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होलब्रुक के जूनियर को मिली जिम्मेदारी

१५ दिसम्बर २०१०

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए विशेष अमेरिकी दूत रिचर्ड होलब्रुक की मौत के बाद उनके जूनियर फ्रैंक रुगिएरो ही फिलहाल यह जिम्मेदारी संभालेंगे. अमेरिका ने कहा है कि क्षेत्र में उसकी राजनयिक कोशिशें उसी तरह जारी रहेंगी.

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तस्वीर: AP

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पद संभालने के बाद ही होलब्रुक को अफगानिस्तान के लिए कारगर रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी सौप दी. पड़ोसी पाकिस्तान भी उनकी जिम्मेदारियों का हिस्सा था क्योंकि पाकिस्तान के बिना अफगानिस्तान में सफल होना मुश्किल है. राष्ट्रपति बुश के दौर में दोनों देशों के अलग अलग तौर पर देखा गया.

होलब्रुक की मौत के बाद अब कई जानकार अटकलें लगा रहे हैं कि रुगिएरो को विशेष दूत बनाए जाने के बाद क्या क्षेत्र में उस तरह अमेरिकी कूटनीति कोशिशें जारी रह पाएंगी. असल में होलब्रुक का स्थान लेने वाले किसी भी राजयनिक के लिए बहुत सी चुनौतियां हैं. एक तो क्षेत्र में होलब्रुक जैसी पकड़ हासिल करना मुश्किल है, दूसरा अमेरिकी सरकार में उतनी तवज्जो पाना भी आसान नहीं.

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता पीजे क्राउली ने बताया कि रुगिएरो ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन से मुलाकात की. इस बैठक में अफगान रणनीति की सालाना समीक्षा पर बात हुई. क्राउली ने कहा कि रुगिएरो ने न सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए विशेष अमेरिकी दूत की जिम्मेदारी संभाल ली है, बल्कि वह उस राजयनिक ढांचे का भी नेतृत्व करेंगे जिसे होलब्रुक ने तैयार किया.

क्राउली ने माना कि व्यक्ति के बदल जाने से संभव है कि काम करने के होलब्रुक के तेज तर्रार अंदाज में भी बदलाव आए. खास कर होलब्रुक के रवैये से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई समेत कई लोग नाराज हो जाया करते थे.

उधर व्हाइट हाउस के प्रवक्ता रॉबर्ट गिब्स ने पत्रकारों को बताया कि इस बात में शक नहीं कि जो भी होलब्रुक की जगह लेगा, उसे उन सब दायित्वों को निभाना होगा जो होलब्रुक ने छोड़े हैं. उन्होंने कहा कि असल मायनों में तो कोई होलब्रुक की जगह ले ही नहीं सकता.

उधर काबुल में सेंटर फॉर कंफ्लिक्ट एंड पीस स्टडीज के निदेशक हेकमत करजई का कहना है कि होलब्रुक की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने पूरी अफगानिस्तान पाकिस्तान रणनीति को स्थापित किया और इसे एकजुट किया. लेकिन वह कहते हैं कि होलब्रुक के काम करने का सख्त अंदाज अफगानिस्तान जैसे देशों में हमेशा कारगर साबित नहीं होता.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एस गौड़

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