसी विचारधारा को लेकर दो पड़ोसी देशों की राय बिल्कुल अलग हो सकती है. यूरोपीय संघ के देशों में सीमाओं के खुले होने से विचारों का आदान-प्रदान आसान हुआ है. हालांकि इसके बावजूद विचारधाराओं को लेकर जिस तरह से खुद को बेहतर साबित करने की होड़ वैश्विक स्तर पर मची है, यूरोप भी इससे अछूता नहीं है.

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