1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

समाज बदले, पुलिस बदले

३० दिसम्बर २०१२

सिंगापुर में जो बाती बुझी, उसे दिल्ली के लोगों ने थाम लिया. तहरीर चौक जैसा समा बांधती जंतर मंतर की मशालें उदासी से भीगी थीं पर कठोर इरादे से रौशन भी थीं. शांति, सादगी और अधिकार के साथ की औरतें हक पाने को उठ खड़ी हुई हैं.

https://p.dw.com/p/17B9E
तस्वीर: AP

पुलिस की जंजीरों ने भले ही दिल्ली को बांधने की कोशिश की लेकिन भावनाओं के सैलाब नहीं रोक पाई. इंडिया गेट और रायसीना हिल पर इजाजत नहीं मिली, तो जंतर मंतर को ठिकाना बनाया गया.

समझदारी और शांति से प्रदर्शन कर रहे लोगों ने मोमबत्तियां जला कर श्रद्धांजलि अर्पित की और एक दूसरे के गले लग कर दिल हल्का किया. भारत में महिला अधिकारों के लिए काम करती आईं रंजना कुमारी कहती हैं, "हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है कि हम ऐसी व्यवस्था करें कि किसी दूसरी महिला के साथ आने वाले दिनों में ऐसा जघन्य अपराध न हो. हमारी मांग है कि इस मामले की सुनवाई हर रोज हो और 100 दिन के अंदर मामले का फैसला हो."

Indien Indian Police Service Kiran Bedi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दिल्ली में चलती बस में बलात्कार की शिकार 23 साल की छात्रा ने दो हफ्ते संघर्ष के बाद शनिवार तड़के सिंगापुर में दम तोड़ दिया. उसके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और डॉक्टरों का कहना है कि तमाम कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका. कुमारी इस पूरी घटना की जिम्मेदारी प्रशासन पर डालती हैं, "जिस मामले को रोका जा सकता था, उसे न सिर्फ नहीं रोका जा सका, बल्कि इसकी वजह से लड़की की जान चली गई और हम लोग एक नाकाम तंत्र में रहता हुआ महसूस कर रहे हैं. इसको दुरुस्त करने की पूरी जिम्मेदारी सरकार की है."

नाकाम पुलिस रिफॉर्म

इस पूरे मामले में पुलिस व्यवस्था पर गहरे सवाल उठे हैं. जिस बस में छात्रा का बलात्कार हुआ, वह कई चौकियों से होकर गुजरी. भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने डॉयचे वेले से बातचीत में तंत्र को नाकाम करार दिया, "पुलिस आंकड़े देखती है. वह देखती है कि कितने मामले दर्ज हुए. वह आंकड़ों को दबा कर रखती है क्योंकि सीनियर पुलिस अधिकारी इन आंकड़ों के आधार पर अपराध नियंत्रण का दावा करते हैं."

16 दिसंबर को की शाम सिनेमा देख कर घर जा रही इस छात्रा को बस वाले ने बिठाया और आरोप है कि बस में मौजूद छह लोगों ने उसका बलात्कार किया और उसके अंगों को क्षत विक्षत कर दिया. पहले दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसका इलाज किया गया. इस दौरान वह कई बार होश में आई और उसने अपना बयान भी दर्ज कराया. लेकिन बाद में उसे सिंगापुर भेज दिया गया, जहां पहुंचने के दो दिन बाद उसकी मौत हो गई. डॉक्टरों का कहना है कि दिमाग में सूजन के अलावा कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, जिसकी वजह से उसे बचाया नहीं जा सका.

Indien - Proteste nach der Vergewaltigung einer Studentin.
तस्वीर: Getty Images

सरकार ने गुस्सा

बलात्कार की घटना के बाद दिल्ली के गुस्साए लोग सड़कों पर उतर आए. सरकार ने जनता का दबाव देखते हुए मामले को जल्द निपटाने का वादा किया और यहां तक कि कम बोलने वाले और हाल के दिनों में बेहद थके से दिखने वाले 80 साल के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी बयान देना पड़ा. जनता आए दिन प्रदर्शन करने लगी और इस दौरान आम तौर पर हिंसा से दूर रही. बेदी कहती हैं कि अन्ना आंदोलन के बाद लोगों की समझ बेहतर हुई है, "अन्ना के मूवमेंट के बाद लोगों को सड़कों पर अपनी बात कहने का तरीका आ गया है. मैं समझती हूं कि एक नया दौर शुरू हो गया है."

अनजाने लोग

इस बार के आंदोलन में कोई जाना पहचाना चेहरा नहीं, बल्कि आम जनता ही इसका नेतृत्व कर रही थी. जंतर मंतर पर बैठे लोग एक दूसरे से अनजाना रिश्ता महसूस कर रहे थे. सर्दी होने के बाद भी देर रात तक लोग वहां मोमबत्तियों की रोशनी में बैठे रहे. प्रोफेसर आकर कामत का कहना है कि अब वक्त आ गया है कि महिलाओं के खिलाफ दिल में बंद सारी नफरत को इसी आग में जला दिया जाए, "हां, यह सच है कि वह अब हमारे बीच नहीं रही लेकिन उसकी कहानी कई भारतीयों के लिए संघर्ष की कहानी साबित होगी."

कामत का कहना है कि इस मौत को किसी अध्याय के खत्म होने जैसा नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि इससे औरतें अपने अधिकार के लिए लड़ सकती हैं.

Indien Proteste wegen Vergewaltigungsfall
तस्वीर: AFP/Getty Images

भारतीय समाज भले ही रीति रिवाजों में विश्वास करता हो और वहां औरतों को देवी का दर्जा दिया गया हो लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में यह अव्वल देशों में आता है. दिल्ली में हर 18 घंटे पर बलात्कार का एक मामला सामने आता है. यहां तक कि इस घटना के बाद कुछ बड़े नेताओं ने भी महिलाओं के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां कीं. रंजना कुमारी का कहना है कि यह पुरुष प्रधान समाज की सोच दिखाता है कि अगर शीर्ष पर बैठे लोग ऐसा कहेंगे तो समाज उन्हीं के विचारों में ढल रहा है. वह कहती हैं, "हम देवियां नहीं बनना चाहते, हमें आम इंसान माना जाए और उसकी तरह समाज में हमारी रक्षा हो."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी