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कानून और न्याय

सड़क हादसों से कितनी निजात दिला पाएगा नया कानून

शिवप्रसाद जोशी
३ सितम्बर २०१९

नये मोटर वाहन कानून को लेकर केंद्र और कुछ राज्य सरकारें आमने सामने हैं. इन राज्यों का दलील है कि कानून के कुछ प्रावधान बेहद कड़े और अव्यवहारिक हैं.

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Indien Patiala
तस्वीर: picture-alliance/dpa/akg-images/Y. Travert

कुछ असमंजस के बीच एक सितंबर से पूरे देश में नया मोटर वाहन कानून प्रभाव में आ गया है और सड़कों पर वाहन चलाते समय ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन बहुत भारीभरकम जुर्माना और सजा दिला सकता है. जानकारों का मानना है कि भारी भरकम प्रावधानों से पहले एक जागरूकता अभियान भी चलाया जाता तो ज्यादा असर पड़ता. कांग्रेस शासित पंजाब, मध्यप्रदेश और राजस्थान ने बिल के प्रावधानों पर पुनर्विचार कर संशोधन करने और जुर्माने की राशियों को कम करने की बात कही है, पश्चिम बंगाल ने भी इससे नाराजगी जताई है, उधर बीजेपी शासित गुजरात में भी कानून को लेकर दुविधाएं और सवाल हैं. गुजरात सरकार मानती है कि जुर्माने की निर्धारित रकम बहुत ज्यादा है और ये व्यवहारिक नहीं है. उसका कहना है कि आरटीओ की रिपोर्ट के बाद ही वो नये प्रावधानो को लागू करने पर विचार करेगी. राजस्थान का कहना है कि कुछ मामलों में तो पेनल्टी वाहन की कीमत से भी ज्यादा रखी गई है.

1988 के मोटर वाहन कानून में संशोधन के साथ ये बिल 2017 में लोकसभा में पेश किया गया था. राज्यसभा में पास न होने और 16वीं लोकसभा भंग हो जाने क बाद ये लैप्स हो गया. मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में दोबारा इस बिल को लेकर आई. सड़क हादसों की दर 2020 तक आधा करने के लक्ष्य वाले एक प्रस्ताव पर 2015 में ब्राजीलिया की बैठक में हस्ताक्षर करने वाले देशों में भारत भी है. इसी बैठक के बाद मोटर वाहन कानून में संशोधन पर जोरदार ढंग से काम शुरू हुआ. भारत में पहला मोटर वाहन कानून 1914 में बना था. उसके बाद 1939 का मोटर वाहन कानून आया जिसकी जगह 1988 के मोटर वाहन अधिनियम ने ली थी. तबसे यही कानून अमल में था.

हादसों का हाइवे

सन 2000 से सड़कों की लंबाई अगर 39 प्रतिशत बढ़ी है तो मोटर वाहनों की संख्या में 158 प्रतिशत का उछाल आया है. 1950 के दशक में भारत में सड़कों की लंबाई चार लाख किलोमीटर थी. 2015 में ये 55 लाख किलोमीटर हो चुकी थी. कुल सड़क नेटवर्क में राष्ट्रीय राजमार्ग दो प्रतिशत, राज्यों के हाइवे तीन प्रतिशत हैं. लेकिन 52 प्रतिशत मौतें इन्हीं राजमार्गों पर होती है. जाहिर है वाहनों की संख्या के मुकाबले सड़कों का सुधार कहीं नहीं था और रही-सही कसर लचीले और सुस्त ट्रैफिक नियमों ने पूरी कर दी, जो थे भी उनकी अनदेखी और अनुपालन में ढिलाई हुई.

