1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

शक के बीच हथियारों पर अंकुश की कोशिश

३ जुलाई २०१२

दुनिया भर में मौजूद हथियार हर मिनट एक व्यक्ति की जान लेते हैं. जीवन की ऐसी बर्बादी को रोकने की कोशिश न्यू यॉर्क में शुरू हुई है. यहां हथियारों के कारोबार पर हो रही बहस में मौजूद सभी देश माने तो संधि भी होगी.

https://p.dw.com/p/15QGd
तस्वीर: reuters

संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले न्यू यॉर्क में दुनिया भर के प्रतिनिधि हथियारों के कारोबार में चल रही मनमानी को बंद करना चाहते हैं. यह पहला मौका है जब इस तरह की संधि की बात हो रही है. करीब एक महीने तक चलने वाली बातचीत के जरिए संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि ऐसी संधि हो कि सभी देश हथियारों के कारोबार को लेकर बाध्यकारी नियमों में बंध जाएं. फिलहाल दुनिया 60 अरब डॉलर प्रति वर्ष का हथियार बाजार बनी हुई है.

हथियारों पर नियंत्रण की वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं के मुताबिक दुनिया में 70 फीसदी मौतें हथियारों की वजह से होती है. पुरजोर तरीके से यह मांग उठाई जा रही है कि विवादास्पद इलाकों और तानाशाही सत्ता वाले देशों के साथ हथियारों का अंधाधुंध कारोबार बंद होना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र के ज्यादातर सदस्य कड़ी संधि के पक्ष में हैं. अगर ऐसा हुआ तो संधि मानने वाले हर देश को हथियार कंपनियों के कारोबार पर पैनी नजर रखनी होगी. सीमा के आस पास हथियार डीलरों और कंपनियों के संबंधों पर सरकारें दखल दे सकेंगी.

Afghanistan Kunar USA Militär Amoklauf amerikanischer Soldat
तस्वीर: Reuters

सीरिया में जारी हिंसा का मुद्दा भी बातचीत में उठ रहा है. वहां बीते 16 महीने से राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. असद पर प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए सेना का इस्तेमाल करने के आरोप लग रहे है. अब तक 15,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल में इंटरनेशनल आर्म्स कंट्रोल एंड ह्यूमन राइट्स के मैनेजर ब्रायन वुड ने कहा, "दुनिया एक बार फिर सीरिया, सूडान और ग्रेट लेक्स ऑफ अफ्रीका में लापरवाह व अत्यधिक हथियार कारोबार का सबूत दे रही है, वह भी डरावने ढंग से इंसान की जान की कीमत पर."

वुड्स न नेताओं को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया, "अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हथियारों की सौदेबाजी को लेकर नेताओं के जागने और अंतिम कार्रवाई करने से पहले आखिर क्यों लाखों लोगों को मरना चाहिए."

हालांकि इस बहस के बावजूद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि 2-27 जुलाई तक चलने वाली इस बैठक से कोई संधि निकलेगी. संधि के लिए यह जरूरी है कि सभी देश उस पर एकमत हों. लेकिन कुछ प्रस्तावों को लेकर गहरे मतभेद हैं. एक मुद्दा यह है कि क्या किसी खास देश को हथियार देते समय सरकार को मानवाधिकारों का ध्यान अनिवार्य रूप से रखना चाहिए. मतभेदों से वाकिफ कंट्रोल आर्म्स के निदेशक जेफ एब्रैम्सन कहते हैं, "यह बेहूदा और घातक सत्य है कि फलों और डायनासोरों की हड्डियों के कारोबार तक के लिए नियम हैं लेकिन बंदूकों और टैंकों के कारोबार के लिए कोई नियम नहीं है."

अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा कारोबारी है. दुनिया भर में बिकने वाले पारंपरिक हथियारों का 40 फीसदी हिस्सा अमेरिका से आता है. वहां हर साल छह अरब गोलियां बनती हैं. अमेरिका में सबसे ज्यादा हथियार भी हैं. वहां औसतन 100 लोगों में से 90 के पास बंदूक है. बीते एक दशक में अमेरिका के स्कूलों और यूनिवर्सिटियों में फायरिंग में कई लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन इसके बावजूद वॉशिंगटन चाहता है कि संधि में किसी तरह की निगरानी का बाध्यकारी प्रावधान न हो. टॉप-5 हथियार मुहैया कराने वाले देशों में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी और रूस भी हैं. चीन और रूस सीरिया के मुख्य साझेदार हैं. दोनों देश ईरान के साथ मिलकर शस्त्र कारोबार संधि का विरोध कर रहे हैं. तीनों को लगता है कि ऐसा करने से शक्ति संतुलन गड़बड़ा जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है. भारत, जापान, पाकिस्तान और सऊदी अरब की मांग है कि सेना का आधुनिकीरण करने के मामले में संधि में कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए.

जुलाई अंत तक शस्त्र कारोबार संधि करने के लिए अधिकारियों और नेताओं को काफी माथापच्ची करनी होगी. इसके लिए प्रस्तावों से ज्यादा इच्छाशक्ति की जरूरत होगी. ब्रायन वुड्स के मुताबिक अगर सब कुछ ठीक रहा तो करीब 36 देशों की मुहर के बाद संधि 2013 के अंत से लागू हो सकेगी. अगर सब कुछ गलत हुआ तो बहते खून के बीच हथियारों पर होने वाली बहस मौत और बिक्री के नए आंकड़ों के बीच जारी रहेगी.

ओंकार सिंह जनौटी/एन रंजन(एएफपी, रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें