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हर गांव में बिजली लेकिन चिराग तले अंधेरा

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ मई २०१८

भारत सरकार पूर्वोत्तर के मणिपुर के दुर्गम इलाके में बसे सुदूर पर्वतीय गांव लीसांग में बिजली पहुंचा कर भले देश के हर गांव तक बिजली पहुंचाने के दावे कर रही हो, हर घर को बिजली अभी भी मयस्सर नहीं.

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Indien Elektrifizierung indischer Dörfer
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Kaiser

भारत में किसी भी गांव में 10 फीसदी घरों तक बिजली पहुंचते ही उसे विद्युतीकृत गांव घोषित कर दिया जाता है. यह सही है कि इस आखिरी गांव में बिजली पहुंचने से आम लोगों का जीवन बेहद आसान हो गया है. आजादी के बाद पहली बार गांव के लोगों ने बिजली के बल्ब की रोशनी देखी है. लेकिन साथ ही इस तथ्य का जिक्र भी प्रासंगिक है कि इस गांव में महज 14 परिवार ही रहते हैं. हर गांव तक बिजली पहुंचने की हकीकत जानने के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं है. इसी इलाके में बीजेपी के शासन वाले असम के ग्रामीण इलाकों में बिजली की स्थिति अब भी चिराग तले अंधेरे वाली कहावत को चरितार्थ करती नजर आती है.

असम की हालत

पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले असम में बीते दो साल से बीजेपी सत्ता में है. लेकिन देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का सरकारी दावा यहां मुंह चिढ़ाता नजर आता है. राज्य के ग्वालपाड़ा जिले में दूधनोई से महज तीन किमी दूर टेंगासोट गांव में रहने वाले 120 परिवारों के लिए बिजली के बिना जीवन बेहद कठिन है. गांव में मोबाइल फोन रखने वाले लोगों को इसे चार्ज करने के लिए नदी पार कर पड़ोसी गांव तक जाना पड़ता है जहां कतार में लग कर 10 रुपए देने के बाद फोन चार्ज होता है. नेशनल हाइवे-62 के किनारे बसे ज्यादातर गांव शाम होते ही अंधेरे में गुम हो जाते हैं. कुछ घरों में बच्चों को मोमबत्तियों या किरासन तेल से जलने वाले लैंप के सहारे पढ़ते देखा जा सकता है. टेंगासोट के विमल राभा कहते हैं, "हम तो आजादी के बाद से ही बिना बिजली के रह रहे हैं. बच्चे नदी पार कर स्कूल जाते हैं और लैंप की रोशनी में पढ़ाई करते हैं.पता नहीं उनका भविष्य क्या होगा?"

असम के ही गोलाबाड़ी जिले के जोलोकियाबाड़ी गांव में तो किसी के पास न मोबाइल फोन है और न ही टेलीविजन. इससे गांव वाले यह सोच कर परेशान रहते हैं कि उनके बच्चे शायद जीवन में कभी टीवी या कंप्यूटर चलाना नहीं सीख सकेंगे. उन्होंने यह दोनों चीजें देखी ही नहीं हैं. महिमा चाय बागान से सटे इस गांव में आजादी के बाद से अब तक बिजली की रोशनी नहीं पहुंची है. गरीबी का आलम यह है कि अक्सर लोगों के पास किरासन तेल खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते. नतीजतन शाम गहराने से पहले ही पूरा गांव खा-पी कर सो जाता है. गांव के बीजू सैकिया बताते हैं, "उनकी पीढ़ी बिना बिजली के ही पली-बढ़ी है. शायद बिजली देखने का हमारा सपना सपना ही रह जाएगा. लेकिन अब चिंता यह है कि हमारे बच्चों का क्या होगा?" गांव वालों का कहना है कि बिजली पहुंचने पर उनका गांव जहां सूचना-तकनीक से जुड़ता वहीं इलाके में उद्योग-धंधे को बढ़ावा देने में भी सहायता मिलती.

