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पर्यावरण के मामले में नॉर्वे के युवाओं से सीखें भारत के युवा

१२ अप्रैल २०१९

नॉर्वे के युवाओं ने अर्थव्यवस्था को खतरे के बावजूद पर्यावरण को बचाने के लिए तेल के कुएं खोदने का विरोध किया है. भारत में पर्यावरण की हालत बिगड़ती जा रही है लेकिन वहां इसको लेकर युवाओं में ज्यादा चिंता दिखाई नहीं देती.

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Statoil Plattform Sleipner T Norwegen
तस्वीर: Reuters/N.Adomaitis

नॉर्वे की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ने तय किया है कि उत्तर में स्थित लोफोटेन द्वीप को तेल निकालने के लिए नहीं खोला जाएगा. इससे ऊर्जा उद्योग जगत को झटका लगा है. पिछले सप्ताह विपक्षी लेबर पार्टी के निर्णय से निकट भविष्य में इस खूबसूरत प्राकृतिक द्वीप पर तेल के कुएं की खुदाई नहीं हो सकेगी. उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि यह द्वीप देश के तेल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है. यह दिखाता है कि तेल के दम पर दुनिया में अमीर बने देश की प्राथमिकताएं किस तरह बदली हैं.

खास बात ये है कि युवा जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित हैं. इसलिए वो तेल की खुदाई को कम करना चाहते हैं. कुछ युवा तो पूरे तेल उद्योग को ही बंद कर देने की बात कहते हैं.

स्वीडन की एक किशोरी सामाजिक कार्यकर्ता ग्रेथा थुनबर्ग के काम से प्रभावित होकर नॉर्वे की संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहे युवाओं में शामिल 16 साल के सिमन सैंड का कहना है कि जलवायु पैसे से पहले आती है. कुछ लोग इस प्रदर्शन को खारिज करते हैं. वे कहते हैं कि ये महज कुछ युवा विद्रोहियों का प्रदर्शन है. लेकिन युवा लोग कुछ परिवर्तन लाने की कोशिश तो कर रहे हैं.

तेल उद्योग का समर्थन करने वाली लेबर पार्टी का लोफोटेन द्वीप पर तेल के कुओं की खुदाई ना करने का निर्णय भी इसकी युवा इकाई एयूएफ के विरोध के चलते लिया गया है. एयूएफ के नेता ईना लिबक का कहना है कि इस इलाके में हमको प्रकृति को आगे रखना होगा. यह इलाका मत्स्य और दूसरे उद्योगों से बहुत जल्दी प्रभावित होगा. नॉर्वे की नौ मुख्य राजनीतिक पार्टियों में से सात के युवा संगठनों ने पेट्रोलियम से संबंधित गतिविधियों पर अंकुश या पूरी तरह रोक लगाने की मांग की है.

सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी की युवा इकाई प्रतिबंध की बात तो नहीं कह रही लेकिन मान कर चल रही है कि बाजार और पर्यावरण के अनुरूप इसे कम किया जा रहा है. जबकि लेबर पार्टी की युवा इकाई इसे 2035 तक पूरी तरह बंद कर देना चाहती है. तेल उद्योग की समर्थक रही लेबर पार्टी के ताजा रुख ने तेल और गैस उद्योग को परेशानी में डाल दिया है. इससे संसद में बहुमत तेल खुदाई के खिलाफ हो गया है. माना जा रहा है कि इस इलाके में अज्ञात भंडारों का करीब पांच फीसदी तेल है. अब तेल उद्योग को आशंका है कि आर्कटिक में जारी तेल की खुदाई का विरोध ना शुरू हो जाए.

हालांकि, तेल उद्योग को कमजोर करने के नुकसान भी हैं. इससे करीब 1,70,000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है. ये उद्योग देश की कमाई का सबसे बड़ा साधन है. जीडीपी का करीब 17 प्रतिशत इसी से आता है. तेल उद्योग की ट्रेड यूनियन के नेता फ्रोडे एलफेह्म का कहना है कि हर जिम्मेदार सरकार को तेल और गैस उत्पादन से मिलने वाले राजस्व पर निर्भर रहना होता है और इसका संतुलन बनाना होता है. इन्हें किसी दूसरे संसाधन से बदला नहीं जा सकता है. देश की खुशहाली में इसका बड़ा योगदान है.

कुशल कर्मचारियों की कमी

राजनीतिक विरोध के अलावा नॉर्वे का तेल उद्योग कुशल कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है. अगले दशक तक तेल उद्योग से 21 हजार कर्मचारी रिटायर हो जाएंगे. लेकिन पेट्रोलियम विज्ञान और पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में दाखिला लेने वालों की संख्या बेहद कम हो गई है. 2018 में केवल 33 विद्यार्थियों ने इन कोर्सों में दाखिला लिया. अगले पांच साल में यह संख्या और कम हो सकती है. इसका एक कारण यह है कि विद्यार्थियों को लगता है कि राजनीतिक और पर्यावरण कारणों से पेट्रोलियम उद्योग में आगे भविष्य नहीं है. ऐसे में वो एक ज्यादा सुरक्षित भविष्य की तलाश में हैं.

अगर ऐसा चलता रहेगा तो आने वाले समय में तेल उद्योग कमजोर होता जाएगा. फिलहाल पश्चिमी यूरोप में नॉर्वे सबसे बड़ा तेल उत्पादक है. अगर इस देश का तेल उद्पादन कम होगा तो उससे बेरोजगारी की समस्या भी पैदा होगी. इस बारे में तेल उद्योग में काम करने वाले लोगों का कहना है कि वे बस ये सब देख सकते हैं लेकिन इसके बारे में कुछ अच्छा होने की प्रार्थना करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं.

Flash-Galerie Ölförderung in der Nordsee
उत्तरी सागर के नॉर्वे वाले भाग में स्थित एक तेल उत्पादन प्लेटफॉर्म.तस्वीर: AP

पर्यावरण बचाने में अर्थव्यवस्था को नुकसान

नॉर्वे के सामने पर्यावरण की चुनौती बहुत मुश्किल है. सेंटर पार्टी की युवा इकाई की नेता एडा जोहन्ना कहती हैं कि अगर दूसरे देशों ने पेरिस समझौते के तहत कार्बन उत्पादन में कमी करते हुए पर्यावरण को बचाने के लक्ष्य को पूरा करना शुरू कर दिया तो नॉर्वे अपने तेल और गैस उद्योग को कैसे बचा पाएगा. इसलिए हमें अभी से इसके लिए तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.

नॉर्वे की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा तेल उत्पादन पर टिका हुआ है. लेकिन पर्यावरण की चुनौतियों से वहां के युवा चिंतित हैं. वो पैसे से ज्यादा पर्यावरण के लिए चिंतित हैं. वो 'क्लाइमेट बिफोर कैश' यानी पैसे से पहले पर्यावरण के नारे को लेकर चल रहे हैं. नॉर्वे के युवा समझ रहे हैं कि अमीर होने से ज्यादा जरूरी साफ हवा में सांस ले पाना और स्वच्छ वातावरण में रहना है. नए ऊर्जा स्रोतों के आने के बाद तेल की जरूरत में गिरावट आ रही है. इसके चलते वो पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों की चुनौतियों से सामना करने की तैयारी कर रहे हैं.

आरएस/एके (रॉयटर्स)