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संसद में होगी महिलाओं की रिकॉर्ड संख्या

२५ मई २०१९

भारत में चुनाव खत्म हो गए हैं और अब सबकी निगाहें नए कैबिनेट की ओर लगी हैं. इस बीच अगर संसद की सीटों पर ध्यान दिया जाए, तो पता चलता है कि महिला सांसदों की संख्या कभी भी इतनी नहीं थी जितनी अब होगी.

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Indien Wahlen Feier BJP Sieg 16.05.2014
तस्वीर: UNI

जर्मनी की अंगेला मैर्केल, ब्रिटेन की टेरीजा मे और न्यूजीलैंड की जेसिंडा आर्डर्न. 21वीं सदी में कई महिलाएं अपने देश का नेतृत्व करती दिखती हैं. हालांकि यह संख्या आज भी बहुत ज्यादा नहीं है. वहीं आज से पांच दशक पहले दुनिया के लिए महिलाओं को राजनीति और नेतृत्व से जोड़ कर देखना मुश्किल था. उस दौर में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं. उनसे पहले तक दुनिया ने सिर्फ एक महिला प्रधानमंत्री का नाम सुना था और वह नाम था श्रीलंका की सिरिमावो बंडारनाइके का. उस वक्त श्रीलंका को सीलोन के नाम से जाना जाता था.

इंदिरा गांधी के साथ भारत ने दुनिया में महिला सशक्तिकरण की मिसाल तो पेश की लेकिन अपनी ही मिसाल को भारत कायम नहीं रख पाया. ना तो देश ने दोबारा किसी महिला को प्रधानमंत्री पद सौंपा और ना ही संसद में महिलाओं की भागीदारी बहुत ज्यादा दिखी. महिला नेताओं के नाम पूछे जाए, तो आज भी गिनती की ही महिलाओं का नाम याद आएगा. कयास है कि 2019 से यह समीकरण बदल जाएं.

BJP office, where supports are watching television.
तस्वीर: DW/O. Singh Janoti

लोकसभा की 542 सीटों में से 78 पर महिलाएं चुनी गई हैं. भारत के लिए भले ही यह एक बड़ी संख्या हो लेकिन अंतरराष्ट्रीय औसत से तुलना करें तो ये संख्या प्रभावित करने वाली नहीं, बल्कि निराश करने वाली मालूम होती है क्योंकि ग्लोबल एवरेज के हिसाब से हर चार में से एक सांसद महिला होती है. इतना ही नहीं भारत का औसत पाकिस्तान और बांग्लादेश के औसत से भी कम है.

बीजू जनता दल के प्रवक्ता सास्मित पात्रा का कहना है, "लोगों में एक अवधारणा है कि महिला प्रत्याशी हारेंगी लेकिन ऐसा नहीं है." ओडीशा में बीजेडी ने 21 सीटों पर सात महिला उम्मीदवार खड़ी कीं. 70 वर्षीय प्रमिला बिसोय इनमें से एक थीं और इन्होंने जीत भी दर्ज की. थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन से बात करते हुए उन्होंने कहा, "अब जबकि मैं जीत गई हूं, मैं दूसरे नेताओं से अपने इलाके की समस्याओं के बारे में बात करूंगी." प्रमिला बिसोय लंबे अरसे से ग्रामीण महिलाओं के उत्थान के लिए काम कर रही हैं.

संसद में पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या भले ही कम हो लेकिन अगर वोटरों की बात करें तो तकरीबन आधी मतदाता तो महिलाएं ही थीं. इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि महिला और पुरुष मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर रही. इससे पहले के चुनावों में महिला वोटरों की संख्या हमेशा पुरुषों से काफी कम ही दर्ज की गई थी. इस बार यह आंकड़ा बराबरी से 67 प्रतिशत रहा. साथ ही कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने महिला सुरक्षा को चुनावी मुद्दा भी बनाया था.

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आईबी/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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