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वेन की भारत यात्रा के बाद निराशा

२३ दिसम्बर २०१०

चीनी प्रधानमंत्री हों या रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा. जर्मन अखबारों की नजर दोनों पर बनी रही. वहीं पाकिस्तान की स्थिति पर जर्मनी के कुछ अखबारों ने टिप्पणी की है.

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तस्वीर: AP

चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के बाद निराशा फैल रही है. यह मानना है ज्युरिख स्थित नोए ज्युरिषर त्साइटुंग का. भारत और चीन के बीच चल रहे किसी भी विवाद पर यात्रा के दौरान हल नही ढूंढा जा सका. राजनीतिक विवादों को देखते हुए जियाबाओ की यात्रा के केंद्र में भारत और चीन के बीच आर्थिक संबंध थे. अखबार का कहना है.

भारत और चीन के संबंधों को लेकर भारत की सबसे बडी चिंता यह है कि चीन और पाकिस्तान के बीच बहुत ही करीबी रिश्ते हैं. साथ ही दशकों से चल रहा भारत और चीन के बीच सीमा विवाद भी समस्या बना हुआ है. भारत बहुत ही नाराज इस बात से भी है कि चीन अब कश्मीर को लेकर स्पष्ट भाषा का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचा रहा है, जबकी अतीत में चीन ने उस इलाके पर जिसको भारत और पाकिस्तान दोनों अपना बता रहे हैं संयम बरत रहा था. स्पष्ट यह है कि चीन और भारत के संबंध बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं और शायद इतने जटिल हैं जितने पहले कभी भी नहीं थें. जियाबाओ ने यात्रा के दौरान कहा कि सीमा विवाद एक ऐतिहासिक समस्या है. सबसे पहले दोनों देशों के बीच भरोसा स्थापित करने का काम शुरू होना चाहिए. हालांकि भारत चीन पर तब तक भरोसा नहीं कर सकता है जब तक वह अरुणाचल प्रदेश को अपना मानेगा और 4000 किलोमीटर लंबी सीमा पर हमोशा तनाव बनाए रखेगा.

रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की भारत यात्रा पर भी नोए ज्युरिषर त्साइटुंग ने टिप्पणी की और कहा.

भारत ने क्षेत्र में लगातार उग्र बनते जा रहे अपने पुराने प्रतिसर्पर्धी चीन से डर के कारण पिछले सालों में अपने रक्षा बजट को बढाया. इसके साथ वह दुनियाभर में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में से एक बन गया है. हालांकि भारत पहले से रूस से हथियार खरीदता रहा है लेकिन अब रूस के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है.अमेरिका के अलावा कई यूरोपीय देश भी भारत को हथियार और सामान बेचना चाहते हैं. यह कोई संयोग की बात नहीं है कि पिछले छह महिनों के अंदर संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के सभी पांच स्थाई सदस्यों देशों के प्रधानमंत्रियों या राष्ट्रपतियों ने भारत का दौरा किया.

Staatsbesuch Medvedev in Indien
तस्वीर: AP

और अब एक नजर पाकिस्तान पर.

अमेरिका के पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए विशेष दूत रिचर्ड होलब्रुक की अचानक मौत के बाद फ्रांकफुर्टर अलगमाइने त्साईटुंग का मानना है कि होलब्रुक भी स्थिति में बदलाव नहीं ला पाए जबकि वह एक बहुत ही कुशल मध्यस्थ और युद्धनितिज्ञ माने जाते थे. अखबार का कहना है.

पाकिस्तान की सरकार सैनिक शासन और उच्च स्तरीय भ्रष्ट नेताओं का मिश्रण है. और यह बात हमेशा लागू होती है चाहे किसी भी पार्टी का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बने. देश के पास परमाणु हथियार हैं और कट्टरपंथी शक्तिशाली बनते ही जा रहे हैं. इसके अलावा पाकिस्तान अमेरिका का उस इलाके में सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी है. अमेरिका के दबाव पर पाकिस्तानी सरकार अब सैनिक अभियानों के साथ इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई का नाटक कर रही हैं. लेकिन दृढ़निश्चय के साथ उनके खिलाफ कभी भी कार्रवाई नहीं की गई है. इसकी वजह एक तरफ अक्षमता है. दूसरी तरफ भारत पाकिस्तान के बीच जारी विवाद के कारण पिछले दरवाजे से इस्लामिक कट्टरपंथियों को समर्थन दिया जा रहा है. पाकिस्तान अफगानिस्तान को हमेशा अपना प्रभावक्षेत्र मानता रहा है और उसकी सोच यह है कि यदि वाकई में भारत पाकिस्तान पर हमला करे तो ऐसी स्थिति में पाकिस्तान अफगानिस्तान से रणनीतिक शक्ति हासिल कर सकता है. इस सोच में कोई बदलाव नहीं आया है चाहे रिचर्ड होल्ब्रुक ने कितनी भी कोशिश की हो.

इरान के पूर्वी प्रदेश सिस्तान- बलूचिस्तान में आतंकवादियों ने एक शियाई शवयात्रा पर हाल ही में आतंकवादी हमला किया. इस हमले में 39 लोगों की मौत हुई और 50 से भी ज्यादा गंभीर रूप से घायल हुए. इस हमले की जिम्मेदारी एक संगठन ने ली है जिसका नाम जुंदोल्लाह यानी ईश्वर के सैनिक है. इस संगठन में ज्यादातर सुन्नी शामिल हैं और बलोच समुदाय के लोग. जर्मनी के सबसे प्रसिद्ध दैनिकों में से एक फ्रांकफुर्टर अलगमाइने त्साइटुंग का कहना है.

ईरान के पूर्व में और पाकिस्तान की पश्चिम सीमा के दूसरी ओर करीब 10 लाख बलोच रहते हैं. दक्षिणी अफगानिस्तान में उनकी संख्या एक लाख बताई जा रही है. बहुत सारे बलोच कराची में भी रहते हैं. ईरान में बलोचों के नेता अकसार कहते हैं कि शिया बहुमत वाली सरकर उन्हें अलग थलग कर रही है है. पाकिस्तान और ईरान का बलोचों के साथ विवाद विश्व स्तर पर बहुत ही छोटा विवाद माना जा सकता है. लेकिन इस तरह के हमले यह दिखाते हैं कि बलोचों में अभी भी राष्ट्रवाद की भावना मौजूद है. एक इलाके में जहां पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में अस्थिरता और संकट है इस तरह के छोटे माने जा रहे विवाद स्थिति को और भी गंभीर बना सकते हैं.

रिपोर्टः अना लेहमान/प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन आभा एम