1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सुंदरबन के मैंग्रोव जंगलों ने बुलबुल तूफान के कहर से बचाया

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ नवम्बर २०१९

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में मौजूद मैंग्रोव जंगल ने बुलबुल तूफान के भारी नुकसान से इलाके को बचा लिया है. यह जंगल नहीं होता तो इलाके को बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता.

https://p.dw.com/p/3T6Ic
Indien Westbengalen | Mangrovenschutz & Sunderban
तस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

पर्यावरणविदों का कहना है कि सुंदरबन में मैंग्रोव जंगल नहीं होने की स्थिति में बुलबुल से सैकड़ों लोगों मारे गए होते. इस जंगल ने एक सुरक्षा कवच का काम किया है. इससे पहले आइला तूफान के समय भी इस जंगल की वजह से कोलकाता और आस-पास के इलाकों में जान-माल का नुकसान ज्यादा नहीं हुआ था. हालांकि इस इलाके में पेड़ तेजी से कट रहे हैं. अब बुलबुल तूफान से इन मैंग्रोव जंगलों की अहमियत एक बार फिर सामने आई है. जलवायु परिवर्तन से सुंदरबन इलाके पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से मुकाबले के लिए मैंग्रोव जंगल को बचाना बेहद जरूरी हो गया है. 

रक्षा कवच

सुंदरबन के मैंग्रोव जंगल इलाके को चक्रवाती तूफानों से बचाने में एक रक्षा कवच का काम करते हैं. अपनी जैव-विविधता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर सुंदरबन डेल्टा में छोट-बड़े 102 द्वीप हैं. इनमें से 54 पर इंसानी आबादी है. लगभग 10 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले सुंदरबन का 40 फीसदी हिस्सा भारत में है. मिट्टी को मजबूती से बांधे रखने की क्षमता के कारण इस जंगल में तूफान और भारी बारिश के दौरान किनारों की मिट्टी के कटाव से नुकसान नहीं होता. दस साल पहले आए आइला तूफान के दौरान भी इस जंगल की अहमियत सामने आई थी.

Indien Westbengalen | Mangrovenschutz & Sunderban
तस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

बीते सप्ताह आए बुलबुल तूफान के दौरान मैंग्रोव पेड़ों ने एक बार फिर अपनी अहमियत साबित की है. पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर इलाके में मैंग्रोव जंगल नहीं होते तो बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हो सकता था. इन पेड़ों ने हवा की गति को काफी कम कर दिया. इस वजह से बंगाल के बड़े इलाकों में विनाश रोका जा सका था. पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्याण रूद्र कहते हैं, "मैंग्रोव जंगल ने चक्रवाती तूफान की ताकत काफी हद तक कमजोर कर दी थी.” कोलकाता स्थिति मौसम विभाग के क्षेत्रीय निदेशक जी.के.दास बताते हैं, "आइला के समय तूफान की दिशा बुलबुल के विपरीत थी. आइला इस इलाके से शीघ्र गुजर गया था. लेकिन बुलबुल को इन जंगलों ने रोक दिया.”

गंगासागर बकखाली विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बंकिम हाजरा कहते हैं, "सुंदरबन के मैंग्रोव पेड़ नहीं होते तो बुलबुल तूफान से होने वाली तबाही की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.” जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर डा. सुगत हाजरा कहते हैं, "अपने घने मैंग्रोव जंगल की वजह से सुंदरबन ने एक मजबूत रक्षा कवच की भूमिका निभाई है. मैंग्रोव के जंगल से हवा की गति तो कम होती ही है, यह तूफान की वजह से उठने वाली ऊंची समुद्री लहरों को भी रोकने में सक्षम है.”

