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समाज

लड़की का पीछा करना प्यार नहीं कहलाता

१४ फ़रवरी २०१९

साठ के दशक का शम्मी कपूर का हिट गाना "अकेले अकेले कहां जा रहे हो" आज भी लोगों की जबान पर है. लेकिन इस तरह से किसी लड़की का पीछा करने को "स्टॉकिंग" कहा जाता है और इसके लिए जेल भी हो सकती है.

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Stuttgart Film Festival 2018
तस्वीर: Indian Film Festival Stuttgart

बॉलीवुड फिल्मों में जहां खूबसूरत प्रेम कहानियां दिखाई जाती रही हैं, वहीं लड़कियों का पीछा कर उन्हें पटाने का चलन भी दिखाया जाता रहा है. चाहे वह 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' में वरुण धवन का आलिया भट्ट को पटाने की कोशिश करना हो या 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' में अक्षय कुमार द्वारा भूमि पेडनेकर की सहमति लिए बिना पीछा कर तस्वीरें लेना हो या फिर 'डर' में जूही चावला का पीछा कर शाहरुख का 'तू हां कर या ना कर, तू है मेरी किरण' गाना हो, हिंदी सिनेमा में इसे खूब भुनाया गया है.

सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी महिलाओं का पीछा करने का चलन बनाने के लिए सिनेमा को जिम्मेदार ठहराती हैं. कुमारी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "वे दिखाते हैं कि शुरू में अगर कोई महिला 'नहीं' कहती है तो उसके 'नहीं' को मनाही के तौर पर नहीं लिया जाए. वास्तव में यह 'हां' है. यह लंबे समय से रहा है. पीछा करने को रोमांटिक तरीके से दिखाया जाता रहा है."

कुमारी ने आगे कहा, "यह उस पुरुष प्रधानता को दर्शाता है जिसमें किसी भी तरह महिला को पुरुष के आगे झुकना ही होगा. यह एक मिथक है जिसे इस संस्कृति को बनाकर बढ़ावा दिया जा रहा है. महिला अभी भी पुरुष की इच्छापूर्ति करने की एक वस्तु है."

फिल्म 'रांझणा' में नजर आईं अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने स्वीकार किया कि आनंद एल राय निर्देशित इस फिल्म में पीछा करने की आदत का महिमामंडन किया गया. स्वरा ने करीना कपूर खान के रेडियो शो के एक एपिसोड में कहा, "जब यह सामने आया, तो पीछा करने को महिमामंडित करने के लिए नारीवादियों द्वारा इसकी आलोचना की गई. लंबे समय तक मैंने इस पर विश्वास नहीं किया और सोचा कि यह सच नहीं है लेकिन फिर जैसे जैसे समय बीतता गया, मैं सोचने लगी कि शायद यह सच है."

मनोवैज्ञानिक समीर पारिख के अनुसार फिल्मों का किसी न किसी स्तर पर लोगों पर प्रभाव पड़ता है. पारिख ने आईएएनएस से कहा, "जब आप किसी चीज को अपने सामने शानदार ढंग से प्रस्तुत होते हुए देखते हैं, तो आपको लगता है कि यह करना ठीक है, तो आप इसके प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं. यह वास्तविकता के प्रति आपके नजरिए को बदल देता है. लोग, विशेष रूप से युवा, वे काम करने लगते हैं जो वो अपने रोल मॉडल को करते देखते हैं." उन्होंने आगे कहा, "लोगों को शिक्षित करना और उन्हें सही सपोर्ट व मार्गदर्शन देना जरूरी है."

फिल्मों में यह भी अकसर सुनने को मिलता है कि महोब्बत और जंग में सब जायज है. लेकिन लोगों को यह समझाना अब जरूरी हो गया है कि प्यार में सब कुछ जायज नहीं हो सकता और इस नजरिए को पीछा करने के संदर्भ में भी अपनाए जाने की जरूरत है.

सुगंधा रावल (आईएएनएस)

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