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सैलानियों के लौटने से क्या कश्मीर में हालात सामान्य होंगे?

चारु कार्तिकेय
१० अक्टूबर २०१९

दो महीने से तालाबंदी में पड़ा जम्मू और कश्मीर राज्य आज फिर से खुल तो रहा है, लेकिन सिर्फ पर्यटकों के लिए. क्या सैलानी धरती के इस स्वर्ग में वापस आएंगे? और अगर आ भी गए, तो क्या उससे राज्य में सामान्य हालात बहाल हो जाएंगे?

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Bildergalerie Wasser als Wohnfläche Hausboot Srinagar Kashmir
तस्वीर: AFP/Getty Images

5 अगस्त को जम्मू कश्मीर के राज्य का दर्जा खोने से ठीक पहले प्रदेश की सरकार ने पर्यटकों को राज्य छोड़ने के लिए कहा था. अनुमान है कि उस वक्त राज्य में 20 से 25 हजार सैलानी मौजूद थे. पर्यटन के लिए वो व्यस्ततम अवधि थी और पर्यटकों के चले जाने से राज्य की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ. पर वो क्षति कश्मीरियों के लिए बस एक बुरे वक्त की शुरुआत भर थी. उस कदम के तुरंत बाद ही वादी में टेलिफोन और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं, सार्वजनिक आवाजाही पर रोक लगा दी गई, तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत करीब 2500 राजनेताओं और कार्यकर्ताओं को निवारक नजरबंदी में डाल दिया गया और पूरे राज्य को असंख्य सुरक्षाबलों की एक छावनी में तब्दील कर दिया गया.

ये अवस्था दो महीने से भी ज्यादा से बरकरार है. कश्मीर आज भी बंद है. पर जैसे जैसे कश्मीर के हालातों पर अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा बढ़ती जा रही है, राज्य में धीरे धीरे कुछ प्रतिबंधों को हटाया जा रहा है. हालांकि अभी तक उठाए गए ज्यादातर कदम ऊपरी हैं. लैंडलाइन टेलिफोन सेवाओं को शुरू कर दिया गया है पर मोबाइल और इंटरनेट अभी भी बंद हैं. स्कूल और कॉलेजों को खोल दिया गया है पर वो खाली पड़े हैं. ये एक विरोधाभास ही है कि तीनों पूर्व मुख्यमंत्री और कम से कम 250 राजनीतिक कार्यकर्ता अभी भी हिरासत में ही हैं पर सरकार चाह रही है कि पर्यटक वापस आ जाएं. 

राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर के कहा है जो पर्यटक राज्य घूमने आना चाहें उन्हें हर जरूरी सहायता दी जाएगी. पर सवाल ये उठता है कि इन हालातों में क्या पर्यटक वापस आएंगे? और अगर कुछ पर्यटक वापस आ भी गए तो उनकी मेजबानी करके आखिर सरकार क्या संदेश देना चाह रही है? जहां स्थानीय लोग कर्फ्यू जैसे हालातों में रह रहे हों, वहाँ सैलानियों को बुला कर सरकार क्या दिखाना चाह रही है? 

Indien Protest von Journalisten in Kaschmir
तस्वीर: AFP/T. Mustafa

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ कहते हैं कि ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकार की मंशा कश्मीर के हालात वाकई में सुधारने की जगह हेडलाइन प्रबंधन की है. गौरव वल्लभ कहते हैं, "ये एक ध्यान भटकाने वाला कदम है. सरकार सोचती है कि ऐसे कदमों से वो कश्मीर के हालातों की असलियत को छुपा लेगी और ये साबित करने में सफल हो जाएगी कि वहां सब सामान्य है". कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि अगर सब सामान्य है तो क्यों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को, जो जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे हैं, अपने ही गृह-राज्य में जाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा.

हालांकि गुरुवार को कुछ पर्यटक इलाके में पहुंचे हैं, लेकिन जम्मू और कश्मीर में भारत सरकार की कार्रवाई पर गुस्सा है और कश्मीरियों ने विरोध में सामान्य जीवन फिर से बहाल न करने का अभियान चला रखा है. हाउस बोट संघ के प्रमुख वली मोहम्मद ने शिकायत की है कि सरकार ने पहले पर्यटकों को इलाके से बाहर निकलने को कहा और अब बिना किन्ही सुविधाओं के वापस आने दे रही है. वली का कवाल है कि पर्यटक यहां आएंगे तो बिना टेलिफोन, बिना इंटरनेट और बिना ट्रांसपोर्ट के क्या करेंगे.

बिहार से आई एक टूरिस्ट अनीता राय ने कहा कि उन्हें डर नहीं लग रहा है लेकिन इंटरनेट और फोन के बिना मुश्किल हो रही है. अनीता ने कहा, "मेरे माता पिता थोड़े चिंतित होंगे क्योंकि मैं उनसे संपर्क नहीं कर सकती. हमारे लिए ये बताने का कोई रास्ता नहीं है कि हम यहां सुरक्षित हैं." अनीता ने कहा कि हर कहीं सुरक्षा बल के जवान है, इसलिए डरने की कोई वजह नहीं है. एक और पर्यटक अतुव कुमार ने शिकायत की है ज्यादातर दुकानें बंद हैं, "अच्छा होता यदि दुकानें खुली होती. हमें यहां थोड़ा अकेलापन लग रहा है."

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