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घरों में पहुंची बिजलीतस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Kaiser

बिजली के लिए हड़ताल

राज्य के होजाई जिले में स्थित डोबका पाथर गांव की कहानी भी अलग नहीं है. देश आजाद होने के बाद अब तक यहां बिजली नहीं पहुंची है. गांव के 90 परिवारों में से कुछ लोग सौर ऊर्जा का इस्तेमाल जरूर करते हैं. लेकिन उनकी तादाद अंगुलियों पर गिनी जा सकती है. इली साल 12वीं की परीक्षा देने वाले बदरुल इस्लाम कहते हैं, "सरकार तमाम गांवों को बिजली से जोड़ने का दावा कर रही है. लेकिन यहां तो हम एक बल्ब तक के लिए तरस रहे हैं." धुबड़ी और बरपेटा जिले के सैकड़ों गांवों की भी यही स्थिति है.

देश के तमाम गांवों को बिजली से जोड़ने के सरकारी दावे के विरोध में बरपेटा जिले के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र भी भेजा था. इसमें उनको याद दिलाया गया था कि दो साल पहले विधानसभा चुनावों के समय चुनाव प्रचार के लिए इलाके में एक जनसभा के दौरान उन्होंने गांव तक जल्दी बिजली पहुंचाने का वादा किया था. वह वादा अब तक कागज पर ही है. इलाके के एक स्कूली शिक्षक ने असम प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रंजीत कुमार दास के फेसबुक पर उस पत्र की कापी भी पोस्ट की थी. लेकिन रंजीत दास कहते हैं, "जमीनी परिस्थिति का आकलन करने के बाद वहां काम शुरू करने की योजना बनाई जाएगी." राज्य के डिमा हसाओ जिले में तो बिजली की मांग में बीते सप्ताह दिमासा तबके के लोगों ने भूख हड़ताल भी की थी.

तस्वीर बदली, लक्ष्य दूर

असम समेत पूर्वोत्तर के कई राज्य अब भी भले ही बिजली की पहुंच से दूर हों, मणिपुर के छोटे-से गांव लीसांग में तो तस्वीर ही बदल गई है. इस गांव के हेलुन खोंगसाई (45) बताते हैं कि रविवार को चर्च की प्रार्थना के दौरान भी स्थानीय लोग ईश्वर से गांव में शीघ्र बिजली पहुंचने का आशीर्वाद मांगते थे. अब यह गांव स्वर्ग बन गया है. गांव के सचिव पोंगमिलान हाओकिप कहते हैं, "अब हमारा गांव तेजी से बदलेगा. अब यहां कंप्यूटर लग जाएंगे. इसके जरिए हमलोग पूरी दुनिया से जुड़ जाएंगे." वह बताते हैं कि बिजली नहीं होने की वजह से गांव के 14 परिवार अब तक देश के बाकी हिस्सों से कटे हुए थे. हालांकि बिजली का बार-बार कटना अब भी एक समस्या है. लेकिन गांव वालों को उम्मीद है कि इस स्थिति में शीघ्र सुधार होगा.

देश के तमाम गांवों तक बिजली पहुंचाने के सरकारी दावे का बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि अब भी महज आठ फीसदी गांव ही ऐसे हैं जहां हर घर में बिजली पहुंची है. जहां बिजली पहुंची भी है वहां गांववालों को रोजाना घंटों कटौती झेलनी पड़ती है. ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणाभ घोष कहते हैं, "अभी लक्ष्य काफी दूर है." वह कहते हैं कि विद्युतीकरण की सरकारी परिभाषा काफी सीमित है. इसका मतलब यह है कि बिजली के संयंत्रों से गांव तक बिजली के तार पहुंच गए हैं. लेकिन उनमें बिजली प्रवाहित हो रही है या नहीं, इसका कोई आंकड़ा नहीं है. घोष के मुताबिक, लगभग तीन करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाना सरकारी के लिए काफी गंभीर चुनौती है. अप्रैल, 2019 की समयसीमा के भीतर यह लक्ष्य हासिल करने के लिए मौजूदा गति से दस गुनी तेजी से बिजली के कनेक्शन मुहैया कराने होंगे. इसके साथ ही सस्ती दर पर बिजली की नियमित सप्लाई भी सुनिश्चित करनी होगी.

Indien Präsident Macron und Modi eröffnen Solarstrom-anlage (Getty Images/AFP/L.
सौर ऊर्जा पर जोरतस्वीर: Getty Images/AFP/L. Marin