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सात महीने की हिरासत के बाद फारूक अब्दुल्ला हुए रिहा

चारु कार्तिकेय
१३ मार्च २०२०

सात महीने से भी ज्यादा की हिरासत के बाद जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया है. क्या ये कश्मीर में हालात के सामान्य होने का संकेत है?

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Indien Minister für erneuerbare Energien Farooq Abdullah
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan

जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को सात महीने से भी ज्यादा हिरासत में रखने के बाद उन्हें रिहा कर दिया. अब्दुल्ला को कश्मीर के विवादास्पद पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत हिरासत में लिया गया था. पीएसए के तहत आरोपी को कई महीनों तक सुनवाई के बिना हिरासत में रखा जा सकता है.

रिहाई के बाद सुरक्षा के बीच अब्दुल्ला जनता के सामने आये और कहा कि उनकी आजादी तब ही पूरी होगी जब बाकी नेता भी रिहा होंगे. उन्होंने यह भी कहा कि वो सभी नेताओं के रिहा होने के बाद ही राजनीतिक मुद्दों पर बयान देंगे. 

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए को निरस्त किया था. इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं. इन प्रतिबंधों की वजह से वहां आम जीवन अस्त-व्यस्त है. इन्हीं कदमों के साथ साथ कश्मीर में बड़ी संख्या में राजनेताओं को हिरासत में ले लिया गया था, जिनमें अब्दुल्ला, उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती शामिल थे.

फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ पहली बार 15 सितंबर को पीएसए लगाया गया था और फिर 13 दिसंबर को एक आदेश जारी कर उनकी हिरासत को तीन महीने और बढ़ा दिया गया था. हैरत की बात है कि अब्दुल्ला की हिरासत को तीन अतिरिक्त महीनों के लिए एक बार फिर सिर्फ दो ही दिन पहले यानी 11 मार्च को बढ़ाया गया था.

फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर लोक सभा सीट से सांसद हैं. वे तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के अलावा केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं. उनके इस तरह हिरासत में लिए जाने के खिलाफ विपक्ष के कई सांसदों ने विरोध किया, लोक सभा अध्यक्ष से मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की और सरकार को भी उन्हें रिहा कर देने के लिए चिट्ठी लिखी. उनकी हिरासत खत्म करने के आदेश के जारी होने पर सांसद और सीपीआईएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि उनके खिलाफ पीएसए लगाना और उन्हें हिरासत में लेना अपने आप में गैर-कानूनी, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक था.

अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अब्दुल्ला की रिहाई क्या वाकई इस बात का संकेत है कि कश्मीर धीरे-धीरे सामान्य हालात की तरफ बढ़ रहा है. अब्दुल्ला के बेटे उमर और महबूबा मुफ्ती समेत कई कश्मीरी नेता अभी भी हिरासत में हैं. कुछ ही दिन पहले जम्मू और कश्मीर में सात महीनों के बाद इंटरनेट के इस्तेमाल पर से प्रतिबंध हटा दिया गया, लेकिन अभी भी कश्मीर के लोगों को कुछ पाबंदियों का सामना करना पड़ेगा. प्रशासन के निर्देश के मुताबिक, इंटरनेट की स्पीड अभी 2जी ही रखी जाएगी, 3जी और 4जी नहीं मिलेगा. इंटरनेट पोस्ट-पेड कनेक्शन वाले मोबाइल फोनों में मिलेगा और प्री-पेड कनेक्शन रखने वालों में उन्हीं को मिलेगा जिनका सत्यापन हो चुका होगा. प्रशासन ने यह भी कहा कि इंटरनेट पर पाबंदी का हटाया जाना सिर्फ 17 मार्च तक वैध रहेगा. निर्देश के इस हिस्से की वजह से यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये छूट क्या सिर्फ अस्थायी है?

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