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ये दूसरा वाला मुरली

अनवर जे अशरफ (संपादनः उ भ)२२ जुलाई २०१०

महाभारत के मुरलीवाले की तरह क्रिकेट के मुरली की शख्सियत भी संदेहों और आरोपों के साये से गुजरी और उनकी अहमियत तब पता चली, जब उनका युद्ध पूरा हो चुका. उस मुरली की तरह यह दूसरा मुरली भी सैकड़ों मौके पर जीत का सारथी बना.

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तस्वीर: AP

मुरली पर यकीन करने वाले उन्हें गेंदबाजी का भगवान मानते हैं, शक करने वाले उन पर क्रिकेट को गंदा करने और थ्रो गई गेंदों को जायज कराने वाला मानते हैं. लेकिन एक बात पर कोई शक नहीं करता कि चाहे विकेट शीशे की भी बनी हो, मुरली गेंद नचा देंगे.

मुरलीधरन ने क्रिकेट से जितना लिया, उससे कहीं ज्यादा दिया. नई गेंद, नई रिसर्च और नए किस्से. श्रीलंका की राष्ट्रीय टीम से खेलने वाले इकलौते तमिल खिलाड़ी के नाम दर्जनों क्रिकेट रिकॉर्ड होंगे, लेकिन उनकी पर्सनैलिटी तो इससे भी कहीं अलग है. मुरली ने क्रिकेट को दूसरा नाम की गेंद भी दिखाई और कलाई से गेंद नचा कर भी. उनकी वजह से रिसर्चरों को भी नए शोध की वजह मिली.

President Mahinda Rajapaksha und Muttiah Muralitharan Preis Flash-Galerie
राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने किया मुरली का सम्मानतस्वीर: AP

झटके से बॉलिंग करने वाले मुरली की शुरुआत ऐसी हुई, जहां उनका टिकना मुश्किल था. ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज जैसे क्रिकेट के धुरंधर देशों के बीच 1992 में श्रीलंका कहीं जगह नहीं बनाता था. क्रिकेट ने ऐसा स्पिनर नहीं देखा था, जो अंगुलियों से नहीं, कलाई से गेंद घुमा दे. क्रिकेट की दुनिया भी घूम गई और एक बार तो मुरली की सात गेंदों को नो बॉल घोषित कर दिया गया.

भारत के बड़े स्पिनर रह चुके बिशनसिंह बेदी मुरली को भाला फेंकने वाला गेंदबाज कह दिया. किसी स्पिनर के लिए बेदी जैसे गेंदबाज का आरोप झेलना आसान नहीं, लेकिन मुरली ने इससे आगे बढ़ने का फैसला किया. यह सही है कि श्रीलंका की टीम ने उनका पूरा साथ दिया लेकिन उस वक्त भला श्रीलंका की क्रिकेट टीम को भी कौन पूछता था, जिसे टेस्ट मैचों में कदम रखे जुमा जुमा आठ दिन ही हुए थे.

मुरली की गेंदें उनके बॉलिंग एक्शन की ही तरह निराली थीं. बिस्कुट बनाने वाले का बेटा जब स्टंप्स के पास पहुंच कर आंखें उबालता हुआ गेंद फेंकता, तो एक बार उसे देखने वाले भी डर जाते. बल्लेबाजों की तो बात ही छोड़िए. उनके एक्शन पर विवाद होते रहे और गेंदों पर विकेट मिलते रहे. आखिर वह दिन भी आ गया, जब मुरली को कठघरे में खड़ा होना पड़ा. मुरली एक्शन बदलने को तैयार नहीं थे और क्रिकेट की दुनिया उन पर यकीन करने को तैयार न थी. आखिरकार हांग कांग और ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटियों में मुरलीधरन की गेंदबाजी एक्शन पर रिसर्च करनी पड़ी.

Sri Lanka Sport Cricket Cricketspieler Muttiah Muralitharan
तस्वीर: AP

बांह सीधी किए बगैर मुरली गेंद को लहरा दिया करते थे, जिस पर बड़े क्रिकेटरों को एतराज था. जांच में पता चला कि हर स्पिनर कुछ हद तक ऐसा करते हैं. इसे सही एक्शन करार दिया गया. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल को मुरली की वजह से गेंदबाजी के नियम बदलने पड़े. मुरली को पहले 100 विकेट लेने में भले ही करियर के पांच साल लग गए हों, अगले पांच साल में 300 विकेट और जमा हो चुके थे. मुरली के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया के शेन वार्न और भारत के अनिल कुंबले का जादू भी चल रहा था लेकिन विवाद सिर्फ मुरली पर हो रहा था.

श्रीलंका 1996 का वर्ल्ड कप जीत कर मजबूत क्रिकेट देश बन चुका था. मुरली मजबूत से कहीं ज्यादा मजबूत गेंदबाज बन चुके थे. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के एक खेमे को वह अब भी बर्दाश्त नहीं थे. वह गेंद फेंकने के लिए खड़े ही होते कि स्टेडियम के एक कोने से नो बॉल की आवाज गूंज जाती. मुरली इस कदर आहत हुए कि फिर कभी ऑस्ट्रेलिया न जाने का इरादा बना लिया.

समय के साथ मुरली और मजबूत हुए. उन्होंने क्रिकेट के लिए एक नई गेंद का ईजाद कर दिया. दूसरा. ऑफ स्पिन के एक्शन में फेंकी गई गेंद दूसरी तरफ मुड़ जाती और बल्लेबाज चकरा जाता. गेंद मुरली की कलाई से निकली थी, तो विवाद भी होना था. हुआ भी. मुरली को फिर कठघरे में आना पड़ा. फिर चकर कहे गए. फिर जांच हुई. दर्जनों टीवी कैमरों के सामने मुरली की वह तस्वीर आज भी याद आती है, जब उनके नंगे बदन पर तारों का जंजाल बिछा था और दुनिया के सामने खुद को सही साबित करना पड़ा. डॉक्टरों और क्रिकेट एक्सपर्ट भी मुरली पर कालिख न लगा पाए. कभी वेस्ट इंडीज के महान गेंदबाद माइकल होल्डिंग मुरली पर शक करते थे. लेकिन बार बार की जांच में पास होने के बाद उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए.

आरोप चलते रहे. विकेट झड़ते रहे. टेस्ट और वनडे में मुरली के नाम इतने विकेट आ गए, जितने रन पर कई ठीक ठाक बल्लेबाजों का अंतरराष्ट्रीय करियर खत्म हो जाता है.

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