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देश में कई नए हाइवे का निर्माण हुआ है. तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar

राज्यों में गठित आरटीओ का काम ड्राइविंग लायसेंस जारी करने का है. लेकिन इस पूरी प्रक्रिया और वाहनों के पंजीकरण, पहाड़ी इलाकों में परिवहन, पुराने वाहनों को अनापत्ति और अन्य किस्म के सर्टिफिकेशन और प्रमाणीकरण के काम के इर्दगिर्द भ्रष्टाचार भी खूब पनपा. लाख ऐक्शन हुए लेकिन दलालों ने अपने ठिकाने जमाए और चमकाए. सरकार के मुताबिक देश में जारी होने वाले 30 प्रतिशत ड्राइविंग लायसेंस बोगस यानी फर्जी हैं. 

भारी हुआ जुर्माना

नये कानून में एंबुलेंस या इमरजेंस वाहनों को रास्ता न देने पर 10 हजार रुपये जुर्माना लगेगा. लायसेंस रद्द होने के बावजूद गाड़ी चलाने पर दस हजार, ड्राइविंग लायसेंस के दुरुपयोग पर एक लाख रुपये की पेनल्टी लगेगी. लायसेंस के बिना ड्राइविंग करते हुए पकड़े जाने पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगेगा, पहले ये 500 रुपये था. गैर अधिकृत व्यक्ति को वाहन चलाने की इजाजत देने पर पांच हजार रुपये और शराब पीकर गाड़ी चलाने की पेनल्टी दस हजार रुपये होगी. हेल्मेट न पहनने और सीट बेल्ट न लगाने पर एक हजार रुपये का दंड होगा.

हर साल पूरी दूनिया में 10 लाख से कुछ ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इनमें से 11 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं जबकि भारत में पूरी दुनिया के दो प्रतिशत वाहन ही हैं. इस लिहाज से देखें तो सड़क हादसों में भारत का ग्राफ बहुत बुरा है. भारत में हर साल करीब डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. हर रोज़ औसतन 411 मौतें, और हर चार मिनट में एक मौत. कैंसर जैसी घातक और अन्य जानलेवा बीमारियों और कथित आतंकी हमलों से होने वाली मौतों से ये आंकड़ा कहीं अधिक है. भारत में जन स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा ही नहीं सड़क सुरक्षा एक आर्थिक चिंता का कारण भी है. सड़क हादसो में हर साल भारत अपनी जीडीपी का तीन फीसदी गंवा देता है.

सड़क दुर्घटना की वजहें

2017 में साढ़े चार लाख से ज्यादा सड़क हादसे दर्ज हुए जिनमें से तीन लाख से ज्यादा मामले ओपरस्पीडिंग के थे. 1,47, 913 लोग मारे गए जिनमें से करीब एक लाख तेज रफ्तार के चलते मरे. मोबाइल फोन के इस्तेमाल से साढ़े आठ हजार दुर्घटनाएं हुईं और तीन हजार मौतें. 2017 में शराब पीकर गाड़ी चलाने से 14 हजार एक्सीडेंट हुए और साढ़े चार हजार से ज्यादा मौतें. 34 प्रतिशत सड़क हादसों और 29 प्रतिशत मौतों के लिए दुपहिया वाहन जिम्मेदार थे. 78 फीसदी मौतें ड्राइवर की गल्ती से होती हैं. और सबसे ज्यादा मौतें 18-35 साल की उम्र वाले लोगों की हुई हैं. सड़क हादसों में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं हैं. इसके बाद तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान आते हैं.

सड़कों के रखरखाव में कमी, नयी सड़कों का अभाव, बेशुमार वाहन, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी, भ्रष्टाचार और लायसेंस वितरण में दलाली, कमीशनखोरी आदि ये कुछ मोटे तौर पर नज़र आने वाले कारण हैं. नये मोटर वाहन कानून में यूं तो ट्रैफिक नियमों, बीमा और उपचार के अलावा रखरखाव, वाहनों की दशा और वाहन उद्योग के लिए भी सख्त नियम बनाए गए हैं, ग्रामीण और शहरी इलाकों में सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने के लिए भी परामर्श हैं लेकिन इन सब पर कितना अमल हो पाता है, ये चुनौतीपूर्ण है.

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