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समाज

सरकार से ज्यादा बॉस पर भरोसा

२३ जनवरी २०१९

अमेरिका की मार्कटिंग कंपनी एडेलमैन के एक सर्वेक्षण के अनुसार कामकाजी लोगों को अपने सीईओ पर सबसे ज्यादा भरोसा और उनसे सरकारों से भी ज्यादा उम्मीदें होती हैं.

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Weibliche Führungskraft Team Wirtschaft Firma Männer
तस्वीर: Fotolia

लोगों को अपनी सरकारों, कंपनियों और संस्थानों में कितना भरोसा है, इस बात का ठीक ठीक पता लगाना तो बेहद मुश्किल है लेकिन अमेरिकी कंपनी एडेलमैन पिछले दो दशकों से इसी दिशा में काम कर रही है. कंपनी की 2019 की रिपोर्ट बताती है कि अपनी कंपनियों में लोगों का भरोसा बढ़ता जा रहा है. रिपोर्ट कहती है, "हमने देखा कि जिन कंपनियों पर उसके कर्मचारियों को ज्यादा भरोसा होता है, वे लंबे समय तक अच्छा कारोबार करती हैं और शेयर बाजार में भी अच्छा प्रदर्शन कर पाती हैं." इस सर्वेक्षण में 33,000 लोगों से उनके विचार पूछे गए. ये वे लोग थे जो शिक्षित हैं, रोज खबरें पढ़ते हैं और औसत से ज्यादा धन कमाते हैं.

सीईओ से उम्मीदें

सर्वेक्षण दिखाता कि लोग सबसे ज्यादा भरोसा अपने सीईओ पर करते हैं. 75 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें नौकरी देने वाली अपनी कंपनियों पर पूरा भरोसा है. पिछले साल के नतीजों से तुलना की जाए, तो सरकारों में लोगों के भरोसे से यह 27 अंक अधिक है. इसी तरह 76 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके सीईओ को खुद से बदलाव लाने के लिए कुछ करना चाहिए. उनका कहना है कि सीईओ को सरकार के कुछ करने का इंतजार नहीं करना चाहिए. पिछले साल की तुलना में यह 11 अंक ज्यादा है.  

लोगों को उम्मीद है कि सीईओ ही समानता लाने के लिए कुछ कर सकते हैं, वे भेदभाव से लड़ सकते हैं और कर्मचारियों को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए काम के दौरान प्रशिक्षण भी दिला सकते हैं. सर्वेक्षण कराने वाले स्टीफन केहो का कहना है, "लोगों को उम्मीद है कि जो काम सरकारे नहीं कर पा रही हैं, वो काम सीईओ कर सकते हैं. इसलिए सीईओ की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है." सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि जो लोग अपने बॉस पर भरोसा करते हैं, वे अपनी कंपनी के लिए ज्यादा वफादार और प्रतिबद्ध रहते हैं.

Symbolbild Daimler-Boss lässt in Flüchtlingszentren nach Arbeitskräften suchen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Weißbrod

67 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके सीईओ उनके साथ मिल कर सामाजिक मुद्दों पर काम करेंगे. वहीं 75 प्रतिशत का कहना है कि सीईओ उनके व्यक्तिगत सशक्तिकरण में भी मदद करेंगे और 80 प्रतिशत को लगता है कि सीईओ उनको नौकरी के नए अवसर भी देंगे. लेकिन आधे से ज्यादा लोग मानते हैं कि आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को बदलने की जरूरत है.

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले लोगों ने यह भी माना की अगर कंपनी मुनाफा कमाने पर ध्यान देती है, तो इसमें कोई गलत बात नहीं है. 73 प्रतिशत लोगों ने माना कि कंपनियां ऐसे कदम उठा सकती हैं जिनसे कंपनी के साथ साथ समाज का भी भला हो. इसके अलावा सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अपनी संस्थाओं और कंपनियों पर कम भरोसा करती हैं.

भारत के कमजोर ब्रांड

इस रिपोर्ट के अनुसार सरकार, व्यापार, गैर-सरकारी संगठनों और मीडिया की बात करें, तो भारत विश्व के सबसे भरोसेमंद देशों में से एक है. लेकिन देश के ब्रांडों पर भरोसा कम है. इस लिहाज से चीन भारत से बेहतर है. रिचर्ड एडेलमैन ने सीएनबीसी से बातचीत में कहा, "भारत में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि लोग अपने सीईओ को जानते ही नहीं है. महिंद्रा या टाटा अपवाद हैं. देश में बड़े ब्रांडों और उत्पादों की भी कमी है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचाने नहीं जाते." उन्होंने आगे कहा, "आगे चल कर भारत की कंपनियों को वैश्विक आकांक्षाओं, सुशासन और पारदर्शिता पर ध्यान देना चाहिए. कर्मचारियों के पास मूल्य और उद्देश्य होना चाहिए. भारत में कपनियों को ट्रेनिंग पर और कर्मचारियों को साथ में ले कर चलने पर ध्यान देने कि जरूरत है."

इसी तरह टीमलीज सर्विसेज की सह-संस्थापक रितुपर्णा चक्रवर्ती का कहना है, "भारत में कई लोग अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करते हैं और उनको अभी भी मूल अधिकार नहीं मिलते हैं. 7 से 10 प्रतिशत लोगों को ही सिर्फ मूल अधिकार मिलते हैं. इसलिए वे लोग अपनी कंपनी के ब्रांडों से जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते."

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