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कला

विपुल भारतीयता के रचनाकार थे गिरीश कर्नाड

शिवप्रसाद जोशी
१० जून २०१९

विख्यात नाट्यकार, रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता गिरीश कर्नाड नहीं रहे. बंगलुरु में उन्होंने आखिरी सांस ली. सघन रचनात्मक वितान के अलावा वे अपने साहस और प्रखर राजनीतिक चेतना के लिए भी याद रहेंगे.

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Girish Karnad - Jnanpith Gewinner winner und Schauspieler verstorben
तस्वीर: IANS

गिरीश रघुनाथ कर्नाड उन गिनेचुने सच्चे सार्वजनिक बुद्धिजीवियों में शामिल थे जिन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकारों की हिफाजत और एक शांतिपूर्ण, अहिंसक और मानवीय समाज की रचना में अपना जीवन खपा दिया. आखिरी कुछ वर्षों की कर्नाड साहब की वे तस्वीरें कभी नहीं भुलाई जा सकेंगी जब नाक में नली लगाए, शरीर से अशक्त लेकिन एक अटूट मानवीय बेचैनी से भरे हुए गिरीश कर्नाड धरनों, प्रदर्शनों, रैलियों और व्याख्यानों में शामिल होते रहे थे. धार्मिक कट्टरपंथियों और बहुसंख्यकवादी ट्रोल गिरोहों ने उन्हें भरसक अपमानित करने की कोशिश की लेकिन कर्नाड अपने इरादों से टस से मस नहीं हुए.

हिंदूवादी कट्टपंथियों की गोलियों का निशाना बनीं पत्रकार गौरी लंकेश उनकी अजीज दोस्त थीं. उनकी मौत से विचलित और स्तब्ध होने वालों में कर्नाड भी थे और उनके लिए इंसाफ मांगने वाले लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और आम लोगों के समूहों में वे भी शामिल हुए और आवाज उठाई.

गौरी लंकेश की पहली बरसी के मौके पर जब 2017 में बंगलुरू में उनकी याद में शोकसभा और संघर्ष की एकजुटता के लिए बैठक हुई, तो अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ नाक में नली लगाए अपनी अस्वस्थता के बावजूद न सिर्फ गिरीश कर्नाड शामिल हुए, उन्होंने वक्तव्य भी दिया और अपने गले पर "मी टू नक्सल” की तख्ती डालकर अपना सांकेतिक प्रतिरोध दर्ज कराया.

देश में आम चुनावों से पहले देश की जनता से नफरत की राजनीति के खिलाफ और विविधता भरे बराबरी वाले भारत के पक्ष में मतदान का आह्वान करने वाले 200 लेखकों और संस्कृतिकर्मियों के एक बड़े समूह में गिरीश कर्नाड का नाम भी शामिल था. लेकिन ऐसा नहीं था कि पिछले कुछेक साल से ही कर्नाड सक्रिय और मुखर हुए थे. वे हमेशा समाज के दबंगों के अन्याय और सत्ता राजनीति की नाइंसाफियों और शोषणों के खिलाफ बोलते लिखते रहे. शासन चाहे किसी भी राजनीतिक दल का हो, गांधीवादी मूल्यों के प्रबल पक्षधर गिरीश कर्नाड ने अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया.

कन्नड़ साहित्य और कला जगत ही नहीं, समकालीन भारतीय कला और नाट्य परंपरा उनके बिना अधूरी और सूनी है. उनकी उपस्थिति की विराटता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजाद भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय और श्रेष्ठतम नाट्यकारों की सूची में उनका नाम आदर से लिया जाता है. 1961 में अपने पहले नाटक "ययाति” से कर्नाड ने नाट्य जगत में हलचल मचा दी थी. 1964 में उन्होंने "तुगलक” नाटक लिखा. 1971 का उनका लिखा "हयवदन” नाटक अंतरराष्ट्रीय महत्त्व का माना जाता है. इसी तरह "नागमंडल” भी दर्शकों के दिलोदिमाग पर छा गया.

रंगमंच पर अभिनय के अलावा "मालगुडी डेज़” जैसे टीवी धारावाहिकों में कर्नाड ने अद्भुत भूमिकाएं निभाईं. 1971 में उन्होंने कन्नड़ फिल्म "संस्कार” से फिल्मों में अभिनय की शुरुआत की. ये फिल्म प्रसिद्ध कन्नड़ साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति के इसी नाम के अत्यन्त चर्चित उपन्यास पर आधारित है. अनंतमूर्ति का 2014 में निधन हो गया था. उन्होंने भी जीवनभर धार्मिक कट्टरपंथ की कड़ी आलोचना और संघर्ष किया था.

दुनिया में अब तक की सबसे कामयाब फिल्में

गिरीश कर्नाड ने "मंथन”, "स्वामी”, "निशांत” जैसी समांतर धारा की हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में सशक्त और यादगार अभिनय भी किया. हिंदी के व्यवसायिक सिनेमा में भी वे बेजोड़ चरित्र भूमिकाओं में नजर आते रहे. दूरदर्शन पर प्रसारित विज्ञान पत्रिका "टर्निंग प्वायंट” के होस्ट के रूप में घर घर जाने गए. अभिनय के अलावा उन्होंने कुछ कन्नड़ और हिंदी फिल्मों का निर्देशन भी किया. उनकी सिने उत्कृष्टता का अंदाजा इसी बात से लगता है कि उन्हें 10 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुए. 1974 में उन्होंने पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण सम्मान मिला. 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1998 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया है. कन्नड़ भाषा में लिखे उनके नाटकों का देश विदेश की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है.

कर्नाड ने अपनी नाट्य रचनाओं में मिथक और इतिहास के बिंबों, प्रतीकों और कथानकों के जरिए विकट समकालीनता को समझने की कोशिश की है. अपने समय के मुद्दों पर उनकी बेबाकी उनके मिथकीय नाट्य आख्यानों में बनी रहती थी. वे अपने नाटकों से अपने समय के संताप और उद्विग्नताओं और विरोधाभासों और विडंबनाओं को रेखांकित करते थे. कर्नाड भारतीय लोकमानस और लोकबिंब के आधुनिकतावादी साधक और सर्जक थे.

उत्तर और दक्षिण की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को अपनी कुशल कारीगरी से अपनी रचनाओं में पिरोया. 20वीं सदी के 60 के दशक में भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने वालों में उनका नाम भी शामिल है. विजय तेंदुलकर, मोहन राकेश, बादल सरकार और धर्मवीर भारती जैसे नाट्य पुरोधाओं में उनकी भी गिनती होती है. अपने अपने समय के दिग्गज रंगकर्मियों और रंग निर्देशकों ने कर्नाड के नाटकों का सफल मंचन किया.

अपनी अपार रचनात्मक ऊर्जा और विविधता भरे रचना संसार के बीच गिरीश कर्नाड एक सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. चौड़े ललाट, दर्शनीय व्यक्तित्व, एक गहरी ठोस मीठी और प्रतिबद्ध आवाज वाले कर्नाड प्रसिद्धियों और लोकप्रियताओं के शिखर पर रहकर भी दुर्लभ विनम्रता के स्वामी थे. वे जैसे समूचे भारतीय सांस्कृतिक जीवन के अग्रदूत थे. मानो गुरू रविन्द्रनाथ टैगोर के सबसे सच्चे और निकटस्थ प्रतिनिधि!

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