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समाज

सड़कों पर चलती अफगानिस्तान की एक लाइब्रेरी

२२ मार्च २०१८

अफगानिस्तान से आए दिन आतंकी हमलों की खबर आती है. इसका असर देश की शिक्षा व्यवस्था पर भी पड़ा है. लेकिन सारी चुनौतियों के बावजूद एक ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट ने बच्चों को किताबों तक पहुंचाने के लिए एक नायाब तरीका निकाला है.

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Afghanistan | Bücherbus in Kabul
तस्वीर: Reuters/F. Karim

अफगानिस्तान के कई इलाके इन दिनों आतंक के साए से जूझ रहे हैं. देश में जब चाहे होने वाले आत्मघाती हमलों ने यहां के आंतरिक हालातों को बहुत ही खराब कर दिया है, जिसका असर बच्चों की शिक्षा पर भी पढ़ा है. लेकिन मौत के डर को पीछे छोड़ते हुए 25 साल की फ्रेशता करीम यहां एक मोबाइल लाइब्रेरी चला रहीं हैं. फरिश्ता रोजाना बस पर सवार होकर राजधानी काबुल में घूमती हैं और बच्चों को बस में बनी इस लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने का मौका देती हैं.

Afghanistan | Bücherbus in Kabul
तस्वीर: Reuters/F. Karim

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ग्रेजुएट फ्रेशता करीम का मकसद देश के उन बच्चों तक किताबें पहुंचाना है, जो आज किसी न किसी वजह से स्कूल नहीं जाते. फ्रेशता बताती हैं कि बचपन में उनका मन कहानी की किताबों को पढ़ने का करता था. लेकिन उनके पास लाइब्रेरी जाकर ऐसी किताबों को पढ़ने का मौका नहीं होता था. वो कहती हैं, "मेरा मकसद इन बच्चों की सोच में न सिर्फ गंभीरता लाना है, बल्कि इन्हें इस लायक बनाना है कि अगर वे अपने आसपास कुछ गलत होता हुआ देंखे तो सवाल कर सकें."

अफगानिस्तान दुनिया के ऐसे मुल्कों में शामिल है जहां साक्षरता दर सबसे कम है. यूनेस्को के मुताबिक अफगानिस्तान में हर 10 में से तीन व्यक्ति ही साक्षर हैं. साल 2001 के बाद से ही तालिबान ने देश के भीतर बनी अमेरिका समर्थित सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. देश के इस्लामिक कट्टरवादी समूह तालिबान ने देश के कई हिस्सों पर कब्जा भी जमाया हुआ है. हालांकि तालिबान के शासन काल में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ काम हुआ लेकिन उस वक्त लड़कियों को औपचारिक शिक्षा से दूर रखा जाता था.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान में हर 10 में से चार बच्चे आज स्कूल नहीं जाते. यहां तक कि कुछ अपने परिवारों को सहयोग देने के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन फ्रेशता को अपनी इस मोबाइल लाइब्रेरी से बहुत उम्मीदें हैं. फ्रेशता ने अपने तीन दोस्तों की मदद से जनवरी में इस बस को शुरू किया. उन्होंने सबसे पहले बस को किराये पर लिया. उस पर रंगों की पुताई की और बच्चों को आकर्षित करने के लिए सितारे और गुब्बारे भी लगा दिए. इस बस में खिड़की के ऊपर बुकशेल्फ लगाए गए हैं और बच्चों के बैठने के लिए मेज, कुर्सी की व्यवस्था की गई है. फ्रेशता के मुताबिक, "वे चाहते हैं कि लोग सोचें और विचार करें."

काबुल के लोगों ने बस में चलने वाली इस लाइब्रेरी का स्वागत किया है. यह लाइब्रेरी वाली बस तीन-चार घंटे तक एक स्टॉप पर रुकती है ताकि बच्चे यहां आकर किताबों को पढ़ सकें. इस लाइब्रेरी को अफगान बच्चे पसंद कर रहे हैं. साथ ही इस लाइब्रेरी के आने का इतंजार करते रहते हैं.

Afghanistan | Bücherbus in Kabul
तस्वीर: Reuters/F. Karim

इस लाइब्रेरी को जारी रखने के लिए फ्रेशता किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की मदद फिलहाल तो नहीं लेना चाहती हैं. उन्होंने कहा, "हम दोस्तों और आम लोगों के सहयोग को अधिक तवज्जो दे रहे हैं लेकिन भविष्य में लाइब्रेरी के यूजर्स से कुछ फीस ली जा सकती है." फरिश्ता ने एक रिफ्यूजी की तरह पाकिस्तान में स्कूली शिक्षा हासिल की और फिर स्कॉलरशिप लेकर विदेशों में पढ़ाई की.

एए/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)