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श्रीलंका में 8 अप्रैल को होंगे आम चुनाव

१० फ़रवरी २०१०

श्रीलंका में राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने संसद को भंग कर दिया है और देश में 8 अप्रैल को आम चुनाव होंगे. दो दिन पहले ही पूर्व सेना प्रमुख और राष्ट्रपति चुनाव में पराजित होने वाले सरथ फ़ोनसेका को गिरफ़्तार किया गया.

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राजनीतिक माहौल का पारा और चढ़ातस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून श्रीलंका की राजनीतिक उठापटक पर बेहद चिंतित हैं और उन्होंने सरकार से फोन्सेका की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है. फोन्सेका सोमवार को उस वक़्त गिरफ़्तार कर लिए गए जब कोलंबो में वह विपक्षी नेताओं से बात कर रहे थे. फोन्सेका के एक अंग रक्षक का कहना है, "कई दर्जन सैनिक आए और 60 वर्षीय पूर्व सेना प्रमुख को खदेड़ते हुए ले गए."

Sarath Fonseka
जनरल सरथ फोन्सेकातस्वीर: AP

सरकार ने फोन्सेका पर आरोप लगाया है कि उन्होंने सेना प्रमुख रहते हुए विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सत्ता से हटाने और उनकी हत्या की साज़िश रची. और अब उनका कोर्ट मार्शल होगा. फोन्सेका ने राष्ट्रपति चुनावों में धांधली का आरोप लगाया और वह राजपक्षे की जीत को अदालत में चुनौती देने का मन बना रहे थे. साथ ही वह संसदीय चुनावों में भी उतरना चाहते थे.

श्रीलंकाई संसद का छह वर्ष का कार्यकाल 22 अप्रैल को ख़त्म हो रहा है. लेकिन संसदीय चुनावों से पहले फोन्सेका की गिरफ़्तारी के बाद, देश का राजनीतिक माहौल और ज़्यादा गर्म हो गया है. कोलंबो में मौजूद द हिंदू अख़बार के संवाददाता मुरलीधर रेड्डी कहते हैं कि आम लोग फ़ोन्सेका की गिरफ़्तारी को राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित क़दम मान रहे हैं.

Präsident Mahinda Rajapaksa
राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षेतस्वीर: AP

पिछले साल साल ही श्रीलंका में तमिल विद्रोहियों का सफ़ाया किया गया. हाल के राष्ट्रपति चुनाव में राजपक्षे इसका राजनीतिक फ़ायदा उठाने में कामयाब रहे और फिर छह साल के लिए राष्ट्रपति चुने गए. तमिल विद्रोहियों के ख़िलाफ़ निर्णायक संघर्ष में फ़ोन्सेका ने ही सेना का नेतृत्व किया. हालांकि इस दौरान श्रीलंकाई सरकार पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगते रहे हैं. कोलंबो में सेंटर फ़ॉर पॉलिसी अटरनेटिव्स नाम की संस्था से जुड़े पाकियासोथी सरवनमुत्तु कहते हैं, "श्रीलंका में पिछले तीन चार साल के दौरान मानवाधिकारों का रिकॉर्ड बेहद ख़राब रहा. सांस्कृतिक उपेक्षा हुई. मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ. ख़ासकर मीडिया को निशाना बनाया गया. "

उधर, राष्ट्रपति चुनावों में फोन्सेका का समर्थन करने वाली विपक्षी पार्टियों ने उनकी गिरफ़्तारी की निंदा की है और कहा है इस मुद्दे पर वे क़ानूनी लड़ाई लड़ेंगे.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एस गौड़