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लोफ़ार सबसे बड़ा रेडियो टेलिस्कोप

२७ जून २०१०

अंतरिक्ष बिल्कुल शून्य तो नहीं है, पर शांत भी नहीं है. तरह-तरह के कोलाहल से भरा हुआ है. इस कोलाहल को हम अपने कानों से नहीं सुन सकते, सुन सकते हैं रेडियो टेलिस्कोप से. इस समय सबसे बड़ा टेलिस्कोप है लोफ़ार.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

रेडियो टेलिस्कोप ऐसे टेलिस्कोप हैं, जो अंतररिक्ष में दूर-दूर से आ रही रेडियो तरंगों को पकड़ सकते हैं. मज़े की बात यह है कि अंतरिक्ष में कहीं कोई रेडियो स्टेशन नहीं है. कोई रेडियो प्रसारण नहीं होता. तब भी असंख्य रेडियो तरंगें हमारे पास पहुंचती हैं. ये तरंगे पैदा करते हैं अंतरिक्ष में दूर-दूर तक फैले हुए असंख्य तारे, तारकमंडल, आकाशगंगाएं, इत्यादि. रेडियो तरंगे उनकी परिचय-धुन हैं.

गत 12 जून को नीदरलैंड की महारानी बेआट्रिक्स ने वहां के बुइनेन शहर में एक ऐसे ही रेडियो टेलिस्कोप का उद्घाटन किया, जो इस समय संसार का सबसे बड़ा रेडियो टेलिस्कोप बताया जा रहा है. Low Frequency Array, संक्षेप में LOFAR कहलाने वाला यह टेलिस्कोप यूरोप के कई देशों की एक मिलीजुली परियोजना है. नीदरलैंड के अलावा जर्मनी, स्वीडन, ब्रिटेन, फ्रांस, पोलैंड, यूक्रेन और इटली भी 15 करोड़ यूरो मंहगी इस परियोजना में शामिल हैं.

रेडियो संकेत संदेश हैं ब्रह्मांड के

अब तक आम तौर पर कई-कई मीटर व्यास के विशालकाय पैराबोलिक डिश एंटेना वाले रेडियो टेलिस्कोप बना करते थे. लोफ़ार उन से भिन्न 1500 किलोमीटर के दायरे में फैले 25 हज़ार अलग-अलग एंटेनों का एक संजाल होगा. अलग-अलग देशों के छह शोधकेंद्र इन एंटोनों से आ रहे संकेतों की पहले छानबीन करेंगे और तब अपने आंकड़े एक सुपरफ़ास्ट ग्लासफ़ाइबर नेटटवर्क के द्वारा नीदरलैंड भेजेंगे. वहां के ख्रोनिंगन सुपर कंप्यूटर सेंटर में इन आंकड़ों का 35 टेराफ्लॉप प्रति सेकंड गणना क्षमता वाले एक सुपर कंप्यूटर की सहायता से विश्लेषण किया जायेगा.

Flash-Galerie Die Sombrero Gallaxy aufgenommen von dem Hubble Space Teleskop
तस्वीर: NASA

लोफ़ार से भी कई ऐसे पुराने प्रश्नों के उत्तर पाने की आशा की जा रही है, जो वैज्ञानिकों को बार-बार चौंका देते हैं. उदाहरण के लिए, कोई दो साल पहले वैज्ञानिकों ने पाया कि अंतरिक्ष से कुछ ऐसे रेडियो सिग्नल भी आ रहे हैं, जो अब तक के ज्ञात स्रोतों से छह गुना अधिक शक्तिशाली हैं.

अमेरिका में एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के खगोलविद एंडी लॉरेंस की उनमें विशेष दिलचस्पी है. "लगता है कि अंतरिक्ष में रेडियो तरंगों वाले कुछ ऐसे स्रोत भी हैं, जो अब तक अज्ञात थे. हमने हिसाब लगाया है कि अंतरिक्ष में रेडियो फ्रीक्वेंसियों वाले पृष्ठभूमि-कोलाहल की व्याख्या करने के लिए हमें क़रीब सौ अरब नये आकाशीय पिंड़ों को जानना-समझना होगा. यह संख्या हमारी पहुँच के भीतर के ब्रह्मांड की सभी गैलेक्सियों के लगभग बराबर है."

परिचय धुन हैं गैलेक्सियों की

गैलेक्सी कहते हैं हमारी आकाशगंगा की तरह के तारों इत्यादि के भारी जमघट को. जिस तरह तारों की चमक एक जैसी नहीं होती, उसी तरह गैलेक्सियां भी, जिन्हें हिंदी में मंदाकिनी कहते हैं, अलग-अलग तीव्रता वाली रेडियो तरंगें पैदा करती हैं, जैसा कि एंडी लॉरेंस बताते हैं, "हमारे आस-पास की हर कुंडलीदार गैलेक्सी कुछ-न-कुछ रेडियो तरंगें पैदा करती है. अधिकतर तरंगें उनके तारों या उनके बीच हुए विस्फोटों की देन होती हैं. बहुत-सी तरंगें गर्मी-वाहक इन्फ्रारेड तरंगें होती हैं. लेकिन, हम पाते हैं कि रेडियो फ्रीक्वेंसी वाली तरंगें कहीं ज़्यादा होती हैं. हमारे पास की गैलेक्सियों की तुलना में बहुत दूर की गैलेक्सियों से आ रही शक्तिशाली रेडियो तरंगों का मतलब है कि वे किसी और तरीके से पैदा होती हैं. हमारा अनुमान है कि उनके बीच में हमेशा कोई क्वासार बैठा होता है."

ब्लैक होल भी खेल में शामिल

क्वासर या क्वासार वास्तव में ऐसे ब्लैक होल, ऐसे कृष्ण विवर हैं, जो बेहद भारी होते हैं और सुरसा के मुँह की तरह आस-पास के सारे पदार्थ को खींच कर निगल जाते हैं. यह पदार्थ, जो गैसीय बादलों, तारों या तारक मंडलों के रूप में भी हो सकता है, ब्लैक होल में समा कर बुझने से पहले एक बार फिर ज़ोरों से धधक उठता है और तब रेडियो तरंगें भी पैदा करता है.

Milchstraße Flash-Galerie
तस्वीर: AP

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के आरंभ में हर गैलेक्सी के केंद्र में बहुत तेज़ी से घूम रहा एक ब्लैक होल रहा होगा. इस बीच उनकी घू्र्णन गति धीमी पड़ गयी होनी चाहिये. इसलिए अब उनका पता केवल तभी चल पाता है, जब वे पुनः भारी में मात्रा में पदार्थ निगल रहे होते हैं और यह पदार्थ रेडियो तरंगों के रूप में मानो चीख-पुकार लगा रहा होता है.

रेडियो तरंगें हों या फिर इन्फ्रारेड, अल्ट्रावॉयलेट, एक्स-रे या सामान्य प्रकाश हो, सभी मूलरूप में इलेक्ट्रोमैग्नेटिज़्म (विद्युत-चुंबकत्व) के ही अलग-अलग रूप हैं. उनके रूप में सारे अंतर अलग-अलग फ्रीक्वेंसियों और उनसे जुड़ी वेवलेंग्थ की देन हैं.

दो रेडियो बैंडों का उपयोग

यही सोच कर लोफ़ार टेलिस्कोप के लिए 10 से 240 मेगाहेर्त्स फ्रीक्वेंसी के बीच के दो रेडियो बैंडों और उनके लायक दो प्रकार के एंटेनों का उपयोग किया जायेगा. समझा जाता है कि इस बैंड-विस्तार में कम ऊर्जा वाले ऐसे इलेक्ट्रॉन होंगे, जिनका जीवनकाल इतना लंबा हो सकता है कि वे गैलेक्सियों के बीच अरबों वर्ष पहले हुए विस्फोटों के भी सुराग दे सकें. इन सुरागों के आधार पर खगोलविद यह भी जानना चाहेंगे कि ब्रह्मांड में प्रकाश कब पैदा हुआ? उच्च ऊर्जा संपन्न ब्रह्मांडीय कण कहां से आते हैं? ऐसे कौन-कौन से स्रोत हैं, जो रेडियो तरंगें पैदा करते हैं और ये तरंगें हमें ब्रह्मांडीय चुंबकीय क्षेत्रों के बारे में क्या बताती हैं? लोफ़ार रेडियो टेलिस्कोप ब्रह्मांड में क़रीब 13 अरब प्रकाश वर्ष दूर तक देख सकेगा.

रिपोर्ट: राम यादव

संपादन: महेश झा