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रूस में गीता पर पाबंदी नहीं लगेगी

Priya Esselborn२१ मार्च २०१२

रूस में गीता पर पाबंदी नहीं लगेगी. निचली अदालत के फैसले पर जिला अदालत ने भी अपनी मुहर लगा दी है और इसे बदलने से इनकार कर दिया है. दुनिया भर में गीता को मानने वाले लोगों ने खुशी जताई है.

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तस्वीर: Motilal UK Books of India

साइबेरियाई शहर टोम्स्क की जिला अदालत ने कहा है कि बीते साल दिसंबर में निचली अदालत ने जो फैसला दिया था वो उसमें वो "कोई बदलाव नहीं" करेगी. निचली अदालत ने "भगवद् गीता" के कुछ हिस्सों को चरमपंथी मानने से इनकार करते हुए उसकी छपाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. जिला अदालत की तरफ से एलेक्जेंडर शाखोव ने कहा है, "यह पूरी तरह न्यायपूर्ण, उचित और सबसे महत्वपूर्ण रूप से वैध फैसला है." कोर्ट ने जैसे ही यह फैसला सुनाया पूरी तरह से भरी हुई अदालत में लोग खुशी से चीख पड़े.

मास्को में इस्कॉन से जुड़े साधु प्रिय दास ने फैसला आने के बाद समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "टोम्सक की अदालत ने याचिका खारिज कर दी है, ऊंची अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है. हम रूसी न्याय व्यवस्था के आभारी हैं." मास्को में भारत के राजदूत अजय मल्होत्रा ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है. मल्होत्रा ने एक बयान जारी कर कहा है, "यह अच्छा है कि इस मामले में निचली अदालत के फैसले पर मुहर लगा दी गई है. मुझे भरोसा है कि अब यह मामला खत्म हो गया है."

अभियोजक कई महीने से भगवद् गीता के अनुवाद पर पाबंदी लगाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि इसमें इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद की लिखी एक प्रस्तावना है. उसके कुछ हिस्से रूस में लागू कुछ कानूनों के खिलाफ जाते हैं. पिछले महीने भगवद् गीता पर बुलाए गए एक सम्मेलन में शामिल हुए लोगों ने सुझाव दिया था कि विद्वानों का एक स्वतंत्र बोर्ड बनाया जाए जो गीता के उपदेशों में चरमपंथ के निशान की पहचान करने की कोशिश करें. इस सम्मेलन ने माना, "भगवद् गीता की एक स्थायी ऐतिहासिक स्वीकृति है जो धार्मिक प्रशासन में उपदेशक की परंपरा चलाती है और सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी सांस्कृतिक विकास पर इसका आध्यात्मिक प्रभाव है." सम्मेलन में साफ तौर पर कहा गया कि भगवद् गीता के उपदेशों को किसी भी तरह से चरमपंथी नहीं माना जा सकता.

भगवद् गीता रूस में पहली बार 1788 में छपी. तब से लेकर अब तक यह लगातार छपती आ रही है और इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी यहां छपा है. भारत और रूस के बीच बहुत पुराने और गहरे संबंध रहे हैं. दोनों देशों की संस्कृतियों के प्रति एक दूसरे देश में काफी सम्मान रहा है. ऐसे में गीता पर रोक या पाबंदी की कोशिशों की आंच इस करीबी रिश्ते पर भी पड़ने की आशंका बढ़ गई थी. भारतीय विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने रूस की सरकार से इस मामले का जल्दी से हल निकालने को कहा था. पिछले साल जब निचली अदालत ने अपना फैसला सुनाया तब भारत ने उसका स्वागत किया और इसे "संवेदनशील मसले का विवेकपूर्ण हल" कहा.

रिपोर्टः पीटीआई, एएफपी/एन रंजन

संपादनः महेश झा