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संकट में है माइक्रो फाइनैंस व्यवस्था

१९ नवम्बर २०१०

जर्मन मीडिया में इस सप्ताह चर्चा रही माइक्रो क्रेडिट और कभी विकास का नुस्खा समझे जाने वाले क्षेत्र में तेज विकास के कारण हो रही मुनाफाखोरी की. पिछले दिनों भारत से इसकी वजह से कर्जदार महिलाओं की आत्महत्या की खबरे आई है.

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तस्वीर: DW

जर्मनी के आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट का कहना है कि इस क्षेत्र को सुधारों की जरूरत है.

हाल तक अत्यंत प्रशंसित व्यवस्था संकट में है. आलोचना का लक्ष्य कई माइक्रो बैंक हैं. वे गरीबों को कर्ज देते हैं ताकि वे अपना छोटा सा व्यवसाय शुरू कर सकें और उसकी आमदनी से जी सकें. इस अवधारणा को विकास सहायता का रामबाण नुस्खा समझा जाता था. इसने उसके जनक मोहम्मद यूनुस को 2006 में नोबेल पुरस्कार दिलवाया. आज यूनुस भी इससे इंकार नहीं करते कि माइक्रो क्रेडिट क्षेत्र समस्या में है. वे कहते हैं कि कुछ लोग माइक्रो क्रेडिट से धन कमाने की कोशिश कर रहे हैं. जर्मनी का सरकारी प्रोत्साहन बैंक केएफडब्ल्यू भी दो टूक बातें कर रहा है. लगातार चर्चा ने बढ़ी हुई उम्मीदें जगाई हैं. भारत के व्यावसायिक बैंकों को माइक्रो बैंकों में गड़बड़ी की आशंका है, उन्होंने पैसा देना बंद कर दिया है. विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं, यदि पैसा मिलना बंद हो जाएगा तो पूरे माइक्रो क्रेडिट सेक्टर के लिए व्यवस्था का खतरा पैदा हो जाएगा.

माइक्रो क्रेडिट को विकास समस्याओं से निबटने में अचूक दवा समझा जाता था. लेकिन वह बहुत सी महिलाओं को बेबस कर रहा है. अकेले आंध्र प्रदेश में 45 दिनों के अंदर 30 कर्जदार महिलाओं ने आत्महत्या की. सरकार ने माइक्रो फाइनांस कंपनियों के लिए कड़ी शर्तें तय कर दी हैं. जर्मनी के साप्ताहिक समाचार पत्र डी त्साइट का कहना है कि यह इस शाखा के लिए चेतावनी है, जिसकी सामाजिक प्रतिष्ठा इस बीच कम हुई है.

Flash-Galerie Friedensnobelpreisträger 2006 Muhammad Yunus und Grameen Bank
तस्वीर: AP

भारत की गरीब ग्रामीण महिलाएं उनका बुरा चाहने वालों का आसान शिकार हैं. देहाती गरीबी निवारण के लिए सरकारी संस्था की पारुचुरी जमुना आत्मसम्मान की समाप्ति की बात करती है. "वे समाज के सबसे निचले तबके की हैं, उन्हें ये नहीं लगता कि उनकी मौत दूसरों के लिए क्षति है. इसीलिए हम इतनी आत्महत्याएं देख रहे हैं." कर्ज देने वाली कंपनियां महिलाओं को रसातल में धकेल रही हैं. जमुना कहती हैं, "उसके पास कुछ भी नहीं है." कई आत्महत्याओं के बारे में रिपोर्ट करने वाले टेलिविजन पत्रकार एस श्रीनिवास कहते हैं, "देहातों में माइक्रो फाइनांस संस्थानों की छवि पूरी तरह नकारात्मक है."

अखबारों में जब माइक्रो क्रेडिट पर बहस चल रही थी. उसी समय जर्मनी में अनुषा रिजवी की पीपली लाइव रिलीज हुई. म्यूनिख से प्रकाशित ज्युड डॉयचे त्साइटुंग लिखता है कि यह फिल्म इस सवाल का जवाब ढूंढती है कि भारत में जिंदगी की कीमत क्या है. अखबार लिखता है

फिल्म देहातों में अस्तित्व के डर और शहरों में आर्थिक विकास के बीच झूलते आज के भारत की तस्वीर देती है. नत्था उन 23 करोड़ भारतीयों में से एक है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सुरक्षित खाना मयस्सर नहीं है. बेहतरीन चित्रों के साथ पूरे विस्तार से रिजवी ने भारत की ऐसी तस्वीर पेश की है, जो लगभग एक साल से अंतरराष्ट्रीय सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है, भारत की नई हकीकत, जिसे प्यार से नया बॉलीवुड कहा जा रहा है. पुराने बॉलीवुड के साथ संबंध भी बरकरार है, जाने माने और सबसे ज्यादा पैसा पाने वाले स्टार आमिर खान ने पीपली लाइव को प्रोड्यूस किया है.

आमिर खान की फिल्म चल रही है तो दूसरे सुपरस्टार शाहरुख खान धुंध भरे बर्लिन में अपनी एक्शन फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं, जिसमें जर्मन पैसा भी लगा है. राजधानी में भारतीय पर्यटकों के भारी संख्या में आने की उम्मीद की जा रही है. साप्ताहिक डेअर श्पीगेल लिखता है

Bollywood Star Shah Rukh Khan in Berlin Flash-Galerie
तस्वीर: DW

सवा अरब भारतीयों में एक चौथाई विदेशों में दौरे का इच्छुक है, और उसके पास जरूरी धन भी है. लेकिन बर्लिन बूम की राह में एक बड़ी बाधा है. शायद ही किसी भारतीय ने अब तक बर्लिन के अस्तित्व का नोटिस लिया है. यह इसलिए और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय मानवजाति का छठा हिस्सा हैं.

जर्मन सेना लगातार छोटी हो रही है. बड़ी युद्धक प्रणालियों की उसकी जरूरत कम होती जा रही है. फिर भी हथियार बनाने वाली जर्मन कंपनियां मुश्किल में नहीं हैं क्योंकि उनके उत्पादन का 70 फीसदी इस बीच विदेशों में बेचा जा रहा है. जर्मन सरकार की मदद से अवैध रूप से भारत और पाकिस्तान जैसे तनावग्रस्त क्षेत्र में भी. यह कैसे हो रहा है, इसकी जानकारी वामपंथी दैनिक नौएस डॉयचलांड ने दी है. अखबार लिखता है

हालांकि वर्तमान शस्त्र निर्यात कानून तनावग्रस्त क्षेत्रों में हथियारों के निर्यात पर आम रोक लगाते हैं, जर्मन सरकार अनुमति के मामले में "खरीददार देशों की आर्थिक और राजनीतिक पहलू की जांच का अधिकार सुरक्षित" रखती है, सरकार ने ग्रीन संसदीय दल द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा है. और इसमें जर्मन सरकार के हाल के जवाबों के अनुसार कोई संदेह नहीं है कि दोनों परमाणु सत्ताओं भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव है.

संकलन: आना लेमन (मझ)

संपादन: एन रंजन