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य पर्यावरण अधिकारी प्रणवेश सान्याल कहते हैं, "बंगाल की खाड़ी में पैदा होने वाले किसी भी चक्रवाती तूफान को कोलकाता पहुंचने से पहले सुंदरबन के मैंग्रोव से होकर गुजरना पड़ता है. यह घना जंगल तूफान की ताकत को सोख कर कोलकाता की रक्षा करता है.” सान्याल बताते हैं कि सुंदरबन डेल्टा की भौगोलिक स्थिति व बनावट कुछ ऐसी है कि ज्यादातर तूफान मैंग्रोव जंगलों से टकराने के बाद बांग्लादेश की ओर मुड़ जाते हैं. इस बार भी बुलबुल तूफान वहीं से बांग्लादेश की ओर मुड़ गया. 

Indien Westbengalen | Mangrovenschutz & Sunderban
तस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

 

कटते जंगल पर चिंता

सुंदरबन के मैंग्रोव जंगल की इस अहमियत के बावजूद हाल के वर्षों में इलाके में पेड़ों के कटने की गति तेज हुई है. पर्यावरणविद लंबे अरसे से इस पर चिंता जताते रहे हैं. उनका कहना है कि बीती एक शताब्दी के दौरान इलाके में 40 फीसदी मैंग्रोव जंगल साफ हो चुके हैं. इससे सुंदरबन डेल्टा के साथ कोलकाता के लिए भी खतरा बढ़ रहा है. मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष दत्त ने सुंदरबन में जंगल की कटाई के खिलाफ वर्ष 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में एक जनहित याचिका दायर कर गरीबों के लिए सरकारी आवास योजना के लिए भी बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का आरोप लगाया था. प्राधिकरण के निर्देश पर गठित एक समिति ने इलाके का दौरा करने पर इस आरोप को सही पाया है.

सुदंरबन में मैंग्रोव जंगल 4,263 वर्गकिमी इलाके में फैले हैं. वर्ष 2014 में इसरो की ओर से सेटेलाइट से ली गई इलाके की एक तस्वीर से इस बात का पता चला था कि सुंदरबन में मैंग्रोव जंगल का 3.71 फीसदी हिस्सा कट चुका है. दत्त कहते हैं, "राज्य सरकार विकास के नाम पर बरसों से मैंग्रोव जंगल की कटाई कर रही है. इसके अलावा स्थानीय लोग भी रोजी-रोटी व जलावन के लिए पेड़ों की अवैध कटाई में जुटे हैं. स्थानीय प्रशासन इस ओर से पूरी तरह लापरवाह है."

Sundarbans Mangrovenwälder Indien
तस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

सुंदरबन के तेजी से घटते जंगल को बचाने के लिए सागरद्वीप में इस साल 30 हजार पौधे लगाने वाले प्रणवेश माइती बताते हैं, "कभी सड़क बनाने तो कभी तटबंध या मत्स्यपालन के लिए जंगल का कटना आम बात है.पर्यावरणविदों का कहना है कि प्राकृतिक विपदाओं से बचाव के लिए सुंदरबन में मैंग्रोव जंगल की कटाई पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए.

हालांकि अब शायद राज्य सरकार को भी इस जंगल की अहमियत पता चली है. सुंदरबन मामलों के मंत्री मंटूराम पाखिरा ने बताया, "मैंग्रोव जंगल ने हमें बचा लिया है. अब सरकार इलाके में मैंग्रोव के पौधे लगाने पर खास ध्यान दे रही है.” सरकारी अधिकारियों का कहना है कि दस साल पहले आए आइला तूफान के बाद से ही सरकार ने इलाके में बड़े पैमाने पर पौधे लगाने का अभियान शुरू किया है.

पर्यावरणविदों का कहना है कि जलवायु परिवरर्तन की मार झेलने वाले सुंदरबन में मैंग्रोव के पौधे लगाना ही काफी नहीं है. इन पौधों को जंगल में बदलने में वर्षों लग जाएंगे. इसके साथ इलाके में मैंग्रोव के हजारों साल पुराने घने जंगलों को बचाना भी जरूरी है.

__________________________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी